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भारत में ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फैल रही अश्लीलता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है.
Supreme Court: भारत में सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ अब एक गंभीर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है. इस मुद्दे को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई. इस दौरान सर्वोच्च अदालत ओटीटी और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट को लेकर सख्त नजर आई. कोर्ट की ओर से केंद्र सरकार समेत प्रमुख सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों को नोटिस जारी किया है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से कदम तब उठाया गया है जब ओटीटी समेत सोशल मीडिया पर अश्लीलता को नियंत्रित करने के लिए एक याचिका दायर की गई थी. इसी याचिका को लेकर मामले की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ड मसीह की बेंच ने की. बेंच ने अश्लील कंटेंट को नियंत्रित करने का काम कार्यपालिका और विधायिका के ज्यादातर क्षेत्र में बताया. न्यायाधीश गवई ने कहा कि 'यह हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है केंद्र सरकार इसमें कुछ करे.'
बता दें कि शीर्ष अदालत में जो याचिका दाखिल की गई थी उसके मुताबिक ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाए जाने संबंधित उचित कदम उठाने की मांग की गई थी. इसके साथ ही अश्लीलता को नियंत्रित करने के लिए नेशनल कंटेंट कंट्रोल अथॉरिटी (NCCA) के गठन के लिए भी दिशा-निर्देश देने की मांग थी.
बता दें कि पूर्व सूचना आयुक्त उदय माहुरकर सहित कुछ अन्य व्यक्तियों ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उनका कहना था कि अश्लीलता का प्रसार समाज में नैतिक मूल्य कमजोर कर रहा है और इससे बच्चों व युवाओं पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा. उनका कहना था कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है और लगातार कदम उठा रही है. हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस समस्या के समाधान के लिए और अधिक ठोस दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है. यह मामला खासकर इसलिए भी संवेदनशील है, क्योंकि इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से गलत जानकारी, अश्लीलता, और हिंसा का प्रसार बच्चों और युवा पीढ़ी को प्रभावित कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया और कहा कि “हमने देखा है कि माता-पिता बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उन्हें फोन दे देते हैं. यह एक गंभीर समस्या है, और इस पर कार्यपालिका और विधायिका को ध्यान रखना चाहिए.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे, जो इंटरनेट पर सक्रिय होते हैं, उन्हें ऐसे कंटेंट से बचाने के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचे की आवश्यकता है.
भारत में डिजिटल प्लेटफार्मों पर अश्लीलता को नियंत्रित करने के लिए पहले भी कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन परिणाम उत्साहजनक नहीं रहे हैं. ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे नेटफ्लिक्स, उल्लू, ऑल्ट बालाजी, और अन्य सोशल मीडिया कंपनियां इस समस्या के समाधान में अक्सर विफल रही हैं. इन प्लेटफार्मों पर अभद्र और अश्लील सामग्री की भरमार है, जो समाज में गलत संदेश देती है और बच्चों के लिए खतरा पैदा करती है.
नए दिशानिर्देशों की आवश्यकता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि केंद्र सरकार, सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को एक सख्त नीति लागू करनी चाहिए, जो समाज के हर वर्ग को इस तरह की नकारात्मक सामग्री से बचाए. इस दिशा में एक मजबूत और स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता है, जो अश्लीलता और गलत सामग्री को नियंत्रित कर सके.
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