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भारत-चीन विवाद पर बोले राजनाथ सिंह, कहां तक हल होगा...इसकी गारंटी नहीं

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath singh) ने शुक्रवार को कहा कि लद्दाख में सीमा गतिरोध का हल खोजने के लिए चीन (china) के साथ हो रही बातचीत में प्रगति हुई है, लेकिन वह इस बात की गारंटी नहीं दे सकते हैं.

Updated on: 17 Jul 2020, 10:03 PM

लद्दाख:

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath singh) ने शुक्रवार को कहा कि लद्दाख में सीमा गतिरोध का हल खोजने के लिए चीन (china) के साथ हो रही बातचीत में प्रगति हुई है, लेकिन वह इस बात की गारंटी नहीं दे सकते कि इसमें किस हद तक कामयाबी मिलेगी. इसके साथ ही सिंह ने पड़ोसी देश को सख्त संदेश दिया कि दुनिया की कोई भी ताकत भारत की एक इंच भी जमीन नहीं ले सकती.

सिंह ने लुकुंग में एक अग्रिम चौकी पर सेना तथा भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवानों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत कोई कमजोर देश नहीं है और किसी ने इसके राष्ट्रीय आत्म-सम्मान को चोट पहुंचाने की कोशिश की तो उसे उचित जवाब दिया जाएगा.

सिंह ने पैगोंग झील से कुछ दूरी पर बनाए गए एक अस्थायी मंच से कहा, 'सीमा विवाद के हल के लिए (चीन के साथ) बातचीत चल रही है. बातचीत में जो भी प्रगति हुई है, मामले का समाधान होना चाहिए. लेकिन किस हद तक इसका हल होगा, मैं गारंटी नहीं दे सकता. हालांकि, मैं आश्वासन देना चाहता हूं कि दुनिया की कोई भी ताकत भारत की एक इंच भूमि भी नहीं छू सकती है, इस पर कोई कब्जा नहीं कर सकता है.'

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उन्होंने कहा, 'बातचीत के जरिए समाधान खोजने से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता.' उनके पीछे विशाल भारतीय तिरंगा लहरा रहा था. सिंह जब सैनिकों को संबोधित कर रहे थे, उस समय मंच पर प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत और थलसेना प्रमुख जनरल एम. एम. नरवणे, सेना के उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल योगेश कुमार जोशी, 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और कई अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारी मंच पर थे.

भारत और चीन के बीच पांच मई को हुई हिंसक झड़प और फिर दोनों देशों के बीच कई स्थानों पर टकराव के बाद रक्षा मंत्री की यह पहली लद्दाख यात्रा थी. करीब दो सप्ताह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख की अघोषित यात्रा की थी और पड़ोसी देश के साथ सीमा विवाद से निपटने में भारत की दृढ़ता का संकेत दिया था. लुकुंग पहुंचने के पहले सिंह ने स्ताकना में एक अग्रिम चौकी का दौरा किया और वहां एक सैन्य अभ्यास देखा जिसमें युद्धक हेलीकॉप्टरों, टी-90 टैंकों के साथ विशेष बल भी शामिल हुए.

सैन्य अभ्यास में थल सेना और वायु सेना ने क्षेत्र में तैयारियों का प्रदर्शन किया. क्षेत्र में भारत और चीन तीखे सीमा गतिरोध में उलझे हुए हैं. सैन्य अभ्यास में बड़ी संख्या में कमांडो, टैंक, बीएमपी युद्धक वाहनों, अपाचे, रुद्र और एमआई-17 वी5 जैसे हेलीकॉप्टरों ने भाग लिया. जवानों ने रक्षा मंत्री सिंह की मौजूदगी में पैरा ड्रॉपिंग और अन्य करतबों का प्रदर्शन किया.

इस दौरान जनरल रावत और जनरल नरवणे भी मौजूद थे. सिंह ने बाद में ट्वीट किया, 'लेह के पास स्ताकना में आज पैरा ड्रॉपिंग और सैन्य प्रदर्शनों के दौरान भारतीय थलसेना की मारक क्षमता और प्रचंडता देखी.' उन्होंने कहा, 'इसके अलावा, मुझे उनके साथ बातचीत का अवसर मिला. मुझे इन बहादुर सैनिकों पर गर्व है." उन्होंने सैन्य कर्मियों के साथ अपनी बातचीत की तस्वीरें भी पोस्ट कीं. गलवान घाटी में हुयी झड़प के संदर्भ में सिंह ने लुकुंग में अपने संबोधन में कहा कि घटना में शहीद हुए भारतीय सैनिकों ने न सिर्फ देश की रक्षा के लिए अनुकरणीय साहस का प्रदर्शन किया बल्कि 130 करोड़ भारतीयों के गौरव की भी रक्षा की.

उन्होंने कहा,'मैं यह कहना चाहता हूं कि देश उन्हें कभी नहीं भूलेगा. आप पूरे देश को प्रेरित करते हैं. हम अशांति नहीं चाहते, हम शांति चाहते हैं. यह हमारा चरित्र रहा है कि हमने कभी किसी देश के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने की कोशिश नहीं की है. यदि भारत के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई है, तो हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे और उचित जवाब देंगे.'

सिंह ने 14,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित लुकुंग चौकी में कहा, 'भारत दुनिया का एकमात्र देश है जिसने पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया है. हमने कभी किसी देश पर हमला नहीं किया और न ही किसी देश की भूमि पर कब्जा किया है. भारत अपने पड़ोसी देशों को अपना परिवार मानता है. हम वसुधैव कुटुम्बकम् (दुनिया एक परिवार है) के संदेश में भरोसा करते हैं.'

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रक्षा मंत्री ने लद्दाख में सुरक्षा स्थिति की व्यापक समीक्षा की और शीर्ष सैन्य अधिकारियों के साथ भारत की तैयारियों का भी जायजा लिया. उन्होंने सैनिकों के साथ बातचीत भी की. पूर्वी लद्दाख में कई स्थानों पर पांच मई से भारत और चीन के सैनिकों के बीच गतिरोध चल रहा है. गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद यह तनाव बहुत अधिक बढ़ गया. कई दौर की राजनयिक एवं सैन्य बातचीत के बाद छह जुलाई से दोनों ओर के सैनिक पीछे हटने लगे.

भारतीय थल सेना ने पूर्वी लद्दाख में तनाव घटाने पर भारत और चीन के बीच चौथे चरण की लंबी सैन्य बातचीत के बाद बृहस्पतिवार को कहा था कि दोनों देश अपने-अपने सैनिकों को पूरी तरह से पीछे हटाने के लिये प्रतिबद्ध हैं. हालांकि, यह प्रक्रिया 'जटिल' है, जिसका निरंतर सत्यापन करने की जरूरत है. उधर, विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यथास्थिति बदलने की कोई भी 'एकतरफा कोशिश' उसे (भारत को) स्वीकार्य नहीं होगी. 

क्षेत्र में तनाव को कम करने के तरीकों को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच लगभग दो घंटे तक टेलीफोन पर हुयी बातचीत के एक दिन बाद सैनिकों की वापसी प्रक्रिया शुरू हुई. रक्षा मंत्री लद्दाख से श्रीनगर गए जहां वह पाकिस्तान के साथ लगने वाली नियंत्रण रेखा (एलओसी) की स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं. भाषा अविनाश नरेश नरेश