इस जिले में होली पर दामाद को रंग नहीं बल्कि बैठाया जाता है गधे पर, अजीब है परंपरा

हर शहर में अलग अलग तरह से होली का त्योहार मनाया जाता है. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि हर जगह रंगो का ही त्यौहार हो.

हर शहर में अलग अलग तरह से होली का त्योहार मनाया जाता है. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि हर जगह रंगो का ही त्यौहार हो.

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Nandini Shukla
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रंग नहीं बल्कि बैठाया जाता है गधे पर( Photo Credit : daysoftheyear)

होली पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. रंगो का त्योहार लोगों के दिलों से नफरत हटा कर और प्यार के रंग भर देता है. इसे रंगों के त्योहार और वसंत के त्योहार के रूप में जाना जाता है. धुलंडी या रंगवाली होली फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. इस साल 17 मार्च को होलिका दहन और 18 मार्च को धुलंडी का पर्व मनाया जाएगा. होली के त्योहार के दिन लोग एक दूसरे को रंग लगते हैं. हर शहर में अलग अलग तरह से होली का त्योहार मनाया जाता है. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि हर जगह रंगो का ही त्यौहार हो. ये सुनने में अजीब लगेगा लेकिन ऐस एक्यू है आइये जानते हैं. 

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90 साल की परंपरा आज भी जारी

महाराष्ट्र के एक जिले के एक गांव में एक अजीबो गरीब होली परंपरा है जो 90 से ज्यादा वर्षों से चली आ रही है. गांव के नए नवेले दामाद को महाराष्ट्र के बीड जिले में गधे की सवारी कराते है और उन्हें उनके पसंद के कपड़े मिलते हैं. जिले की केज तहसील के विदा गांव में इस रस्म का पालन किया जाता है. गांव के नए दामाद की पहचान कराने में 3 से 4 दिन लग जाते हैं. यह परंपरा सुनने में अजीब है लेकिन ये सच है.  गांव वाले उस पर नजर रखते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह होली के दिन लापता न हो जाए. वह दामाद इस रस्म में शामिल हो, इसलिए उस वक़्त उसका कहीं जाना आना मना होता है. 

नया दामाद बैठता है गधे पर 

जानकारों के मुताबिक इस परंपरा की शुरुआत आनंदराव देशमुख नाम के एक निवासी ने की थी, जिसे ग्रामीणों द्वारा बहुत सम्मान दिया जाता था. इसकी शुरुआत आनंदराव के दामाद से हुई थी और तब से यह जारी है. गधे की सवारी गांव के बीचोंबीच से शुरू होती है और 11 बजे तक हनुमान मंदिर पर समाप्त होती है. गांव के चुने हुए दामाद को उसकी पसंद के कपड़े दिए जाते हैं. होली से पहले सोशल मीडिया पर यह रसम खूब वायरल होती है. 

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Source : News Nation Bureau

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