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महज 20 साल की उम्र में पेशवा बने नाना साहेब, मराठा साम्राज्य के विस्तार में निभाई अहम भूमिका

महज 20 साल की उम्र में पेशवा बने नाना साहेब, मराठा साम्राज्य के विस्तार में निभाई अहम भूमिका

महज 20 साल की उम्र में पेशवा बने नाना साहेब, मराठा साम्राज्य के विस्तार में निभाई अहम भूमिका

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IANS
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महज 20 साल की उम्र में पेशवा बने नाना साहेब, मराठा साम्राज्य के विस्तार में निभाई अहम भूमिका

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 22 जून (आईएएनएस)। मराठा साम्राज्य का इतिहास वीरों की गाथाओं से भरा पड़ा है। इन्हीं में से एक नाम पेशवा रहे बालाजी बाजीराव का है जिन्हें नाना साहेब के नाम से भी जाना जाता है। 41 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कहने वाले बालाजी ने अपने 21 साल के शासनकाल (1740-1761) में मराठा साम्राज्य को दक्षिण में तमिलनाडु से उत्तर के पंजाब तक फैलाकर भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय लिखा।

एक दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ, कुशल प्रशासक और साहसी योद्धा के रूप में बालाजी बाजीराव ने मराठा शक्ति को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचाया। हालांकि, पानीपत की तीसरी लड़ाई में मिली हार के लिए उनकी आलोचना भी की जाती है। एक तरफ उन्होंने मराठा गौरव को नई बुलंदियों पर पहुंचाया और दूसरी तरफ एक युग के अंत का साक्षी भी बने।

बालाजी का जन्म 8 दिसम्बर 1720 को हुआ। उनका निधन 23 जून 1761 को हुआ। पिता पेशवा बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद 1740 में उन्हें पेशवा नियुक्त किया गया था। बालाजी ने अपने 21 साल के शासनकाल में मराठा शक्ति को दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, मालवा, और बंगाल तक मजबूत किया। उन्होंने मुगल साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर मराठों को उत्तर भारत में प्रमुख शक्ति बनाया।

बालाजी ने पेशवा शासन को संगठित किया और स्थानीय सरदारों के साथ गठबंधन बनाकर मराठा प्रशासन को मजबूत किया। उनके जीवन में यूं तो कई मोड़ आए जब उनके शासनकाल की जमकर तारीफ हुई, लेकिन पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) में उनके शासनकाल में मराठों को अहमद शाह अब्दाली की अफगान सेना से बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इस हार ने मराठा साम्राज्य को कमजोर किया और बालाजी बाजीराव को गहरा आघात पहुंचाया। वह इसे बर्दाश्त नहीं कर सके और मानसिक तथा शारीरिक रूप से टूट गए। आगे चलकर उनकी तबीयत खराब रहने लगी और 23 जून 1761 को पुणे में उनका निधन हो गया।

बालाजी के पिता बाजीराव प्रथम एक महान मराठा सेनानायक थे। उनके मार्गदर्शन में बालाजी को सैन्य और प्रशासनिक शिक्षा दी गई। इस दौरान उन्होंने कूटनीति और युद्ध कौशल में महारत हासिल की। पिता के निधन के बाद महज 20 वर्ष की आयु में साल 1740 में बालाजी को छत्रपति शाहू ने पेशवा नियुक्त किया। उस समय मराठा साम्राज्य एक उभरती हुई शक्ति था, और बालाजी ने इसे और मजबूत करने का दायित्व संभाला।

इतिहासकारों के अनुसार, 21 वर्ष के शासनकाल में बालाजी बाजीराव को एक दूरदर्शी और कुशल प्रशासक के रूप में याद किया जाता है, लेकिन पानीपत युद्ध में उनकी रणनीतिक कमियां (जैसे कि सेना की अपर्याप्त तैयारी और गठबंधनों की कमी) की आलोचना भी होती है। हालांकि, उनकी मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य में कुछ समय के लिए अस्थिरता आई, लेकिन उनके द्वारा बनाए गए ढांचे ने मराठों को 18वीं सदी के अंत तक एक प्रमुख शक्ति बनाए रखा।

--आईएएनएस

डीकेएम/एकेजे

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