केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर लद्दाख का 1 साल पूरा, लोग विकास को लेकर आशावान
हर साल गर्मियों में लेह के बाजार सैलानियों से गुलजार दिखते थे, मगर इस बार कोरोनावायरस महामारी के कारण यहां कोई रौनक नहीं दिख रही है. फिर भी उच्च ऊंचाई वाले लद्दाख के पहाड़ों पर जैसे ही तेज धूप चमकती है.
नई दिल्ली:
हर साल गर्मियों में लेह के बाजार सैलानियों से गुलजार दिखते थे, मगर इस बार कोरोनावायरस महामारी के कारण यहां कोई रौनक नहीं दिख रही है. फिर भी उच्च ऊंचाई वाले लद्दाख के पहाड़ों पर जैसे ही तेज धूप चमकती है, तो मूल निवासी आशा के साथ और मास्क पहनकर अपने काम से बाहर निकल आते हैं. लद्दाख के स्थानीय निवासी केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति से काफी खुश हैं.
पिछले साल पांच अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और साथ ही इसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला लिया था.
लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने को लेकर लद्दाखी लोगों की लंबे समय से मांग रही थी. इस मांग के लिए आंदोलन भी हुए और इसे अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए लद्दाख के सबसे महान नेताओं में शुमार कुशोक बकुला के नेतृत्व में 65 साल पहले आंदोलन शुरू हुआ था. बाद में लद्दाख के एक अन्य नेता थूपस्तान चवांग ने इसे आगे बढ़ाया. दोनों ने भारतीय संसद में लद्दाख का प्रतिनिधित्व किया.
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लेह में एक कैब ड्राइवर ताशी नोरबू ने कहा, हम में से किसी ने भी कभी नहीं सोचा था कि यह मांग हमारे जीवनकाल में पूरी हो जाएगी. छह दशकों में कोई भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं कर सका. जब पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में इसकी घोषणा की तो हम अपने कानों पर विश्वास नहीं कर पाए थे.
लद्दाख में रहने वाले लोग बड़ी संख्या में पर्यटन पर निर्भर हैं, मगर इस बार कोरोनावायरस महामारी के कारण पर्यटन पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ा है. बाजारों में आम लोग, जो आंशिक रूप से बंद हैं, एक आशा के साथ काम कर रहे हैं. लेह में जैविक उत्पादों के विक्रेता स्टैन्जिन ने कहा, लद्दाख और लद्दाखी आखिरकार अपना भविष्य बनाने जा रहे हैं और अब उनकी जम्मू एवं कश्मीर से स्वतंत्र अपनी एक अलग पहचान है.
संवैधानिक परिवर्तन को परिप्रेक्ष्य में रखते हुए लेह स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ग्याल पी. वांग्याल ने बताया कि कैसे जम्मू एवं कश्मीर राज्य लद्दाख के 45,000 वर्ग कि. मी. के भौगोलिक क्षेत्र के नाम पर केंद्र सरकार से धन प्राप्त करता रहा, जो जम्मू-कश्मीर का 65 प्रतिशत था. लेकिन लद्दाख को आवंटित बजट का केवल दो प्रतिशत प्रदान किया गया, क्योंकि राज्य सरकार जनसंख्या के आधार पर संसाधनों का वितरण करती रही.
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पिछले साल लद्दाख का बजट जहां महज 57 करोड़ रुपये था, वहीं फिलहाल इसका बजट पिछले वर्ष से चार गुना अधिक है. अब यहां का 232 करोड़ रुपये का बजट है. लद्दाख को विशेष विकास पैकेज के रूप में 6000 करोड़ का बजट मिला है.
वांग्याल ने कहा, दुर्भाग्य से कोविड-19 महामारी हुई, जिसने हमें तीन साल पीछे कर दिया क्योंकि हम परिषद में बजट को मंजूरी देने के लिए बैठक नहीं कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, जम्मू एवं कश्मीर पहले से ही स्थापित था, लेकिन हम शून्य से शुरू कर रहे हैं. इसमें दो से तीन साल लगेंगे. लद्दाख का भविष्य इस पर निर्भर करेगा.
केंद्र शासित प्रदेश का नेतृत्व उपराज्यपाल आर. के. माथुर और उनके सलाहकारों व अधिकारियों की एक टीम करती है, जो एलएएचडीसी के 30 सदस्यों के साथ मिलकर काम करती है.
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