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क्या तमिलनाडु में फिर होगी मनारगुडी माफिया की वापसी?

सतह पर दिख रही इस शांति के गर्भ में एक तूफ़ान पल रहा है, जिसके किसी भी वक़्त फूटने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। क्या है यह तूफ़ान?

Updated on: 07 Dec 2016, 12:42 PM

highlights

  • शशिकला अस्सी के दशक में जयललिता के करीब आईं
  • शुरुआत में वो अम्मा के भाषणों के वीडियो बनाती थीं
  • पिछले पांच सालों में इस माफिया के पर कतरे गए थे

New Delhi:

जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु शोक मना रहा है। सियासत भी शांत है और सत्ता का हस्तांतरण भी हो चुका है। सतह पर दिख रही इस शांति के गर्भ में एक तूफ़ान पल रहा है, जिसके किसी भी वक़्त फूटने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। क्या है यह तूफ़ान? इस तूफ़ान का नाम है मनारगुडी माफिया। दक्षिणी तमिलनाडु के तिरुवरुर ज़िले में पड़ने वाले इस छोटे से तालुके की जनसंख्या महज़ 70 हज़ार है पर यहाँ के लोगों का प्रभाव पूरे तमिलनाडु पर है।

इसकी वजह है शशिकला नटराजन। मनारगुडी शशिकला का घर है। जयललिता के साथ साये की तरह रहने वाली शशिकला उनके अंतिम वक़्त तक साथ रहीं। एक पल के लिए भी उन्होंने जयललिता के पार्थिव शरीर का साथ नहीं छोड़ा। शशिकला के साथ उनके रिश्तेदार भी मौजूद थे।

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शशिकला के भाई डॉ. धिवाहरन के साथ भास्करन, डॉ. वेंकटेश और महादेवन भी मौजूद थे। शशिकला और उनके रिश्तेदारों के इसी समूह को, जिसमें अन्य लोग भी शामिल हैं, को मनारगुडी माफिया कहा जाता है।

जयललिता के मुख्यमंत्री रहते शशिकला को सीएम नंबर दो कहा जाता था। यह भी माना जाता था कि वो मनारगुडी माफिया की बॉस हैं, जो परदे के पीछे से सारा व्यूह रचती हैं। एक वक़्त था, जब ये चर्चा आम हुआ करती थी कि अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर कॉन्ट्रैक्ट किसे देना है और किसे नहीं, ये सब यही माफिया तय करता था। तमिलनाडु के इंटेलिजेंस विभाग में भी माफिया की अच्छी-खासी दखल थी। अधिकारी जानते थे कि मनारगुडी माफिया की रहम के बगैर अच्छी पोस्टिंग नहीं मिल सकती।

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ऐसा नहीं था कि जयललिता इस सब से बेखबर थीं। 1995 में शशिकला के भतीजे, जिसको अम्मा ने अपना दत्तक पुत्र बनाया था, की शाही शादी पर बहुत विवाद हुआ था। इसके बाद जयललिता और शशिकला की दूरियां बहुत बढ़ गयीं थीं। अम्मा को अपने 'दत्तक पुत्र' को घर से निकालने में भी देर नहीं लगी। अम्मा को राजनीति में टिके रहना था, जिसके लिए छवि को बचाये रखना बहुत ज़रूरी है। अगले साल वो चुनाव हार गईं और शशिकला जल्द ही फिर से जयललिता के करीब आ गयीं.

2001 में उनकी फिर से सत्ता में वापसी हुई और मनारगुडी माफिया फिर से सक्रिय हो गया। 2011 में जब वो तीसरी बार सत्ता में वापस लौटीं, तब तक पानी सर से ऊपर जाने को हो रहा था. वरिष्ठ पत्रकार और जयललिता के करीबी चो रामास्वामी उस वक़्त जयललिता से मिले और उन्हें सलाह दी थी कि इस माफिया पर काबू किया जाय। ये उनकी छवि को नुक्सान पहुंचा रहा है। अम्मा ने उनकी बात सुनी और माफिया के पर कतरने शुरू किये।

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कहा यह भी जता है कि कुछ इंटेलिजेंस इनपुट तो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुहैया कराई थे। इसके कई लोग जेल भेजे गए. बहुतों को पार्टी से निकाला गया. माफिया के नज़दीकी अफसरों की छुट्टी कर दी गई।

2015 में गाज शशिकला पर गिरी और उन्हें भी पोज़ गार्डन स्थित जयललिता के आवास से बाहर कर दिया गया। लेकिन कहा जाता है कि शशिकला में अम्मा को मना लेने का अद्भुत गुण है, जिसे वह बखूबी इस्तेमाल करती हैं. इस बार भी यही हुआ और जल्द ही शशिकला वापस उनके साथ रहने आ गईं।

22 सितंबर को अम्मी के अस्पताल में भर्ती होने से लेकर उनकी अंतिम सांस तक सांस तक वो साथ रहीं। उन्होंने ही तय किया कि कौन उनसे मिलेगा और कौन नहीं। जयललिता की दूर की रिश्तेदार दीपा जयकुमार को भी उनसे नहीं मिलने नहीं दिया गया।

अंतिम संस्कार में पूरे वक़्त शशिकला और उनके रिश्तेदार पार्थिव शरीर के इर्द-गिर्द जमे रहे। पूरे देश ने उन्हें देखा। क्या यह एक संकेत था कि जयललिता के बाद अगर किसी की चलनी है तो वो शशिकला हैं, मनारगुडी माफिया है। पनीरसेल्वम के सौम्य और शालीन व्यक्तित्व में वो जज़्बा नहीं दिखता, जो इस माफिया पर अंकुश डाल सके। पिछले पांच साल इस माफिया के लिए मुश्किलों भरा रहा। अब अम्मा नहीं है और ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या तमिलनाडु में मनारगुडी माफिया की वापसी होगी।