भारत में वैक्सीन बनने के बाद भी आ सकती हैं ये दिक्कतें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले से कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की मुहिम को युद्ध स्तर तक ले जाने की बात कर चुके हैं. रूस में वैक्सीन का उत्पादन शुरू हो गया है. भारत, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन वैक्सीन ट्रायल के तीसरे चरण में पहुंच गए हैं.
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले से कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की मुहिम को युद्ध स्तर तक ले जाने की बात कर चुके हैं. रूस में वैक्सीन का उत्पादन शुरू हो गया है. भारत, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन वैक्सीन ट्रायल के तीसरे चरण में पहुंच गए हैं. ऐसे में सवाल उठता की वैक्सीन कब तक, किस तरह और किस किसको दी जाए? इसके लिए राष्ट्रीय टीकाकरण की उच्चस्तरीय कमेटी का गठन नीति आयोग के स्वास्थ्य सदस्य डॉ बीके पौल की अध्यक्षता में हो चुकी है.
भारत में वैक्सीन का प्री क्लिनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है. मानव परीक्षण का पहला और दूसरा चरण भी सफल रहा है. तीसरे चरण में वैक्सीन का ट्रायल पहुंच गया है. तीसरे चरण में बड़े जन समूह में टीकाकरण का परीक्षण किया जाता है.
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वैक्सीन देने के लिए भी क्रम निर्धारण करने की रणनीति शुरू हो गई है. जैसी सबसे पहले मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी, सुरक्षा सेवाओं के जवानों यानी करोना वरियर को वैक्सीन दी जाएगी. वैक्सीन की ब्लैक मार्केटिंग को रोकने के लिए वैक्सीन के उत्पादन से लेकर वितरण तक की जियो टैगिंग होगी. इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और डिजिटल रूप से रखी जाएगी पूरी प्रक्रिया पर नजर.
पल्स पोलियो अभियान से लेकर बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन तक भारत में टीकाकरण के कई स्तर पर मुहिम चलाई जा चुकी है. देश में फार्मा उद्योग और सरकारी तंत्र राष्ट्रीय टीकाकरण के लिए विकसित हैं. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जैसे ही कोविड-19 वैक्सीन को अनुमति मिलेगी युद्ध स्तर पर टीकाकरण का कार्यक्रम शुरू हो जाएगा.
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आपके मन में सबसे बड़ा सवाल यही होगा कि महामारी से मुक्ति का टीका कब तक आपके पास होगा? कब तक आप संक्रमण के साए में जीने के लिए मजबूर रहेंगे और कब तक टीकाकरण के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में भी सुधार आएगा? यह जानने से पहले वैक्सीन की जटिलताओं को समझना जरूरी है.
वैक्सीन की जटिलताएं
आमतौर पर एक वैक्सीन के निर्माण में 15 से 35 साल लगते हैं. मानव परीक्षण को जल्दी खत्म करने के लिए वॉलिंटियर के अंदर जानबूझकर करोना का संक्रमण भी दिया जाता है. इसी वजह से कोविड-19 की वैक्सीन जल्दी आने की उम्मीद है. एंटीबॉडी विकसित करने के लिए वैक्सीन में जिंदा या मृत अवस्था में संक्रमण यानी करोना वायरस को रखा जाता है. लेकिन इस तरह कि इंसान के शरीर में इसका कोई दुष्प्रभाव ना पड़े. टीकाकरण के बाद व्यक्ति में संक्रमण से लड़ने वाले एंटीबॉडी और टी सेल विकसित हो जाते हैं. वैक्सीन पोलियो की तरह ड्रॉप या फिर इंजेक्शन से दी जाती है. कई बार नियमित अंतराल पर भी टीकाकरण जरूरी होता है.
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अब तक आप यह तो समझ गए होंगे कि करोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाना मुश्किल डगर है. हालांकि राहत की बात यह है कि भारत में ही वैक्सीन पर काम चल रहा है. भारत बायोटेक स्वदेशी है, जबकि zydus कैडिया और पुणे की फार्मा कंपनी के साथ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की वैक्सीन का उत्पादन भी जोरों पर है. भारत में वैक्सीन का ट्रायल तीसरे दौर में पहुंच गया है. लेकिन सूत्रों की मानें तो बुधवार को संसदीय समिति की बैठक में विशेषज्ञों के द्वारा बताया गया कि तीसरे चरण का मानव परीक्षण सबसे लंबा और जटिल होता है. लिहाजा वैक्सीन के बनने में अभी कुछ महीनों का समय और लग सकता है.
वैक्सीन निर्माण पर खड़े हो रहे कई सवाल
वैक्सीन का निर्माण तो हो रहा है लेकिन इसे लेकर कई सवाल अभी भी खड़े हैं. जैसी बीते दिनों मलेशिया में D614C नामक कोविड-19 का स्ट्रेन अलग ही तरीके से नजर आया जो सामान्य करोना वायरस से 10 गुना ज्यादा घातक है. इससे संक्रमण फैलने का खतरा अधिक है. अगर भारत के ही आंकड़ों पर नजर डालें तो जहां राजधानी दिल्ली में करीब एक लाख 72 हजार करोना के मामले सामने आए. लेकिन मौत का आंकड़ा 4200 से अधिक है. वहीं आंध्र प्रदेश में करोना के कुल मामले तीन लाख से ज्यादा हैं लेकिन मौत का आंकड़ा 28 सौ के करीब है. इससे यह शक भी गहरा जाता है कि क्या करोना वायरस अपना रूप बदल रहा है? और क्या एक ही वैक्सीन पूरी दुनिया के लिए रामबाण इलाज बन सकती है?
क्या सक्षम है भारत
अंत में सवाल यह भी बच जाता है कि अगर भारत में बनी वैक्सीन दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सस्ती भी हुई तो क्या भारत सरकार देश के 130 करोड़ आबादी तक इस वैक्सीन को पहुंचाने का आर्थिक बोझ उठाने में सक्षम है? खासतौर पर जब देश के आर्थिक हालात पहले से ही मंदी की चपेट में हैं और अगर वैश्विक स्तर की बात करें तो पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बात की आशंका जता चुका है कि अमीर बड़े और शक्तिशाली देशों के नागरिकों तक तो कोरोना वायरस कि वैक्सीन पहुंच जाएगी लेकिन गरीब देशों के लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है.
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