2019 का चुनाव जीतने को मोदी सरकार का सबसे बड़ा दांव, सवर्णों के लिए 10% आरक्षण को मंजूरी
केंद्र सरकार ने सवर्णों को खुश करने के लिए आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों के लिए आरक्षण को मंजूरी दे दी है.
नई दिल्ली:
लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. केंद्र सरकार ने सवर्णों को खुश करने के लिए आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों के लिए आरक्षण को मंजूरी दे दी है. केंद्र सरकार के मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कैबिनेट के फैसले की जानकारी दी. इसके लिए मोदी सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा. बताया जा रहा है कि सरकार आरक्षण की सीमा को 50 से बढ़ाकर 60 फीसदी करेगी, क्योंकि फिलहाल आरक्षण देने की सीमा सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसद ही निर्धारित कर रखी है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इसे मोदी सरकार का बड़ा ट्रंप कार्ड माना जा रहा है. हाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिली हार के बाद से लगातार कयास लगाए जा रहे थे कि मोदी सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है. सोमवार को इन कयासों पर विराम लग गया. राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ने यह कदम उठाकर राफेल और कर्जमाफी जैसे मुद्दों की हवा निकाल दी है.
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माना जा रहा है कि सरकार धारा 15 और 16 में बदलाव करने जा रही है. धारा 15 के तहत शिक्षा संस्थानो में आरक्षण और धारा 16 के तहत सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. अभी जो 49 प्रतिशत में कोई छेड़छाड़ नहीं होगी. स्वर्ण जातियों की ये 70 साल पुरानी मांग है. इसका फ़ायदा ब्राह्मण, राजपूत और अन्य स्वर्ण जातियों को मिलेगा. ये आरक्षण संविधान में संशोधन के तहत किया जायेगा.
माना जा रहा है कि सरकार ने पिछले साल एससी-एसटी कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद किए गए प्रावधानों को केंद्र सरकार ने संशोधन विधेयक के जरिए फिर से बहाल कर दिया था. सरकार के इस कदम से सवर्ण काफी नाराज थे. सवर्णों ने सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध किया था. भारत बंद भी किया गया था. इस दौरान मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई हिस्सों में थोड़ी बहुत हिंसा भी हुई थी. उसके बाद से सवर्णों ने विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए सोशल मीडिया पर नोट को वोट देने का अभियान चलाया. उसका असर दिखा भी. मध्य प्रदेश में बीजेपी के कई प्रत्याशियों को नोटा से कम वोट मिले और अपने ही गढ़ से बीजेपी को बेदखल होना पड़ा.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक कोई भी राज्य 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकता. मौजूदा व्यवस्था के तहत देश में अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण है. संविधान में सीधे तौर पर आरक्षण का उल्लेख नहीं है. लेकिन, संविधान की मूल भावना के मुताबिक आरक्षण की व्यवस्था है. संविधान के अनुच्छेद 46 में समाज में शैक्षणिक और आर्थिक रुप से पिछड़े लोगों के हित का खास ख्याल रखने की जिम्मेदारी सरकार की होने की बात कही गई है. खास तौर पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को अन्याय और शोषण से बचाए जाने की बात दर्ज है. दस फीसदी आरक्षण के पात्र वही लोग होंगे जिनको पहले किसी भी श्रेणी में आरक्षण नहीं मिल रहा है और इकोनॉमिकली बैकवर्ड हैं.
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आरक्षण का इतिहास
- 1935- भारत सरकार अधिनियम 1935 में आरक्षण का प्रावधान किया गया.
- 1942 - बी आर अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की. उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की.
- 1991- नरसिम्हा राव सरकार ने अलग से अगड़ी जातियों में गरीबों के लिए 10% आरक्षण शुरू किया.
- 1992- इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को सही ठहराया.
- 2006 से केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू हुआ। कुल आरक्षण 49.5% तक चला गया.
- 2007- केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी (OBC) आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन दे दिया.
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