Jagannath Rath Yatra 2021: कोरोना काल में शुरू हुई जगन्नाथ रथ यात्रा, पढ़ें क्या है महत्व
Jagannath Rath Yatra 2021: आज यानी 12 जुलाई दिन सोमवार को जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जा रही है. उड़ीसा के पुरी में हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है. कोरोना के कारण सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ पुरी में ही रथयात्रा निकालने के निर्देश दिए हैं.
highlights
- बिना श्रद्धालुओं के निकाली जा रही है रथयात्रा
- रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है
- भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर पहुंचाया जाता है
पुरी:
आज यानी 12 जुलाई दिन सोमवार को जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जा रही है. हर साल उड़ीसा के पुरी में रथयात्रा धूमधाम से निकाली जाती है. हालांकि पिछली बार की तरह इस साल भी सुप्रीम कोर्ट ने रथ यात्रा केवल पुरी में सीमित दायरे में निकालने के निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट और तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए ओडिशा सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए पूरे राज्य में रथ यात्रा को निकालने पर पाबंदी लगा दी है. रथयात्रा को कोरोना गाइडलाइन के निर्देश के अनुसार निकाला जा रहा है.
कोरोना गाइडलाइंस का होगा पालन
जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से आरंभ होकर दशमी तिथि को समाप्त होती है. ऐसी मान्यता है कि इस दौरान भगवान जगन्नाथ की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कोरोना वायरस के चलते इस बार भी जगन्नाथ यात्रा में श्रद्धालुओं को शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई है. रथ यात्रा के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाएगा. हालांकि कोरोना काल से पहले पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा के लिए श्रद्धालुओं की खासी भीड़ रहती थी. लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस मौके पर पुरी पहुंचते थे.
क्या है यात्रा का महत्व
हिन्दू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत बड़ा महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर पहुंचाया जाता हैं, जहां भगवान 7 दिनों तक विश्राम करते हैं. इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे भारत में एक त्योहार की तरह मनाई जाती है. पुरी के जगन्नाथ धाम को चार धामों में से एक माना जाता है. पुरी को पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है. राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं. यानी राधा-कृष्ण को मिलाकर उनका स्वरूप बना है और कृष्ण भी उनके एक अंश हैं. ओडिशा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की काष्ठ यानी लकड़ियों की अर्धनिर्मित मूर्तियां स्थापित हैं. इन मूर्तियों का निर्माण महाराजा इंद्रद्युम्न ने करवाया था. माना जाता है कि इस रथ यात्रा के दर्शन करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज होता जिस पर श्री बलराम होते हैं, उसके पीछे पद्म ध्वज होता है जिस पर सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होते हैं और सबसे अंत में गरूण ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं जो सबसे पीछे चलते हैं.
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