क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है कि क्या वाकई में पुराने जमाने में घोड़े घी खाते थे? अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं, “पुराने जमाने के घोड़े घी खाते थे”. यह वाक्य कई बार मजाकिया अंदाज में या फिर तंज कसने के लिए बोला जाता है. लेकिन क्या सच में पुराने जमाने में घोड़े घी खाते थे? आइए इस कहावत के पीछे की हकीकत जानते हैं.
क्या सच में घोड़े घी खाते थे?
घोड़ों की पारंपरिक खुराक में घास, चना, दलिया और अन्य अनाज होते हैं, लेकिन घी उनके आहार का प्रमुख हिस्सा नहीं है. हालांकि, पुराने समय में युद्ध के लिए तैयार किए जाने वाले घोड़ों को ताकतवर बनाने के लिए विशेष आहार दिया जाता था, जिसमें कभी-कभी घी भी मिलाया जाता था.
कई ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, राजाओं और योद्धाओं के घोड़ों की फिटनेस बनाए रखने के लिए खास आहार तैयार किया जाता था. इसमें चना, गुड़, घी और दूध को मिलाकर खिलाने की परंपरा थी, जिससे घोड़ों को अधिक ऊर्जा मिलती थी. हालांकि, यह हर घोड़े के आहार में अनिवार्य नहीं था, बल्कि केवल विशेष घोड़ों को ही दिया जाता था.
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कहावत का असली मतलब
“पुराने जमाने के घोड़े घी खाते थे” कहावत का मतलब यह है कि पहले के जमाने में लोगों को अच्छा पोषण और सुविधाएं मिलती थीं, लेकिन अब परिस्थितियां वैसी नहीं हैं. इस कहावत का इस्तेमाल अक्सर तब किया जाता है जब कोई पुरानी चीजों की तारीफ करता है या पुराने समय को बेहतर बताने की कोशिश करता है.
ऐतिहासिक रूप से देखें तो कुछ खास परिस्थितियों में घोड़ों को घी खिलाया जाता था, लेकिन यह उनकी नियमित खुराक का हिस्सा नहीं था. अब भी यह कहावत मजाक या व्यंग्य में कही जाती है, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ पुराने समय की बेहतर परिस्थितियों को दर्शाना होता है. अगर अब नजर डालें तो ना इतने घोड़े बचे हैं और ना ही घी इतना सस्ता है.
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