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पश्चिम बंगाल: हिंसक हुआ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का आंदोलन, ममता ने बुलाई सेना

बंगाल सरकार की तरफ से सरकारी स्कूलों में बंगाली भाषा को अनिवार्य बनाए जाने के प्रस्ताव के खिलाफ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) का आंदोलन हिंसक हो गया है।

Updated on: 09 Jun 2017, 07:24 AM

highlights

  • बांग्ला भाषा अनिवार्य किए जाने के प्रस्ताव के बाद दार्जिलिंग में भड़की हिंसा, ममता ने बुलाई बैठक
  • जीजेएम के हिंसक प्रदर्शन के बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आला अधिकारियों की बैठक बुलाई है

New Delhi:

बंगाल सरकार की तरफ से सरकारी स्कूलों में बंगाली भाषा को अनिवार्य बनाए जाने के प्रस्ताव के खिलाफ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) का आंदोलन हिंसक हो गया है। हालात की गंभीरता को देखते हुए केंद्र ने राज्य सरकार के आवेदन पर सेना की तैनाती का फैसला लिया है।

उग्र आंदोलनकारियों और पुलिसर्मियों के बीच हुई झड़प में गुरुवार को 15 पुलिसकर्मी घायल हो गए और पांच वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। आंदोलन को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले दागने वाले पुलिसकर्मियों पर जीजेएम के आंदोलनकारियों ने पथराव किया और उनके पांच वाहनों को आग लगा दी। 

इस हिंसा में आंदोलनकारियों ने एक यातायात चौकी में भी आग लगा थी। इसके अलावा, बैरीकेड भी तोड़े गए। हिंसा के दौरान राज्य मंत्रिमंडल की बैठक हुई। 

जीजेएम के हिंसक प्रदर्शन के बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आला अधिकारियों की बैठक बुलाई है। रक्षा सूत्रों के मुताबिक बंगाल सरकार के आग्रह पर दार्जिलिंग में सेना तैनात की जा रही है। 

मुख्यमंत्री बनर्जी द्वारा राज्य के हर स्कूल में बंगाली भाषा को अनिवार्य किए जाने के बाद से ही उत्तर बंगाल में राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है। इस क्षेत्र में दबदबा रखने वाली जीजेएम बनर्जी की इस घोषणा से नाखुश है। 

बनर्जी ने सोमवार को यह घोषणा कर स्थिति को शांत करने की कोशिश की थी कि दार्जिलिंग, दोआर और तराई के इलाकों के स्कूलों में बंगाली भाषा अनिवार्य नहीं होगी। 

बनर्जी ने कहा कि जीजेएम उनकी सरकार के बारे में झूठी बातें फैला रहा है। 

गोरखाओं के लिए अलग राज्य की मांग का मुद्दा सबसे पहले 1980 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) द्वारा उठाया गया था। 2008 में जीजेएम ने जीएनएलएफ को अलग कर दिया।

अलग राज्य की इस मांग की हिंसा में तीन दशकों में अब तक कई जानें जा चुकी हैं। इसके अलावा, इससे क्षेत्र के चाय और लकड़ी के व्यापार को तथा पर्यटन को भी नुकसान पहुंचा है।

ममता बनर्जी सरकार की तरफ से जारी सर्कुलर में कहा गया था कि उनका उत्तरी बंगाल की पहाड़ियों में बंग्ला भाषा को अनिवार्य करने का कोई इरादा नहीं है। ममता फिलहाल इस क्षेत्र के दौरे पर हैं।

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