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पुलिस पर कैसे जगेगा भरोसा?

पुलिस सुधार और आधुनिकीकरण के मोर्चे पर केंद्र गम्भीर है. ‘MPF’ नाम की योजना के तहत राज्यों को इंसास/ AK 47 जैसे हथियार दिए जा रहे हैं तो वहीं UAV, नाइट विज़न डिवाइस और CCTV जैसे ज़रूरी उपकरण भी मुहैया करवाए जा रहे हैं.

Updated on: 22 Jul 2021, 12:11 PM

highlights

  • पुलिस सुधार और आधुनिकीकरण के मोर्चे पर केंद्र गम्भीर
  • एक लाख की आबादी पर सिर्फ 155.78 पुलिसकर्मी ही मौजूद 

नई दिल्ली:

इस साल 20 जुलाई को सरकार ने संसद में बताया कि पुलिस सुधार और आधुनिकीकरण के मोर्चे पर केंद्र गम्भीर है. ‘MPF’ नाम की योजना के तहत राज्यों को इंसास/ AK 47 जैसे हथियार दिए जा रहे हैं तो वहीं UAV, नाइट विज़न डिवाइस और CCTV जैसे ज़रूरी उपकरण भी मुहैया करवाए जा रहे हैं. साथ ही साइबर क्राइम जैसे जटिल अपराध से निपटने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. साल 2019-20 में इस सबके लिए केंद्र ने 811 करोड़ रुपए के बजट का इंतज़ाम किया था. इसमें से क़रीब 63 करोड़ उत्तर प्रदेश, 47 करोड़ महाराष्ट्र जबकि 27 करोड़ बिहार सरकार को दिए गये. कुछ साल पहले भी पुलिस सुधार के मोर्चे पर मोदी सरकार ने गंभीरता दिखाई थी. तीन साल में 25,000 करोड़ रुपये खर्च करने का एलान किया था. इसमें 18,636 करोड़ रुपये केन्द्र के जबकि 6,424 करोड़ रुपये राज्यों के हिस्से के थे. मौजूदा केंद्र सरकार पुलिस सुधार के मोर्चे पर हालात बदलने के ढेरों दावे कर रही है जो वक़्त की ज़रूरत भी है. क्योंकि कुछ साल पहले तक कैग और बीपीआरडी की रिपोर्ट बताती रही थीं कि राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पुलिस के पास हथियार तक नहीं थे! तो कई राज्यों में पुलिस के पास वाहन नहीं थे. अपराध से लड़ने के लिए ज़रूरी संसाधन नहीं थे! ज़ाहिर है केंद्र की योजना से हालात सुधरेंगे लेकिन अभी भी कई मोर्चों पर काम करना ज़रूरी है.

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मसलन इसी साल 24 मार्च को सरकार ने लोक सभा में बताया कि देश में प्रति एक लाख की आबादी पर औसतन 195.39 पुलिसकर्मी स्वीकृत हैं जबकि हक़ीक़त में मौजूद हैं 155.78! राज्यवार समझें तो उत्तर प्रदेश में जहां एक लाख की आबादी पर स्वीकृत 183 के मुक़ाबले औसतन 133 पुलिसकर्मी मौजूद हैं, तो वहीं महाराष्ट्र में 198 के मुक़ाबले 174, पश्चिम बंगाल में 157 के मुक़ाबले 100 जबकि बिहार में 115 के मुक़ाबले महज़ 76 पुलिस वाले सुरक्षा में तैनात हैं! राहत की बात ये कि 2017 तक देश में 1 लाख की आबादी पर केवल 151 पुलिसकर्मी थे जो अब बढ़कर 155 के आँकड़ें को पार कर चुके हैं लेकिन अभी भी ये संख्या यूएन के मुताबिक एक लाख की आबादी पर होने वाले 222 पुलिसकर्मियों के मुक़ाबले काफ़ी कम है! जो हैं उनमें भी आम नागरिक के लिए कितने मौजूद हैं ये भी बड़ा सवाल है. कुछ साल पुरानी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 663 भारतीयों पर 1 पुलिसकर्मी था जबकि देश के 20 हजार वीआईपी के लिए औसतन 3-3 पुलिसकर्मी तैनात थे! सवाल ये कि पुलिस प्राथमिकता में कौन- वीआईपी या आम आदमी ?

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शायद यही वजह है कि पुलिस और जनता के बीच विश्वास का गम्भीर संकट रहा है. 2018 में हुए एक सर्वे के मुताबिक़ सिर्फ़ 25% भारतीयों को ही देश की पुलिस पर भरोसा था! FICCI की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में पुलिस से क़रीब 4 गुना ज़्यादा प्राइवेट सिक्युरिटी गार्ड हैं! मानों पुलिस से ज़्यादा भरोसेमंद निजी गार्ड हों! एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में 30 लाख से ज़्यादा कुल लाइसेंसी हथियार हैं, जिनमें से एक तिहाई अकेले उत्तर प्रदेश में थे! जहां की पुलिस से भी 5-6 गुना ज़्यादा लाईसेंसी हथियार वहाँ के लोगों के पास थे! पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड समेत बाक़ी राज्यों के हालात भी किसी से छिपे नहीं हैं.

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समझना होगा कि संविधान के मुताबिक़ ‘पुलिस’ राज्य की ज़िम्मेदारी है ना कि केंद्र की, जिसे बेहतर करने के लिए राज्यों को केंद्र के साथ कंधे से कंधा मिलाना होगा. बीते कुछ सालों में कई राज्य सरकार इस मोर्चे पर आगे आई भी हैं लेकिन अभी भी लम्बा सफ़र तय करना बाक़ी है. मामला विश्वास, सुरक्षा और न्याय का जो है.