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डॉक्टर कैपिटल लेटर में ही लिखें दवा और प्रेसक्रिप्शन, ओडिशा हाईकोर्ट ने दिया बड़ा आदेश

ओडिशा हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश जारी करते हुए कहा है कि सरकारी या निजी या अन्य मेडिकल सेट-अप में काम कर रहे डॉक्टरों को दवाओं का नाम बड़े अक्षरों में लिखना चाहिए, ताकि वह पढ़ा जा सके.

Updated on: 14 Aug 2020, 11:15 AM

भुवनेश्वर:

डॉक्टरों की लिखावट को लेकर कई बार सवाल उठते रहते हैं. उनकी लिखावट आम लोगों को समझ नहीं आता है. कई बार तो फार्मासिस्ट भी उनकी लिखावट नहीं समझ पाते हैं. ऐसे में मेडिको लीगल केस में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है. ओडिशा हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि डॉक्टर कैपिटल लेटर में ही दवा और प्रेसक्रिप्शन लिखें. सुनवाई के दौरान जस्टिस एसके पाणिग्रही ने कहा कि सरकारी या निजी या अन्य मेडिकल सेट-अप में काम कर रहे डॉक्टरों को दवाओं का नाम बड़े अक्षरों में लिखना चाहिए, ताकि वह पढ़ा जा सके.

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जमानत अर्जी पर दिया कोर्ट ने आदेश
ओडिशा हाईकोर्ट ने यह फैसला एक जमानत अर्जी को लेकर दिया है. कोर्ट में जमानत अर्जी एक याचिकाकर्ता ने अपनी बीमार पत्नी की देखभाल के लिए दाखिल की थी. याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में मेडिकल रिकॉर्ड पेश किया था. कोर्ट को उस मेडिकल रिकॉर्ड को पढ़ने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. कोर्ट ने कहा कि यह आम आदमी के समझ से परे हैं. ओडिशा हाई कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों की अपठनीय लिखावट मरीजों, फार्मासिस्टों, पुलिस, अभियोजन पक्ष, जस्टिस के लिए अनावश्यक परेशानी पैदा करती है, जिन्हें इस प्रकार की मेडिकल रिपोर्टों से जूझना पड़ता है. डॉक्टरों को पर्चे, ओपीडी स्लिप, पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सुपाठ्य और पूरी तरह से साफ लिखना चाहिए.

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ओडिशा हाईकोर्ट के जस्टिस एसके पाणिग्रही ने कहा कि कोर्ट को लगता है कि सभी डॉक्टरों को एक कदम बढ़ाने और दवा और प्रेसक्रिप्शन को सुपाठ्य और कैपिटल लेटर में लिखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में प्रेसक्रिप्शन को साफ-सुथरा लिखने के कई विकल्प हैं, इससे इलाज और भी मरीज फ्रेंडली होगा. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार, और नैतिकता) (संशोधन) विनियम, 2016 का जिक्र किया, जिसमें सभी चिकित्सक को दवा और प्रेसक्रिप्शन बड़े अक्षरों में लिखने का आदेश देता है. कोर्ट ने राज्य सरकार को इसके लिए मेडिकल प्रोफेशनल्स के बीच जागरूकता अभियान चलाने का आदेश दिया है.