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अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के खिलाफ सुरक्षित रखा फैसला

मंगलवार को अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल और प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन की दलील सुनने के बाद प्रशांत भूषण को अवमानना मामले में क्या सजा दी जाए, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

Updated on: 25 Aug 2020, 05:19 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने आज प्रशांत भूषण की अवमानना मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. मंगलवार को अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल और प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन की दलील सुनने के बाद प्रशांत भूषण को अवमानना मामले में क्या सजा दी जाए, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस अरुण मिश्रा ने फैसला सुरक्षित रखते हुए भी कहा  कि जज अपने लिए कुछ नहीं कह सकते. व्यवस्था की रक्षा कौन करेगा? मैं कुछ दिनों बाद रिटायर होने वाला हूं. क्या आप रिटायर जज होने के नाते मुझ पर अटैक करना शुरू कर दें. आपने अपने बयान में महात्मा गांधी की बात कही लेकिन माफी मांगने को तैयार नहीं हुए. 

दरअसल इस मामले में दो ट्वीट्स को लेकर अवमानना के मामले में दोषी ठहराए गए प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) ने सुप्रीम कोर्ट कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर माफी मांगने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने प्रशांत भूषण को अपने बयान पर माफी मांगने के लिए दो दिन का समय दिया था. प्रशांत भूषण ने कोर्ट में दाखिल किए अपने जवाब में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें मौलिक अधिकारों के रक्षा करने की उम्मीद है.

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सुनवाई के दौरान किसने क्या कहा?

वहीं मंगलवार को हुई सुनवाई में राजीव धवन ने भूषण के बयान को पढ़ने की इजाजत मांगी. जस्टिस मिश्रा ने ये कहते हुए इंकार किया कि हम पहले ही पढ़ चुके है. कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को पहले सुनने की इच्छा जताई. अटॉर्नी जनरल ने कहा, इससे पहले भी कई सीटिंग और रिटायर्ड जज न्यायपालिका में करप्शन को लेकर अपनी बात रख चुके है. अटॉर्नी जनरल ने कहा, ये सारे बयान दरअसल न्यायपालिका की बेहतरी के लिए हैं.

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने ये भी कहा कि प्रशांत भूषण को सज़ा नहीं दी जानी चाहिए. उन्हें चेतावनी देकर छोड़ा जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि बाकी बयानों को छोड़िए. इस केस में बताइये क्या किया जा सकता है. भूषण पहले ही कह चुके है कि उन्हें कोई खेद नहीं है. जस्टिस मिश्रा, हम जानते हैं कि दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं है. गलती हरेक से होती है. लेकिन गलती करने वाले को इसका एहसास तो होना चाहिए.

अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को राफेल केस से जुड़े उस मामले की याद दिलाई जिसमे खुद AG वेणुगोपाल ने भूषण के खिलाफ अवमानना का केस दायर किया था. उन्होंने कहा - उस मामले में भूषण ने खेद जताया और मैंने उनके खिलाफ अवमानना का केस वापस ले लिया. बेहतर होगा कि कोर्ट इस मामले में भी उदारता दिखाते हुए भूषण को सज़ा न दे.

AG ने एक बार फिर कोर्ट से आग्रह करते हुए भूषण के न्यायपालिका में सक्रिय योगदान की बात कही. उन्होंने कहा, जनहित के कई मसले उन्होंने कोर्ट में उठाये हैं.

इस पर जस्टिस गवई ने कहा, उनका योगदान अपनी जगह ठीक है. पर इस केस में उनका रुख देखिए. आपने भी अवमानना केस तब वापस लिया जब उन्होने इसके लिए खेद जताया पर यहां ऐसा नहीं है. भूषण अपनी बात पर कायम हैं.

जस्टिस मिश्रा ने कहा, भूषण कई बार ऐसे बयान दे चुके हैं. मसलन रामजन्म भूमि केस को लेकर भी उन्होंने टिप्पणी की है. उसमे फैसला देने वाले अभी तक सिर्फ एक जज रिटायर हुए है. AG वेणुगोपाल ने कहा, भूषण आइंदा ऐसा नहीं करेंगे. जज ने कहा, तो ऐसा उन्हें कहना चाहिए. वो तो अपने ट्वीट को सही ठहरा रहे है.

AG वेणुगोपाल ने कोर्ट से आग्रह किया कि इस मामले में भूषण की ओर से दिये जवाब पर कोर्ट विचार ही न करे. जस्टिस मिश्रा ने कहा, ऐसा भला कैसे सम्भव है. लोग हमारी इसके लिए आलोचना करेंगे कि हमने खुद न्यायपालिका की गरिमा को गिराने वाले स्पष्टिकरण को यूं ही छोड़ दिया. जरा गौर कीजिए, उन्होंने स्पष्टिकरण में क्या लिखा है. उन्होने कहा है बतौर संस्था SC ढह गया गया. क्या उन्होंने अवमानना को ही और आगे नहीं बढ़ाया है.

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राजीव धवन की दलील

धवन ने कहा, मेरी ड्यूटी सिर्फ अपने मुवक्किल के लिए नहीं, कोर्ट के लिए भी है. मैं वरिष्ठ वकील की हैसियत से बोल रहा हूं. आप भूषण के बतौर वकील किए गए उसके काम को देखें. खुद पूर्व CJI ( जस्टिस खेहर) के रिटायर होने के बाद मैंने अपने आर्टिकल में उनके 'सुल्तान की तरह काम करने को लिखा था, लेकिन मेरे खिलाफ कोई अवमानना का केस नहीं चला.

धवन ने अपने आर्टिकल, किताबों का हवाला देते हुए कहा कि क्या ये सब भी अदालत की अवमानना माने जाएंगे. धवन ने कहा, जब हम कोर्ट के प्रति जिम्मेदारी समझते है, तभी आलोचना करते है। अदालत को ऐसे आलोचना को सही तरीके से लेना चाहिए, अन्यथा नहीं, जस्टिस लोढ़ा , जस्टिस कुरियन , जस्टिस लोकुर , इन सब ने वही बाते कही. क्या सबकों अवमानना का दोषी करार दे दिया जाएगा.

धवन ने कहा, संसद की आलोचना होती है. लेकिन वह विशेषाधिकार की शक्ति का कम इस्तेमाल करते हैं. SC को भी आलोचना को उसी तरह लेना चाहिए. आप आदेश में ये भी मत लिखवाये कि आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए. भूषण हमेशा से आलोचनात्मक रहे है.
क्या उन्हें भविष्य में आलोचना से रोका जा सकता है. धवन ने कहा, मैं यही कहूंगा कि उन्हें सज़ा देकर शहीद मत बनाइए. कोर्ट परिपक्वता दिखाए.

धवन ने कहा, ये विवाद यही ख़त्म हो जाएगा अगर कोर्ट उदारता का परिचय दे. ये मामला आगे कितना तूल पकड़ेगा , ये इस पर निर्भर करेगा कि आप क्या सज़ा देते है. मैं कहूंगा कि आप उन्हें सजा देकर शहीद मत बनाइये. इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा, प्रशांत भूषण के ट्वीट और बयान को देखें, तो दुःख होता है. बार के इतने सीनियर मेंबर से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती. मैं हमेशा वकीलों के पेंडिंग केस में मीडिया बयानबाजी न करने की सलाह देता रहा हूं. एक राजनेता और कोर्ट ऑफिसर में अंतर है, इसे समझना चाहिए.

जस्टिस मिश्रा ने आगे कहा, आप भी इस सिस्टम का हिस्सा हैं. आप इसे यूं ही बर्बाद नहीं कर सकते.
हम भी बार का हिस्सा है, उससे अलग नहीं है. मैं रिटायर होने वाला हूं लेकिन मैं प्रेस में बयान नहीं दूंगा. ये हमारे एथिक्स है, जिन्हें हमे कायम रखना है. हर बात के लिए हम प्रेस के पास नहीं जा सकते.

उन्होंने कहा, भूषण कोर्ट में जो लिखित जवाब देते हैं. उसे पहले मीडिया में जारी कर देते हैं. क्या इतने सीनियर एडवोकेट का ऐसा करना सही है.अगर वकील न्यायपालिका में लोगों के भरोसे को गिराने वाले बयान देंगे तो लोग कोर्ट क्यों आएंगे?

जस्टिस मिश्रा ने कहा, आप हमारी पीड़ा को समझिए. हरेक आजकल न्यायपालिका की आलोचना करने में लगा है, पर क्या उनके खिलाफ एक्शन लिया. क्या प्रशांत भूषण को ही हमने अभी तक सज़ा तय की है.

भूषण के वकील धवन जस्टिस मिश्रा की इस बात से समहत नज़र आये. उन्होंने कहा, ये सही है कि कोर्ट में रखे जाने से पहले केस मीडिया में नहीं रखा जाना चाहिए. कोर्ट ने एक बार फिर सज़ा तय करने से पहले AG वेणुगोपाल का फाइनल कमेंट पूछा. AG ने बताया कि मैं आपकी समस्या को समझ सकता हूं कि जज अपने खिलाफ लगाए आरोपों पर अपना बचाव नहीं कर सकते. AG ने आगे कहा, भूषण की ओर से पूर्व जजों के बारे में जो कहा गया, उस पर फैसला उनको सुने बिना नहीं हो सकता. इसलिए इसे रहने देना चाहिए. भूषण कह चुके है कि वो न्यायपालिका का बहुत सम्मान करते है. इसे ध्यान में रखा जाए, जस्टिस मिश्रा ने कहा, लेकिन भूषन ने तो सीटिंग जजों के बारे में भी आरोप लगाए हैं. क्या उन्हें भी यहां बुलाया जाना चाहिए

जस्टिस मिश्रा ने कहा, जजों की हमेशा आलोचना होती रही है, उनके परिवार को परेशान किया जाता रहा है लेकिन वो बोल नहीं सकते. आप बार के सीनियर मेंबर है. किसी के लिए ( भूषण के लिए) आपके मन में लगाव हो,वो अपनी जगह है. पर हम उम्मीद करते है कि आप निष्पक्ष होकर सोचें.