भागवत कथा : आदर्श दार्शनिक एवं निष्काम कर्मयोगी कृष्ण की पुराणों में कथा
"कृष्ण" एक संस्कृत शब्द है, जो "काला", "अंधेरा" या "गहरा नीला" का समानार्थी है. "अंधकार" शब्द से इसका सम्बन्ध ढलते चंद्रमा के समय को कृष्ण पक्ष कहे जाने में भी स्पष्ट झलकता है.
नई दिल्ली:
हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण को विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं. कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे. उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था. उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है. कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है. भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है. इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है.
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कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे. देवकी कंस की बहन थी. कंस एक अत्याचारी राजा था. उसने आकाशवाणी सुनी थी कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा वह मारा जाएगा. इससे बचने के लिए कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में डाल दिया. मथुरा के कारागार में ही भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनका जन्म हुआ. कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहां पहुंचा दिया. गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था. यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे.
बाल्यावस्था में ही उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किए जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे.उन्होंने कई लीलाएं की जिसमे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला आदि मुख्य है. इसके बाद मथुरा में मामा कंस का वध किया. सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया. पांडवों की मदद की और विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की. महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया.
कृष्ण का शाब्दिक अर्थ
"कृष्ण" एक संस्कृत शब्द है, जो "काला", "अंधेरा" या "गहरा नीला" का समानार्थी है. "अंधकार" शब्द से इसका सम्बन्ध ढलते चंद्रमा के समय को कृष्ण पक्ष कहे जाने में भी स्पष्ट झलकता है.
कृष्ण भारतीय संस्कृति में कई विधाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. कृष्ण को अक्सर मोर-पंख वाले पुष्प या मुकुट पहनकर चित्रित किया जाता है, और अक्सर बांसुरी बजाते हुए उनका चित्रण हुआ है. अन्य चित्रण में, वे महाकाव्य महाभारत के युद्ध के दृश्यों का एक हिस्सा है. वहा उन्हें एक सारथी के रूप में दिखाया जाता है, विषेश रूप से जब वह पांडव राजकुमार अर्जुन को संबोधित कर रहे हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से हिंदू धर्म का एक ग्रंथ,भगवद् गीता को सुनाते हैं.
कई पुराणों में कृष्ण की जीवन कथा को बताया या कुछ इस पर प्रकाश डाला गया है . दो पुराण, भागवत पुराण और विष्णु पुराण में कृष्ण की कहानी की सबसे विस्तृत जानकारी है. भागवत पुराण जैसे कृष्ण-संबंधी साहित्य, प्रदर्शन के लिए इसके आध्यात्मिक महत्व को मानते हैं और उन्हें धार्मिक अनुष्ठान के रूप में मानते हैं तथा प्रतिदिन जीवन को आध्यात्मिक अर्थ के साथ जोड़ते हैं.
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