हिमाचल की नई सुक्खू सरकार वादों को पूरा करने के लिए हजारों करोड़ कहां से लाएगी...
हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार को चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कई आर्थिक चुनौतियों से पार पाना होगा. मसलन पुरानी पेंशन स्कीम के तहत भुगतान करने के लिए हिमाचल सरकार को कम से कम 700 करोड़ रुपए अलग से चाहिए होंगे.
highlights
- पुरानी पेंशन योजना के लिए चाहिए होंगे 700 करोड़ रुपए
- महिलाओं से किए वादे के लिए सालाना चार हजार करोड़
- फ्री बिजली के लिए हर महीने जुटाने होंगे 200 करोड़ रुपए
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र की शीतकालीन राजधानी नागपुर में रविवार को 75 हजार करोड़ रुपए की विकास परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने आमजन को शॉर्टकट की राजनीति से चेताते हुए ऐसे राजनीतिक दलों के प्रति आगाह किया, जो जनता का पैसा विकास पर खर्च करने के बजाय निहित स्वार्थवश अल्प लाभ के लिए करते हैं. उनका साफतौर पर इशारा उन राजनीतिक दलों से था, जो विधानसभा चुनावों में सत्ता हासिल करने के लिए रेवड़ियों की सौगात का वादा करते हैं. पीएम मोदी ने साफतौर पर कहा कि आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया की प्रवृत्ति का भार अंततः जनता पर पड़ता है. साथ ही देश भी आर्थिक तौर पर खोखला होता है. उन्होंने कहा है कि यह एक विकृ्ति है, जिसमें करदाताओं की गाढ़ी कमाई को लुटा देने की प्रवृत्ति निहित है. इससे अंततः देश की अर्थव्यवस्था ही बर्बाद होगी. ऐसे में लोगों को उनकी गाढ़ी कमाई लूटने वाले राजनीतिक दलों से सावधान रहना चाहिए.
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में यूं तो हर पांच साल में जनता सत्ता बदल देती है. इसके बावजूद कांग्रेस ने इस चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ते हुए पुरानी पेंशन व्यवस्था को सत्ता में आते ही लागू करने समेत तमाम और आर्थिक सहूलियतें देने का वादा भी कर दिया. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी हिमाचल चुनाव में कांग्रेस की जीत का एक बड़ा आधार इन चुनावी घोषणाओं को ठहराया. सोमवार को हिमाचल के नए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने फिर दोहराया कि कैबिनेट की पहली बैठक में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करेंगे. जाहिर है पहले से आर्थिक स्तर पर चुनौतियों का सामना कर रहा राज्य गहरे आर्थिक संकट में फंसने की राह पर कदम बढ़ाने का फैसला कर चुका है. ठीक वैसे ही जब पंजाब विधानसभा चुनाव जीतने के लिए आम आदमी पार्टी ने तमाम मुफ्त योजनाओं का वादा किया था. और, भगवंत मान मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही केंद्र सरकार से आर्थिक पैकेज मांगने पहुंच गए थे.
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इसे समझते हुए कह सकते हैं कि हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार को चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कई आर्थिक चुनौतियों से पार पाना होगा. मसलन पुरानी पेंशन स्कीम के तहत भुगतान करने के लिए हिमाचल सरकार को कम से कम 700 करोड़ रुपए अलग से चाहिए होंगे. इसी तरह घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने से हर महीने 200 करोड़ रुपए ज्यादा चाहिए होंगे. कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश की 18 से 60 के वय की महिलाओं को हर महीने 15 हजार रुपए देने का भी वादा किया है. इस वय की हिमाचली महिलाओं की संख्या 23 लाख के पार बैठती है और इसके लिए सुक्खू सरकार को हर साल चार हजार करोड़ रुपए से अधिक चाहिए होंगे. राज्य के विकास के लिए परियोजनाएं बनाने और उन पर खर्च करने के लिए अलग से हजारों करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी. अब सवाल यह उठता है चुनावी जीत हासिल करने के लिए इन रेवड़ियों का वादा करने वाली कांग्रेस इसके लिए धन कहां से जुटाएगी.
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यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हिमाचल प्रदेश पर इस वक्त 70 हजार करोड़ रुपए के आसपास कर्ज है. वह भी तब जब राज्य की सालाना आमदनी 9 हजार करोड़ रुपए से कुछ अधिक है. जाहिर है आंकड़े बता रहे हैं कि हिमाचल सरकार का खर्च राजस्व से अधिक है. हालांकि अभी तक केंद्र सरकार से पूर्व की भारतीय जनता पार्टी सरकार को लगभग 25 हजार करोड़ रुपए का सहारा मिल जाता था, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि बदली राजनीतिक स्थितियों में क्या केंद्र से हिमाचल प्रदेश को यह आर्थिक मदद मुहैया होगी.अगर दीर्घकालिक नजरिये को अपनाकर देखें तो पुरानी पेंशन योजना वाले कर्मचारियों का रिटायरमेंट 2025 तक शीर्ष पर होगा. उस वक्त कम से कम 10 हजार करोड़ रुपए पेंशन भुगतान करने के लिए चाहिए होंगे. सरकार बनाने के बाद अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या सुक्खू सरकार के पास इन मदों में खर्च को जुटाने का कोई रोड मैप है?
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