Kumbh Mela 2025: कुंभ स्नान भारत की सांस्कृतिक स्वतंत्रता, उत्सवधर्मिता, सार्वभौमिकता और सामाजिक भावना का एक अध्याय है. अतीत से लेकर आज तक कुंभ का महत्व सनातन धर्म की परंपराओं को मजबूत करता है और हिंदू संस्कृति की एकता का मार्ग प्रशस्त करता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कुंभ मेला कितना पुराना है और इसका इतिहास क्या है? आज हम आपको इससे जुड़ी कई सारी जानकारी देंगे...
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार कुम्भ मेले का इतिहास 850 वर्ष पुराना बताया जा रहा है. लेकिन कुछ अभिलेखों में कुंभ मेले की शुरुआत 525 ईसा पूर्व बताई गई है. जानकारों का कहना है कि गुप्त काल में कुम्भ का आयोजन बहुत अच्छे से हुआ था. जहां सम्राट शिलादित्य 617-647 के काल के कुछ प्रामाणिक तथ्य मिलते हैं. बाद में श्रीमद आग़ा जगतगुरू और उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य के वंशजों ने दशनामी संत अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की थी. वहीं जानकारों का मानना है कि कुंभ मेले का इतिहास इससे भी पुराना है. जिसका उल्लेख वेदों और पुराणों में भी मिलता है. वेदों में अनेक स्थानों पर कुम्भ शब्द है. जिसका मतलब कुंभ महोत्सव या कुंभ उत्सव नहीं है, बल्कि जल प्रवाह या मटका है.
कितना प्राचीन है कुंभ मेला -
ऋग्वेद परिशिष्ट में प्रयाग और स्नान तीर्थ का उल्लेख किया गया है. इसके साथ ही बौद्ध धर्म के पाली सिद्धांत में मज्झिम निकाय की धारा 1.7 का भी उल्लेख किया गया है.
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महाभारत में भी पापों का प्रायश्चित करने के लिए प्रयाग में तीर्थ स्नान का उल्लेख किया गया है. इसके साथ ही तीर्थयात्रा पर्व में कहा गया है कि हे भरतश्रेष्ठ! जो मनुष्य माघ मास में कठोर व्रत रखकर प्रयाग में स्नान करता है, उसे निष्कलंक स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
प्राचीन ग्रंथों में भी प्रयाग और अन्य नदियों के तट पर त्योहारों का उल्लेख किया गया है. इनमें वे स्थान भी शामिल हैं जहां आज कुंभ मेला लगता है.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.)