अफगानिस्तान में तालिबान सरकार: आपसी लड़ाई की वजह से हो रही देरी
तालिबान में अब्दुल गनी बरादर और हक्कानी नेटवर्क युवा नेता अनस हक्कानी के बीच मतभेदों को सुलझाने के लिए आईएसआई के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद को काबुल आना पड़ा.
highlights
- तालिबान के उदारवादी और कट्टरपंथी गुट में एकराय कायम नहीं
- पाकिस्तान की घुसपैठ की वजह से यह मसला और पेचीदा हो गया
- मुल्ला बरादर आईएसआई के बढ़ते प्रभाव के हैं सख्त खिलाफ
नई दिल्ली:
अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान सरकार के गठन की घोषणा के बारे में पिछले कुछ दिनों से लगातार कयास लगाए जा रहे हैं. काबुल में सरकार की घोषणा के बारे में पूछे जाने पर तालिबान (Taliban) के प्रवक्ता सोहेल शाहीन कहते हैं, 'कृपया धैर्य बनाए रखें. जल्द ही सबकुछ साफ हो जाएगा'. हालांकि शाहीन के धैर्य बनाए रखने के बयान के पीछे क्या वजह है यह समझने की हमारी कोशिश होगी. दरअसल शरिया कानून को लागू कराने के बारे में तालिबान के उदारवादी और कट्टरपंथी गुटों में एक राय कायम नहीं है. साथ ही सरकार का स्वरूप कैसा हो इस मसले पर भी वह एकमत नहीं हैं. तालिबान के विभिन्न गुट अफगानिस्तान और पड़ोसी मुल्कों में फैले हुए हैं. सबका एजेंडा और हित अलग-अलग हैं. कुछ आईएसआईएस से संबंध रखते हैं और खुद को तालिबानी बताते हैं. आईएसआईएस से जुड़े रहने की वजह से ऐसा माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में आतंकवाद और बढ़ेगा.
हक्कानी गुट से नहीं बन पा रही एकराय
जानकारों के मुताबिक तालिबान में आपसी लड़ाई तब और बढ़ जाएगी जब इनके पास पैसा खत्म हो जाएगा. तालिबान में अब्दुल गनी बरादर और हक्कानी नेटवर्क युवा नेता अनस हक्कानी के बीच मतभेदों को सुलझाने के लिए आईएसआई के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद को काबुल आना पड़ा. शुरू से ही आईएसआई हक्कानी नेटवर्क की सरपरस्त रही है और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ये चाहती है कि हक्कानी नेटवर्क को सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिले. इस खींचतान की वजह से अफगानिस्तान में सरकार गठन में देरी हो रही है. आईएसआई की शह पर हक्कानी नेटवर्क देश में इरानी मॉडल को अपनाना चाहता है, जिसमें सुप्रीम लीडर सर्वोच्च राजनीतिक और धार्मिक नेता होता है.
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मुल्ला बरादर और मुल्ला याकूब पर सरकार के स्वरूप पर ठनी
मुल्ला बरादर और हक्कानियों के बीच मतभेद के अलावा तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब चाहता है कि नई अफगान सरकार में सेना की भी हिस्सेदारी हो, जबकि मुल्ला बरादर सरकार के राजनीतिक स्वरूप को बनाए रखना चाहती है. यह भी देरी की एक वजह है. पाकिस्तान की घुसपैठ की वजह से यह मसला और पेचीदा हो गया है. दरअसल पाकिस्तान तालिबान की सेना को पुर्नगठित कर उन्हें प्रशिक्षण देकर अपना हित साधने में जुटा है. तालिबान के अधिकांश लड़ाके पश्तून हैं और पाकिस्तानी मदरसों से ट्रेनिंग लेकर आए हैं. पाकिस्तान को इस बात का डर सता रहा है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की तरह पश्तून लड़ाके सीमा पार करके उसके देश में आतंकी हमले शुरू न कर दें. पाकिस्तान की मंशा है कि बरादर की जगह हक्कानियों को सरकार के नेतृत्व की जिम्मेदारी मिले. इसके अलावा पंजशीर पर हमले के मामले में भी बरादर और अन्य तालिबानी गुट एकमत नहीं हैं.
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ड्रग-खनिज संपदा की सरपरस्ती किसे मिले... बड़ा सवाल यह भी
एक अन्य वजह यह भी है कि बरादर अफगानिस्तान में आईएसआई के प्रभाव को बढ़ते हुए नहीं देखना चाहते, क्योंकि आईएसआई ने ही अपनी छवि चमकाने के लिए बरादर को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था. सरकार गठन में देरी के आर्थिक कारण भी है. दरअसल ड्रग और खनिजों के स्मगलिंग द्वारा जुटाए गए पैसे से तालिबान पिछले 20 वर्षों से लड़ाई लड़ रहा है. इस धंधे की अगुवाई मुल्ला याकूब करता है और वह ड्रग खनिजों के अवैध व्यापार और फिरौती के धंधे को बनाए रखना चाहता है, जबकि नरमपंथी गुट इसके सख्त खिलाफ़ है. अफगानिस्तान में सरकार कायम करने पर पसोपेश अभी भी कायम है. तालिबान के मुख्य प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने शनिवार को लेखक को बताया की अगले सप्ताह तक सरकार के गठन की घोषणा हो जाएगी.
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