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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बाबरी विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी को तकनीकी आधार पर बरी करने के पक्ष में नही

न्यायमूर्ति पी सी घोष और आर एफ नरीमन की बेंच ने कहा, 'हम तकनीकी आधार पर मुक्ति को स्वीकार नहीं करेंगे और हम पूरक आरोपपत्र की अनुमति देंगे'

Updated on: 07 Mar 2017, 04:12 PM

नई दिल्ली:

बाबरी विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य नेताओं  को महज टेक्नीकल ग्राउंड पर राहत नहीं दी जा सकती। ऐसे में एक बार फिर इन नेताओं पर जांच बैठ सकती है।

कोर्ट ने कहा है इस मामले में टेक्नीकल ग्राउंड पर 13 लोगों को छोड़ दिया गया था। न्यायमूर्ति पी सी घोष और आर एफ नरीमन की बेंच ने कहा, 'हम तकनीकी आधार पर मुक्ति को स्वीकार नहीं करेंगे और हम पूरक आरोपपत्र की अनुमति देंगे'

बेंच ने सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई से कहा कि रायबरेली और लखनऊ में हो रही अलग-अलग सुनवाई को एक कर देना चाहिये। साथ ही कोर्ट ने सीबीआई को कहा कि इस मामले में सभी 13 आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश की पूरक चार्जशीट दाखिल करें।

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यह बाते बाबरी विध्वंस मामले में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और बीजेपी, विहिप के अन्य नेताओं पर से आपराधिक साजिश रचने के आरोप हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कही।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 मई 2010 को बीजेपी नेता लालकृषण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत दूसरे बीजेपी और वीएचपी के नेताओं के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मामला हटा लिया गया था। जिसके खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में इन आऱोपी नेताओं के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मामले को बहाल कर देता है तो लालकृषण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती और दूसरे नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इन लोगों की दलील है कि 2010 में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने 9 महीने की देरी से अपील की थी। देरी के आधार पर इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए।

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इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट अब 22 मार्च को सुनवाई करेगा। लखनऊ के मामले में तो आपराधिक साजिश की धारा हट चुकी है। रायबरेली के मामले में सभी धाराएं बरकरार हैं। इस याचिका में इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले को भी नामंज़ूर करने की मांग की गई है जिसमें उसने विशेष अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 120B हटा दिया था।

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