Sunita Williams : धरती पर लौटने के बाद सुनीता विलियम्स के शरीर में बड़े बदलाव, नहीं रहता नियंत्रण

Sunita Williams : पृथ्वी पर वापस लौटने से अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर महीनों से पड़ा तनाव तुरंत कम नहीं होता. जैसे-जैसे उनका शरीर गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल ढलता है उन्हें चक्कर आना और हृदय संबंधी कमजोरी का अनुभव होता है, लेकिन धीरे-धीरे यह समस्याएं सामान्य हो जाती हैं.

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Mohit Sharma
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sunita williams latest news Photograph: (Social Media)

Sunita Williams : नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स पृथ्वी पर वापस आ गई हैं. उन्होंने 9 महीने और 14 दिनों का लंबा समय अंतरिक्ष में बिताया है. पृथ्वी की तरह अंतरिक्ष में ग्रेविटी नहीं है. इस वजह से अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से शरीर में कई बड़े बदलाव होते हैं. आइए इस खबर में आपको बताते हैं कि सुनीता विलियम्स के शरीर में क्या-क्या चेंजेज आ सकते हैं. माइक्रो ग्रेविटी में महीनों गुजारना शरीर के लिए बहुत कष्टदायक होता है. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बिना मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं. हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और शरीर में तरल पदार्थ बदल जाते हैं. अंतरिक्ष में ज्यादा समय तक रहने से अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियां तेजी से कम होती हैं, क्योंकि वे अपना वजन उठाने के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल नहीं करते.

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पृथ्वी से होने वाले विकरण की तुलना में 10 गुना अधिक विकरण

इसी वजह से उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और वे हर महीने अपनी हड्डियों का 1 प्रतिशत खो देते हैं. हड्डियों के कमजोर होने की यह स्पीड पृथ्वी पर उम्र बढ़ने के एक पूरे वर्ष के बराबर है. इतना ही नहीं अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विकिरण एक और बड़ी चिंता का विषय है. अंतरिक्ष में 6 महीने या उससे अधिक समय तक रहने वाले व्यक्तियों में पृथ्वी से होने वाले विकरण की तुलना में 10 गुना अधिक विकरण प्राप्त होता है. जिसकी वजह से उन्हें कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा सुरक्षित है. अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में रहते हुए अपने शरीर के लगभग 20 प्रतिशत तरल पदार्थ और लगभग 5 पर शरीर के द्रव्यमान को खो देते हैं. अंतरिक्ष में त्वचा पतली हो जाती है और यह आसानी से फट जाती है, लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद यह धीरे-धीरे ठीक होती है.

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मोतिया बिंद होने का भी खतरा

 अंतरिक्ष में ज्यादा समय तक रहने से विकरण की वजह से मोतिया बिंद होने का भी खतरा बढ़ जाता है. पृथ्वी पर वापस लौटने से अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर महीनों से पड़ा तनाव तुरंत कम नहीं होता. जैसे-जैसे उनका शरीर गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल ढलता है उन्हें चक्कर आना और हृदय संबंधी कमजोरी का अनुभव होता है, लेकिन धीरे-धीरे यह समस्याएं सामान्य हो जाती हैं. अंतरिक्ष में ज्यादा समय तक रहने से रीढ़ की हड्डी का भी आकार बदल जाता है, लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद यह धीरे-धीरे सामान्य होने लगता है. अंतरिक्ष से पृथ्वी पर आने के बाद एक सप्ताह तक नींद में भी समस्या आ सकती है, लेकिन एक सप्ताह के बाद यह भी नॉर्मल हो जाती है.

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6 महीने के बाद भी हड्डियों के टूटने का जोखिम

 पृथ्वी पर आने के दो सप्ताह के बाद शरीर में कम हुआ तरल पदार्थ दोबारा सामान्य हो जाता है. वहीं पृथ्वी पर वापस आने के तीन महीने बाद पतली त्वचा सामान्य हो जाती है. शरीर का द्रव्यमान पृथ्वी के स्तर पर आ जाता है और दृष्टि संबंधी समस्याएं खत्म हो जाती हैं. हालांकि 6 महीने के बाद भी हड्डियों के टूटने का जोखिम बना रहता है और साथ ही कैंसर होने का भी खतरा बढ़ जाता है. बता दें कि अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय रूसी अंतरिक्ष वैलेरी पोल्या कोव ने बिताया था इन्होंने लगातार 437 दिन यानी लगभग 14 महीने अंतरिक्ष में बिताए थे जो अब तक का सबसे लंबा एकल अंतरिक्ष मिशन है. 

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