सुभाष चंद्र बोस के 125वीं जयंती समारोह समिति के अध्यक्ष हैं पीएम नरेन्द्र मोदी
देश इस साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती समारोह (Subhash Chandra Bose 125th birth anniversary) मनाने जा रहा है. इसको लेकर सरकार ने तैयारियां शुरू कर दी हैं.
नई दिल्ली:
देश इस साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती समारोह (Subhash Chandra Bose 125th birth anniversary) मनाने जा रहा है. इसको लेकर सरकार ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. इसको लेकर सरकार की ओर से एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई है, जिसकी अध्यक्षता पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) करेंगे. पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद ट्वीट कर कहा था कि नेताजी सुभाष बोस की बहादुरी जगजाहिर है. हम इस प्रतिभाशाली विद्वान, सैनिक और महान जन नेता की 125 वीं जयंती जल्द ही मनाने जा रहे हैं.
पीएम मोदी ने बीते दिनों नेताजी की भतीजी चित्रा घोष के निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी और उनके योगदान को याद किया था. अप्रैल 2013 में पीएम मोदी नेताजी के परिवार से मिले थे. 2014 लोकसभा चुनाव से पहले 9 अप्रैल 2013 को आज़ाद हिन्द फ़ौज के संस्थापक और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाष चंद्र बोस के वंशज गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे. जिसमें नेता जी की सभी फाइलें सार्वजनिक करने की मांग की गयी थी. एक चिठ्टी भी मोदी को सौंपी गयी. जिसमें लिखा था "नेताजी पूरे राष्ट्र के थे, इसलिए हम आपसे प्रधानमंत्री से मांग करने की अपील करते है कि उनके भाग्य के बारे में रहस्य जानने और इस मुद्दे के लिए एक समाप्ति लाने में मदद करने के लिए सभी रिकॉर्ड सार्वजनिक डोमेन में जारी करना चाहिए." नरेंद्र मोदी इनसे बेहद गर्मजोशी के साथ मिले, इस अर्जी को ग्रहण किया और मदद करने का भरोसा भी दिलाया.
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2014 में वाराणसी में अपना चुनाव अभियान शुरू करने से पहले नरेंद्र मोदी ने 'कर्नल' निजामुद्दीन के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया था. वाराणसी में 8 मई 2014 को मोदी के शक्ति प्रदर्शन के बीच ऐसा दृश्य सामने आया जिसे देखकर सब हैरान रह गए. मंच पर अचानक एक 103 साल का बुजुर्ग आया और मोदी ने रैली में मौजूद हजारों लोगों के सामने उसके पांव छू लिए. रोहनिया की रैली में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने इस शख्स के पैर छूकर आशीर्वाद लिया. मोदी के ऐसा करते ही सब ये जानने को उतावले हो उठे कि आखिर ये शख्स है कौन? लोगों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा मोदी ने भाषण के दौरान ही इस राज से पर्दा उठाया. मोदी ने कहा - ‘मुझे बताया गया है कि कर्नल निजामुद्दीन की उम्र 103 साल से ज्यादा है और मेरा सौभाग्य है कि वो इतनी दूर से मेरे जैसे आदमी को आशीर्वाद देने आए हैं. मैं उनका आभारी हूं.’
इस रैली के बाद एक इंटरव्यू में कर्नल निजामुद्दीन ने कहा था कि सिर्फ़ मोदी ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस बन सकता है". कर्नल निजामुद्दीन, जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सदस्य रहे हैं. कर्नल निजामुद्दीन सुभाष चंद्र बोस की गाड़ी चलाया करते थे. 11 भाषाएं जानने वाले कर्नल साहब गजब के निशानेबाज रहे हैं. जंग के दौरान उन्होंने एक बार अंग्रेजों का एक विमान भी मार गिराया था. सभी फाइलें सार्वजनिक नहीं की गयी.
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नवंबर 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस का रहस्यमय तरीके से लापता होना और इससे संबंधित मामलों में करीब 39 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था . हालांकि बीजेपी के विपक्ष में रहते वरिष्ठ नेताओं ने ही इन्हें सार्वजनिक करने की मांग की थी. प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक आरटीआई अर्जी के जवाब में स्वीकार किया है कि बोस से जुड़ी 41 फाइलें हैं जिनमें से दो गोपनीय की सूची में नहीं हैं. हालांकि पीएमओ ने पिछली यूपीए सरकार के दौरान भी इसे देने से मना कर दिया. आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को दिए जवाब में पीएमओ ने कहा, ‘इन फाइलों में दर्ज दस्तावेजों के खुलासे से दूसरे देशों के साथ रिश्तों पर बुरा असर पड़ सकता है. इन फाइलों को सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 (1) के साथ धारा 8 (2) के तहत सार्वजनिक किये जाने से छूट मिली है.'
22 जनवरी 2014 को कटक में नेताजी की 117वीं जयंती पर तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मांग की थी की तत्कालीन यूपीए सरकार नेताजी से जुड़े रिकॉर्ड को सार्वजनिक करे. एक किताब का विमोचन करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा था, ‘पूरा देश यह जानने को उत्सुक है कि नेताजी का निधन कैसे हुआ और किन परिस्थितियों में हुआ.’ कटक नेताजी का जन्मस्थान है. जनवरी 2015 में नेताजी की कुछ फाइलें सार्वजनिक की गयी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 जनवरी 2015 को नई दिल्ली स्थित नेशनल आर्काइव्स में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 100 फाइलें सार्वजिनक की थी. प्रधानमंत्री ने इन फाइलों का डिजिटल वर्जन जारी किया था. इनमें देश के पहले पीएम नेहरू की एक चिट्ठी भी जारी की गई है जो उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश पीएम क्लीमेंट एटली को लिखे पत्र में नेताजी को बताया था इंग्लैंड का युद्ध अपराधी. कांग्रेस ने इस कथित चिट्ठी को झूठा करार दिया था.
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23 जनवरी 2015 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर ये फाइलें सार्वजनिक की गईं थी. भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित 25 फाइलों की डिजिटल कॉपी को हर महीने सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराने की योजना बनाई थी. इससे पहले सुबह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी को जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि आज का दिन बहुत बड़ा दिन है क्योंकि नेताजी के बारे में फाइलें आज से सार्वजनिक होनी शुरू होंगी.
14 अक्टूबर 2014 को नई दिल्ली में अपने आवास पर नेताजी के परिवार के सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई मुलाकात में घोषणा की थी कि भारत सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करेगी और उन्हें जनता के लिए सुलभ बनाएगी. बताया गया था की , 33 फाइलों की पहली खेप प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा सार्वजनिक की गई थी और 4 दिसंबर, 2015 को भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को सौंप दी गई थी. इसके बाद गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने भी अपने पास मौजूद संबंधित संग्रह में शामिल नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जिन्हें बाद में भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को स्थानांतरित कर दिया गया.
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को साल 1997 में रक्षा मंत्रालय से इंडियन नेशनल आर्मी (आजाद हिंद फौज) से संबंधित 990 फाइलें प्राप्त हुई थीं और वर्ष 2012 में खोसला आयोग (271 फाइलें) और न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग (759 फाइलें) से संबंधित कुल 1030 फाइलें गृह मंत्रालय से प्राप्त हुई थीं. ये सभी फाइलें सार्वजनिक रिकॉर्ड नियम, 1997 के तहत जनता के लिए पहले से ही उपलब्ध हैं.
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