पूर्वी लद्दाख में स्थित न्योमा एयर स्ट्रिप अब पूरी तरह ऑपरेशनल तैयारियों के साथ भारतीय वायु सेना के लिए तैयार है. वायु सेना के अधिकारियों ने हाल ही में इस एयर स्ट्रिप का निरीक्षण कार्य पूरा किया है, जिससे यह सुनिश्चित हो गया है कि यह सामरिक रूप से महत्वपूर्ण एयर बेस अब सी-130 जैसे बड़े सैन्य विमानों के टेक-ऑफ और लैंडिंग के लिए तैयार है.
न्योमा का सामरिक महत्व
न्योमा एयर स्ट्रिप पूर्वी लद्दाख के संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है, जो चीन के साथ सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC के करीब है. यह एयर स्ट्रिप भारतीय सेना और वायु सेना के लिए सामरिक रूप से बेहद अहम है, क्योंकि यह ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों और सैन्य सामग्री की तेज तैनाती सुनिश्चित करेगी. इस एयर स्ट्रिप के ऑपरेशनल होने से भारत की सैन्य तैयारियों को मजबूत आधार मिलेगा. यह क्षेत्र, जहां पहले केवल छोटे विमान और हेलीकॉप्टर ऑपरेट कर सकते थे, अब बड़े सैन्य परिवहन विमान जैसे सी-130 के लिए सक्षम हो गया है. इससे भारतीय सेना को रसद आपूर्ति और सैनिकों की आवाजाही में बड़ी सुविधा होगी.
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चीन के खिलाफ भारत की तैयारी
ईस्टर्न लद्दाख में डिसेंगेजमेंट के बाद भले हीं शांति की बयार बह रही हो लेकिन डिस्कलेशन अभी बाकी है. वहीं, चीन नीति और नीयत पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता लिहाजा भारत अपनी सैन्य तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता. गलवान घाटी संघर्ष के बाद से हीं ईस्टर्न लद्दाख में भारत ने अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने पर खास जोर दिया है. न्योमा एयर स्ट्रिप को अपग्रेड करना उसी रणनीति का हिस्सा है. उधर चीन भी लगातार अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाता रहा है जिसके जवाब में भारत ने भी बुनियादी ढांचे के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ा. न्योमा एयर स्ट्रिप का ऑपरेशनल होना भारतीय सेना को तेजी से जवाब देने और युद्ध के हालात में तुरंत तैनाती करने की क्षमता प्रदान करेगा.
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तकनीकी खासियतें
न्योमा एयर स्ट्रिप को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि यह अत्यधिक ठंड और ऊंचाई वाली भौगोलिक स्थितियों में भी काम कर सके. सी-130 जैसे विमान, जो भारी सैन्य उपकरणों और सैनिकों को तेजी से लाने-ले जाने में सक्षम हैं, यहां आसानी से ऑपरेट कर सकते हैं. इसके अलावा, इस एयर स्ट्रिप को भविष्य में और भी बड़े सैन्य विमानों के लिए तैयार किया जा सकता है. न्योमा एयर स्ट्रिप का ऑपरेशनल होना भारतीय रक्षा रणनीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. यह न केवल भारतीय सेना को सामरिक बढ़त देगा, बल्कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए भारत की मजबूत उपस्थिति का संकेत भी है.