भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके सहयोगी बुच विल्मोर भारतीय समनुसार सुबह 3:47 मिनट पर स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान से सुरक्षित पृथ्वी पर लौट आए. दोनों अंतरिक्ष यात्री 9 महीने तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन बिताए. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अंतरिक्ष यात्री आपस में या पृथ्वी पर मौजूद वैज्ञानिकों से कैसे बात करते हैं?
अंतरिक्ष में संवाद की चुनौतियां
पृथ्वी पर साउंड वेब्स हवा में ट्रैवल करके हमारे कानों तक पहुंचती हैं. लेकिन अंतरिक्ष में वैक्यूम होता है, यानी वहां हवा नहीं होती, जिससे ध्वनि तरंगें ट्रैवल नहीं कर पाती हैं. अगर कोई अंतरिक्ष यात्री बिना किसी डिवाइस के बोलने की कोशिश करे, तो उसकी आवाज कहीं नहीं पहुंचेगी.
कैसे होती है बातचीत?
अंतरिक्ष यात्री एक स्पेशल कम्युनिकेशन का यूज करते हैं, जिसमें रेडियो ट्रांसमीटर और रिसीवर शामिल होते हैं. उनके हेलमेट में लगे माइक्रोफोन और हेडफोन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के माध्यम से संवाद स्थापित करते हैं.
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ISS में बातचीत कैसे होती है?
अंतरिक्ष यात्रियों के बीच कम्युनिकेशन ISS में यात्री आपस में इंटरकॉम सिस्टम का उपयोग करके बातचीत करते हैं, वहीं, मिशन कंट्रोल सेंटर से बात करने के लिए सैटेलाइट रेडियो लिंक का उपयोग किया जाता है. यह सिस्टम पृथ्वी पर मौजूद एंटीना से जुड़कर रेडियो सिग्नल को आगे बढ़ाती है. अगर रेडियो संपर्क बाधित हो जाए, तो बैकअप संचार प्रणाली का उपयोग किया जाता है.
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स्पेस में बिना उपकरण के संवाद संभव नहीं
अगर कोई व्यक्ति बिना संचार उपकरण के स्पेस में बात करने की कोशिश करेगा, तो उसकी आवाज खाली स्थान में गुम हो जाएगी. यही कारण है कि अंतरिक्ष में संवाद के लिए उन्नत रेडियो संचार प्रणाली की जरूरत पड़ती है.
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