logo-image

ताइवान की हवाई शक्ति

जिओ पॉलिटिक्स भौगोलिक महत्व: हुहाईलेन का भौगोलिक और रणनीतिक महत्व सबसे ज्यादा है, दरअसल यह पूर्वी चीन सागर और फिलीपीन के सागर के करीब है। यहां से प्रशांत महासागर की दूरी भी दादा नहीं है।

Updated on: 24 Aug 2022, 12:17 PM

नई दिल्ली:

जिओ पॉलिटिक्स भौगोलिक महत्व: हुहाईलेन का भौगोलिक और रणनीतिक महत्व सबसे ज्यादा है, दरअसल यह पूर्वी चीन सागर और फिलीपीन के सागर के करीब है। यहां से प्रशांत महासागर की दूरी भी दादा नहीं है। जहां अमेरिका का सातवां बेड़ा तैयार रहता है। इसके पूर्व में जापान का ओकीनावा शहर है और उसी के करीब अमेरिका का बहुत बड़ा एयर और नेवल बेस गुवाम है, युद्ध की स्थिति में केवल इस तट रेखा से ही अमेरिका और उसके सहयोगी देश ताइवान की मदद कर सकते हैं ,क्योंकि यह चीन से सबसे अधिक दूरी पर मौजूद है।

तट रेखा को सुरक्षित बनाने के लिए ताइवान की तरफ से यहां पर वाटर माइंड लगाई जा चुकी है, बाकायदा कलर बॉल संकेत से अन्य जहाजों और मछुआरों को यह बताया जा रहा है कि इस क्षेत्र में मत आइए ,वरना वाटर यानी समंदर में लगाई गई माइंड से उनका जहाज क्षतिग्रस्त हो सकता है। दरअसल ताइवान की कोशिश है कि अगर चीन इस क्षेत्र के जरिए नौसैनिक हमला करने की कोशिश करें तो वाटर माइंड से उसकी नौसेना को ध्वस्त किया जा सके।

अगर चीन के द्वारा एमफीबीएस ऑपरेशन किया जाता है ,तो उस स्थिति से निपटने के लिए यहां पर तट रेखा पर भी लैंडमाइन लगाने की तैयारी की जा रही है, दरअसल अक्टूबर का महीना ऐसा महीना माना जाता है जब इस क्षेत्र में समंदर में ज्वार और भाटा काफी कम होता है। चक्रवात का खतरा भी नहीं रहता और इस महीने में चीन के द्वारा संभावित नेवल ऑपरेशन किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में तट रेखा के कुछ किलोमीटर के इलाके में लैंडमाइन लगाने की तैयारी शुरू हो चुकी है।

ऐतिहासिक और रणनीतिक महत्व

हुहाईलेन का इतिहास 1620 तक जाता है, पहली बार स्पेन को लगा कि यहां पर बड़े पैमाने पर सोना मिल सकता है ,इसलिए यह क्षेत्र सबसे पहले यूरोप की शक्ति स्पेन की कॉलोनी बना, लेकिन अट्ठारह सौ पचास में चीन के क्विन साम्राज्य ने इस क्षेत्र को जीत लिया ,लेकिन चीन का साम्राज्य भी लंबा नहीं चल पाया अट्ठारह सौ 95 से लेकर 1947 तक लगभग 50 साल तक यहां जापान की हुकूमत रही। जिसके बाद कुछ साल तक अमेरिकी नौसेना का देश रहा और 1949 के बाद यह पूरा क्षेत्र ताइवान की सरकार के नियंत्रण में है।

इस तट रेखा की 170 किलोमीटर दूर senkaku द्वीप समूह है। जो 3 देशों के बीच विवाद का बड़ा कारण है। इस नाम से तो इसे जापान में पुकारा जाता है ,जबकि फिलहाल इस क्षेत्र में जापान का ही प्रशासन चलता है, लेकिन चंद दिनों पहले जापान के एक्सक्लूसिव इकोनामिक जोन पर चीन की तरफ से मिसाइलें दागी गई थी।

इस श्रृंखला को चीन diaoyu द्वीप समूह ,जबकि ताइवान tiaoyutai द्वीप समूह के नाम से पुकारता है। यानी यह ऐसा क्षेत्र है जहां ना सिर्फ ताइवान और चीन के बीच टकराव है, बल्कि ताइवान और जापान के बीच भी गहरे मतभेद हैं, इसलिए इस बात का भी डर है कि कहीं तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत इसी क्षेत्र से ना हो जाए।

पूर्वी चीन सागर: वैश्विक विवाद और विश्व युद्ध

फ्रीडम शिल्ड वॉर एक्सरसाइज साउथ कोरिया और अमेरिका की नौसेना का ऑपरेशन आज से ही दक्षिण कोरिया में शुरू हुआ है। वहां से दक्षिण पूर्वी चीन सागर की दूरी ज्यादा नहीं है ,इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया के करीब प्रशांत महासागर में पिच ब्लेक एयर फोर्स एक्सरसाइज भी की जा रही है जिसमें 17 देश शामिल है, दरअसल उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच इस तरह का नौसैनिक अभ्यास 2017 के बाद कभी नहीं हुआ और कोरोना महामारी के बाद पहली बार 17 लोकतांत्रिक देशों की वायुसेना ऑस्ट्रेलिया में युद्ध अभ्यास कर रही हैं, जिसमें भारतीय वायु सेना भी शामिल है। इससे यह संकेत दिया जा रहा है कि युद्ध की स्थिति में ताइवान को अकेले नहीं छोड़ा जाएगा।

चियाशन एयर बेस का रणनीतिक महत्व और युद्ध की स्थिति में वैश्विक मदद

ताइवान के पास भारत की तरह सेकंड स्ट्राइक कैपेबिलिटी नहीं है। इसका अर्थ होता है कि अगर एक बार किसी देश के सभी सामरिक ठिकानों पर एक साथ हमला कर दिया जाए, तो वह शत्रु देश से बदला ले सके। भारत के पास अरिहंत जैसी परमाणु पनडुब्बी है, जो यह काम करने में सक्षम है, लेकिन ताइवान चीन के खिलाफ सेकंड स्ट्राइक कैपेबिलिटी नहीं है। जिसे तकनीकी भाषा में CIWS यानी क्लोज इन वेपन सिस्टम कहा जाता है। इस एयरबेस की मदद से लेने की कोशिश कर रहा है।

दरअसल इस एयर फोर्स बेस कि एक तरफ पूर्वी चीन सागर है, जबकि दूसरी तरफ ऊंची पर्वतमाला, इसलिए यहां पर कब्जा करना किसी भी दुश्मन देश के लिए बहुत मुश्किल है। अगर फिर भी चीन के द्वारा उसकी रॉकेट फोर्स जहां प्रक्षेपास्त्र के जरिए हमला करती है, तो दी यहां पर अंडरग्राउंड एयर हैंगर में 200 से ज्यादा विमानों को रखा जा सकता है। एयर बेस का रनवे ऐसा बनाया गया है। जिससे युद्ध की स्थिति में कम से कम नुकसान हो, यानी पूरे ताइवान की सामरिक शक्ति खत्म होने के बावजूद यहां से ड्रैगन को करारा जवाब देना संभव है।

यह एयरपोर्ट बेस 28 एकड़ में फैला हुआ है ,जबकि 1985 में 27 बिलियन डॉलर की लागत से इस का काम शुरू हुआ था। 1993 में यह पूरी तरीके से बनकर तैयार हुआ था, इसकी बनाने में अमेरिका समेत नाटो के कई देशों की अहम भूमिका है, जो परमाणु युद्ध की स्थिति में भी काम करने लायक बनाया गया है। यहां पर मिराज़ दो हजार और F16V जैसे अत्याधुनिक विमानों को रखा गया है।

मो बिस्वा, ताइवान की सामरिक रणनीति के भारतीय शोधकर्ता छात्र

यह ताइवान की युद्ध नीति पर पीएचडी करने वाले भारतीय छात्र हैं, जो बीते 6 सालों से ताइवान में रहते हैं यह मूल रूप से भारत के बिहार के निवासी हैं। इनके अनुसार हालांकि यूक्रेन की तुलना में जहां काफी कम छात्र ताइवान में पढ़ाई करते हैं, लेकिन युद्ध की स्थिति में होने निकालना भी बहुत मुश्किल हो जाएगा। यूक्रेन में तकरीबन 22,000 भारतीय छात्र मुख्य रूप से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे, जबकि ताइवान में लगभग 3,000 भारतीय छात्र इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन यूक्रेन युद्ध की स्थिति में हंगरी और पोलैंड के लैंड बॉर्डर से भारतीय छात्रों को ऑपरेशन गंगा के तहत निकाला गया ,लेकिन अगर चीन ताइवान पर हमला कर देता है, तो भारतीय छात्रों के पास समंदर या हवा दोनों रास्तों से निकलने का कोई मार्ग नहीं बचेगा।

यह बता रही हैं कि बीते 5 सालों से ताइवान की जनता चीन से बहुत नफरत करती है। ताइवान की जनता को इस बात का एहसास है जिस तरीके से चीन की साम्यवादी सरकार ने हांगकांग के लोकतंत्र को कुचल दिया ,उसी तरीके से ताइवान अगर चीन का हिस्सा बन जाएगा तो वहां लोकतांत्रिक मशीनरी खत्म कर दी जाएगी। यही वजह है कि वह अपनी लोकतंत्र और आजादी के लिए हर कीमत पर लड़ेंगे।

F16 वाईपर टेक ऑफ और इसकी खासियत

सोनिक बूम यानी दौगुनी की गति से तेज गति के साथ F16 वाईपर उड़ान भर रहा है और उसकी आवाज समुंदर ट्रक तक सुनाई दे रही है। दरअसल इसकी अधिकतम गति मार्क टू यानी ध्वनि की रफ्तार से दोगुना है।

F16 का निर्माण 70 के दशक में लॉकेट मार्टिन कंपनी के द्वारा किया गया था, लेकिन वाईवर इसका का अत्याधुनिक संस्करण है, जो पहली बार 2012 के सिंगापुर एयर शो में दिखाया गया। ताइवान अमेरिका द्वारा बनाए गए इस आधुनिक हवाई जहाज को खरीदने वाला पहला देश है। ताइवान के पास अभी डेढ़ सौ के करीब रहते फाइटर है ,जबकि ट्रम सरकार में 60 से ज्यादा नए हवाई जहाज खरीदने की डील हो चुकी है।

 

F16 V लैंडिंग के दौरान युद्ध की स्थिति में इसके महत्व को बताते हुए

एक्सक्लूसिव F16 की 3 मिनट में 3 लैंडिंग न्यूज़ नेशन के कैमरे पर कैद

युद्ध की आहट का इस बात से अंदाजा लगाया जा रहा है कि जब न्यूज़ नेशन का कैमरा चल रहा था, तब 3 मिनट के अंदर एक के बाद एक तीन F16 वाइपर प्लेन की लैंडिंग हुई और वह भी ध्वनि की गति से तेज उड़ते हुए, हालांकि इस बेस पर मिराज 2000 यानी उस डसॉल्ट कंपनी के बनाए हुए हवाई जहाज भी है जिसके रफेल का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना कर रही है ,लेकिन F16 सबसे आधुनिक है।

F16 वाईपर के अंदर एमरेम हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल को रखा जा सकता है जिसकी रेंज तकरीबन 40 किलोमीटर है ,जो चीन के पांचवीं पीढ़ी के चल लड़ाकू हवाई जहाजों को भी निशाना बना सकती है, जबकि न्यूज़ नेशन के कैमरे में कैद इन हवाई जहाजों में हार्पून मिसाइल को भी लगाया गया है, जो 139 किलोमीटर तक समंदर में किसी भी युद्धपोत को निशाना बना सकती है।

इस परिस्थितियों को देखकर यह साफ हो जाता है कि ताइवान और चीन के बीच कितना नाजुक संघर्ष चल रहा हैष आमतौर पर इतने सारे लड़ाकू हवाई जहाजों की लैंडिंग और टेक ऑफ तभी किया जाता है जब चीन की वायुसेना के द्वारा मीडियम लाइन को पार करके ताइवान के स्पेशल इकोनामिक जोन या एयर जॉन में प्रवेश किया जाए ,यानि जब न्यूज़ नेशन की टीम ग्राउंड जीरों पर मौजूद थी। उसी समय चीन की तरफ से उनकी लड़ाकू विमान ताइवान की तरफ बढ़ रहे थे और उन्हें रोकने के लिए लगातार F16 विमान उड़ाई जा रहे थे।

इस विमान की कई खासियत है जैसे इसका रेडार एक्टिव अरे रेडार जो बहुत दूर से दुश्मन के जहाज या मिसाइल को ट्रक कर सकता है और ड्रोन से हमला होने की स्थिति में उसे इलेक्ट्रॉनिक वार फेयर के जरिए जाम भी किया जा सकता है।

हेलमेट माउंट डिस्प्ले के साथ फ्लाई बाय वायर की तकनीक से लैस है। यह 4+ पीढ़ी का लड़ाकू हवाई जहाज जो मल्टीरोल के साथ हवाई शक्ति का परिचय दे सकता है। यह ताइवान का सबसे अत्याधुनिक जहाज है और तालिबानी वायु शक्ति की रीड की हड्डी भी..