बेंगलुरु में ही क्यों मनाया जाता है Zero Shadow Day? और ये इतना खास क्यों है?

Zero Shadow Day: सोचिए, दोपहर के वक्त आप धूप में खड़े हों, लेकिन आपके शरीर की कोई परछाई न दिखे. न दाएं, न बाएं. ऐसा कोई सपना नहीं, बल्कि विज्ञान का एक मजेदार करिश्मा है, जिसे Zero Shadow Day कहते हैं.

Zero Shadow Day: सोचिए, दोपहर के वक्त आप धूप में खड़े हों, लेकिन आपके शरीर की कोई परछाई न दिखे. न दाएं, न बाएं. ऐसा कोई सपना नहीं, बल्कि विज्ञान का एक मजेदार करिश्मा है, जिसे Zero Shadow Day कहते हैं.

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Priya Singh
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Zero Shadow Day

Zero Shadow Day

Zero Shadow Day: आपने कभी सोचा है कि दोपहर के वक्त सूरज सिर के ठीक ऊपर हो, और फिर भी आपकी परछाई दिखाई न दे, ऐसा हो सकता है? जी हां, बेंगलुरु में ऐसा होता है. वो भी साल में दो बार. दरअसल ये जादू जैसा लगने वाला पल एक साइंटिफिक फेनोमेनन है जिसे Zero Shadow Day कहा जाता है. बेंगलुरु में इस पल को बड़े खास अंदाज में मनाया भी जाता है.तो चलिए जानते हैं कि आखिर ये ज़ीरो शैडो डे क्या होता है, क्यों मनाया जाता है और बेंगलुरु में इसका क्या महत्व है.

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Zero Shadow Day क्या होता है?

ज़ीरो शैडो डे उस खास दिन को कहते हैं जब सूरज आकाश में एकदम सिर के ऊपर होता है, यानी कि Zenith position में. उस वक्त अगर कोई व्यक्ति या वस्तु स्टैंडिंग पोजिशन में हो, तो उसकी परछाई जमीन पर नहीं पड़ती. यह घटना हर साल दो बार उन जगहों पर होती है, जो कर्क रेखा (Tropic of Cancer) और मकर रेखा (Tropic of Capricorn) के बीच स्थित होती हैं.

बेंगलुरु में ही क्यों मनाया जाता है Zero Shadow Day?

ज़ीरो शैडो डे हर जगह नहीं मनाया जाता. यह केवल उन्हीं जगहों पर मनाया जाता है, जो भूमध्य रेखा (Equator) और कर्क रेखा (Tropic of Cancer) के बीच आती हैं. बेंगलुरु ऐसी ही जगहों में से एक है.

बेंगलुरु में ये दिन खास क्यों है?

बेंगलुरु में ज़ीरो शैडो डे खास इसलिए है क्योंकि यहां के लोगों में साइंस और टेक्नोलॉजी को लेकर उत्सुकता ज्यादा होती है.स्कूल, कॉलेज और साइंस सेंटर इस दिन खास इवेंट्स रखते हैं. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिज़िक्स जैसे संस्थान इसे लाइव डेमो के साथ मनाते हैं.

कैसा दिखता है ये 'साया-विहीन' पल?

ज़ीरो शैडो डे पर जब दोपहर ठीक 12 बजे के आस-पास आप किसी चीज को सीधा खड़ा करते हैं- जैसे बोतल, स्टिक या खुद खड़े हो जाएं, तो उसका कोई शैडो नहीं दिखाई देता. ऐसा लगता है मानो वो चीज हवा में तैर रही हो. ये केवल कुछ मिनटों का नज़ारा होता है, लेकिन आंखों के लिए कमाल का अनुभव होता है.

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क्या केवल बेंगलुरु में ही होता है ये दिन?

नहीं, ऐसा नहीं है. ये फेनोमेनन उन सभी शहरों में होता है जो कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच आते हैं. जैसे: चेन्नई, पुडुचेरी, हैदराबाद, विशाखापट्टनम, नागपुर, अहमदाबाद. लेकिन बेंगलुरु में ये खास तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है, और यही इसे एक यूनिक लेवल पर ले जाता है.

क्यों इतना स्पेशल है ये मोमेंट?

ये एक लाइव खगोल विज्ञान (astronomy) का एक्सपीरियंस होता है. बच्चों और स्टूडेंट्स के लिए ये एक मजेदार लर्निंग मोमेंट बन सकता है. सोशल मीडिया पर इसके फोटो और वीडियो हर साल वायरल होते हैं. यह हमें पृथ्वी की गति और सूरज की स्थिति के बारे में जागरूक करता है.

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