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इस बार की जन्माष्टमी है बहुत खास, लंबे अंतराल के बाद बन रहे हैं दुर्लभ योग

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तिथि को लेकर लगभग हर बार कृष्ण और शैव मतावलंवियों के बीच में संशय बना रहता है. लेकिन साल 2021 में इस बार सभी जगह एक ही दिन जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा.

Updated on: 29 Aug 2021, 10:17 AM

नई दिल्ली :

चातुर्मास भगवान विष्‍णु और उनके अवतारों की पूजापाठ से जुड़ी अवधि होती है. इस क्रम में सबसे पहले नंबर आता है कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, भगवान कृष्‍ण का जन्‍म भाद्र मास के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को हुआ था. इस शुभ तिथि को भगवान कृष्‍ण के जन्‍मोत्‍सव के रूप में मनाया जाता है और इसे जन्‍माष्‍टमी कहा जाता है. भगवान कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली मथुरा में इस त्‍योहार की विशेष धूम रहती है और इसी के साथ पूरे बृज क्षेत्र में जन्‍माष्‍टमी का त्‍योहार धूमधाम से मनाया जाता है. यही नहीं, देश के कोने कोने में बसे एक एक कृष्ण मंदिर में जन्माष्टमी की आभा दिखाई देती है. इस साल जन्‍माष्‍टमी 30 अगस्‍त के दिन सोमवार को मनाई जाएगी. बता दें कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तिथि को लेकर लगभग हर बार कृष्ण और शैव मतावलंवियों के बीच में संशय बना रहता है. तिथि को लेकर आपस में मतभेद होने के कारण जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाती है. लेकिन साल 2021 में इस बार सभी जगह एक ही दिन जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा. शास्त्रों और ज्योतिषीय गणना के अनुसार भगवान कृष्ण के जन्म के समय जैसा विशेष संयोग बना था, ऐसा ही संयोग इस बार दोबारा बनने जा रहा है. 

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विशेष और दुर्लभ योग
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय भाद्रपद  कृष्णपक्ष की आधी रात्रि अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा के वृषभ राशि में गोचर रहने का संयोग बना था. अब ज्योतिषीय आंकलन की मानें तो,  कुछ इसी तरह का संयोग इस बार की जन्माष्टमी तिथि पर देखने को मिलेगा. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 29 अगस्त की रात 11 बजकर 25 मिनट से शुरू हो जाएगी जो 30 अगस्त की रात 02 बजे तक रहेगी. जयंती योग और रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है. इसके अलावा अष्टमी तिथि पर चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद रहेंगे. पूजा मुहूर्त की बात करें तो, जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र 30 अगस्त की सुबह 06 बजकर 39 मिनट पर रहेगा. ऐसे में जन्माष्टमी के पूजा का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त की रात 11 बजकर 59 मिनट से रात 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. 

पूजा विधि 
जन्माष्टमी के दिन व्रत रखते हुए भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरुप की आराधना करें. मूर्ति स्थापना के बाद उनका गाय के दूध और गंगाजल से अभिषेक करें. फिर उन्हें मनमोहक वस्त्र पहनाएं. मोर मुकुट, बांसुरी, चंदन, वैजयंती माला, तुलसी दल आदि से उनको सुसज्जित करें. फूल, फल, माखन, मिश्री, मिठाई, मेवे, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें. फिर सबसे अंत में बाल श्रीकृष्ण की आरती करें. उसके बाद प्रसाद बाटें. 

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वास्तुदोष होगा दूर
भगवान श्री कृष्ण हर पल बांसुरी को अपने साथ रखते थे. प्रेम और शांति का संदेश देने वाली बांस की बांसुरी उनकी शक्ति थी. यदि आपके घर में वास्तु दोष है और इस कारण आप परेशान हैं तो जन्माष्टमी के दिन आप घर में एक बांसुरी लाएं और रात्रि के समय भगवान श्री कृष्ण की पूजा में उस बासुंरी को कृष्णजी को अर्पित कर दें और दूसरे दिन उस बांसुरी को अपने घर में पूर्व की दीवार पर तिरछी लगा दें, ऐसा करने से आपके घर का वास्तुदोष धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा. जिस घर में लकड़ी की बांसुरी होती है वहां श्री कृष्ण की कृपा सदैव बनी रहती है. 

समृद्धि में होगी बढ़ोतरी 
जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल बासुंरी अर्पित करने और उसे घर लाने से सिर्फ वास्तु दोष ही नहीं मिटता बल्कि घर में कभी भी धन एवं ऐश्वर्य की कमी नहीं होती. अगर घर के मुख्य द्वार यानी कि मेन गेट पर बांस की सुन्दर सी बांसुरी लटकाई जाए तो इससे समृद्धि में वृद्धि होती है. आर्थिक तंगी दूर होती है. इसके अलावा, अगर आपका व्यापार ठीक नहीं चल रहा हो तो अपने कार्यालय या दुकान के मुख्य द्वार के ऊपर दो बांसुरी लगाएं. इससे व्यापार में बढ़ोतरी होगी.

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नकारात्मकता होगी दूर 
बांसुरी भगवान श्री कृष्ण को अतिप्रिय है इसलिए यह अति पवित्र और पूज्यनीय है. बांसुरी सम्मोहन, ख़ुशी व आकर्षण का प्रतीक मानी गई है. बांसुरी बजाने पर उससे उत्पन्न होने वाली ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है एवं वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है. 

Highlights

  • जन्माष्टमी पर जयंती योग और रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है. 
  • जन्माष्टमी पर अष्टमी तिथि पर चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद रहेंगे.