जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने 1960 में हुआ सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया. इस आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत हुई थी, जिसमें एक विदेशी नागरिक भी शामिल था. भारत के इस निर्णय के बाद पाकिस्तान में खलबली मची हुई क्योंकि इस संधि के तहत भारत द्वारा छोड़ा गया पानी पाकिस्तान की 80% किसानों की खेती निर्भर है. ऐसे में आने वाले कुछ महीनों में पाकिस्तान में वॉटर इमरजेंसी जैसे ही स्थिति बन जाएगी.
पाकिस्तान में पानी को लेकर हाहाकार
भारत ने चेनाब नदी पर बने सलाल और बगलीहार बांधों के गेट बंद कर दिए हैं, जिससे नदी का जलस्तर तेजी से गिर गया है. इसका सीधा असर पाकिस्तान में मराला हेडवर्क्स पर पानी के बहाव पर पड़ा है. इस पानी की कमी के कारण पाकिस्तान में खरीफ की फसल के शुरुआती सीजन (मई-जून) में 21% तक जल संकट की चेतावनी दी गई है.
इंडस रिवर सिस्टम अथॉरिटी (IRSA) की सलाहकार समिति ने खरीफ सीजन के शेष महीनों के लिए पानी की उपलब्धता की समीक्षा की. समिति ने कहा कि अगर चेनाब नदी में पानी की सप्लाई सामान्य नहीं रहती है, तो कमी और बढ़ सकती है.
भारत ने लिए कई कूटनीतिक कदम
भारत ने केवल जल संधि ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के खिलाफ कई सख्त कदम उठाए हैं. इसमें पाकिस्तान से सभी प्रकार के आयात पर प्रतिबंध, पाकिस्तानी झंडे वाले जहाजों को भारतीय बंदरगाहों से प्रतिबंधित करना, अटारी-वाघा सीमा को पूरी तरह सील करना और पाकिस्तान के सभी सैन्य सलाहकारों को भारत से निष्कासित करना शामिल है.
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किशनगंगा डैम पर भी तेज काम
केंद्र सरकार अब किशनगंगा डैम को लेकर भी सख्त कदम उठाने की योजना बना रही है. भारत के इन फैसलों को आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है, जिससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की नीति अपनाई जा रही है.
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