किसानों का हरियाणा सीएम के खिलाफ 24 मई को प्रदर्शन, 26 को विरोध दिवस
कोरोना संक्रमण के भय और लगातार कमजोर पड़ते आंदोलन के कारण कृषि कानून विरोधी किसान संगठन वापसी का रास्ता तो ढूंढने लगे हैं, लेकिन जिद नहीं छोड़ी है.
highlights
- 24 मई 2021 को हिसार कमिश्नरी का घेराव करेंगे किसान
- 26 को मोदी सरकार के खिलाफ मनाएंगे विरोध दिवस
- केंद्र सरकार भी सिर्फ वार्ता के लिए बातचीत के मूड में नहीं
नई दिल्ली:
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है. ऐसे में मुख्यमंत्री के खिलाफ हरियाणा के किसान संगठनों ने फैसला किया है कि 24 मई 2021 को हिसार कमिश्नरी का घेराव करेंगे. वहीं किसानों ने 26 मई को देशभर में विरोध दिवस मनाने का आह्वान किया है. इसके पहले किसान नेताओं ने सरकार को वार्ता का प्रस्ताव भेजने के साथ कानून को रद करने की मांगों को भी दोहराया है. वहीं सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार सिर्फ वार्ता के लिए बातचीत के मूड में नहीं है. सरकार का मानना है कि संगठन के नेता खुले दिमाग से आएं और कानून की अड़चनों को दूर करने के लिए उचित विचार करें तो सरकार कभी भी बातचीत कर सकती है.
जिद से लंबा खिंच रहा आंदोलन
कोरोना संक्रमण के भय और लगातार कमजोर पड़ते आंदोलन के कारण कृषि कानून विरोधी किसान संगठन वापसी का रास्ता तो ढूंढने लगे हैं, लेकिन जिद नहीं छोड़ी है. दिल्ली की सीमा पर हरियाणा में धरने पर बैठे पंजाब के कृषि कानून विरोधी किसान संगठनों की जिद की वजह से आंदोलन छह महीने खिंच चुका है. धरना स्थलों पर कोरोना संक्रमण से बचाव का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं होने दिया जा रहा है. आंदोलन कर रहे किसान नेता टेस्टिंग, इलाज, आइसोलेशन और टीकाकरण तक को राजी नहीं हैं. इस बीच हरियाणा समेत केंद्र सरकार पर दबाव बनाने का कोई मौका किसान नेता नहीं छोड़ रहे हैं.
अब खट्टर के खिलाफ मुहिम
इस कड़ी में संयुक्त किसान मोर्चा के अनुसार, हरियाणा के हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे किसानों के खिलाफ पुलिस ने हिसंक कार्रवाई की. इसमें कई किसानों को गहरी चोटें भी आई थीं व कई किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया था. किसानों के भारी विरोध के बाद पुलिस ने किसानों पर कोई केस न दर्ज करने का फैसला लिया, लेकिन पुलिस ने 350 से अधिक किसानों के खिलाफ पुलिस केस दर्ज कर लिए. ऐसे में हरियाणा के किसान संगठनों ने फैसला किया है कि 24 मई को हिसार कमिश्नरी का घेराव किया जाएगा. इसके लिए सुबह 10 बजे सभी किसान क्रांतिमान पार्क में इकट्ठे होंगे.
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एकता दिखाने का मान रहे अवसर
सयुंक्त किसान मोर्चा ने आसपास के किसानों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंचने की अपील की है. किसानों की मांग है कि उन पुलिस अधिकारियों व पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई हो, जिन्होंने अमानवीय तरीके से किसानों पर हमले किए व लाठीचार्ज, आंसूगैस और पत्थरबाजी के सहारे किसानों के प्रदर्शन को रोका. वहीं मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो, जिन्होंने कोविड गाइडलाइंस को दरकिनार कर यह कार्यक्रम किया. विरोध प्रदर्शन में पंजाब के वरिष्ठ किसान नेताओं के साथ-साथ संयुक्त किसान मोर्चा के नेता भी पहुंचेंगे.
मोदी सरकार के खिलाफ विरोध दिवस
इसके अलावा संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई को देशभर में विरोध दिवस मनाने का आह्वान किया है और सभी देशवासियों से अपने घर और वाहन पर काला झंडा लगाने और मोदी सरकार के पुतले जलाने की अपील की है. चूंकि इसी दिन भगवान बुद्ध के जन्म, निर्वाण और परिनिर्वाण का उत्सव 'बुद्ध पूर्णिमा' भी पड़ता है, इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा ने यह फैसला किया है कि उस दिन सभी मोर्चों और धरनों पर अपने अपने तरीके से बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाएगी. किसान आंदोलन के दिल्ली की सीमाओं पर 6 महीने पूरा होने पर व केंद्र की मोदी सरकार को 7 साल पूरा होने पर संयुक्त किसान मोर्चा ने इस दिन मोदी सरकार के विरोध स्वरूप काले झंडे लगाने का फैसला किया है.
किसान नेताओं की जिद परी भारी
कोविड-19 की दूसरी लहर के गंभीर होने के साथ ही कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और राज्य के गृह मंत्री अनिल विज ने किसान संगठनों से वार्ता करने और आंदोलन को वापस लेने का आग्रह किया था. उस समय जिद पर अड़े किसान नेताओं ने कोरोना वायरस जैसे किसी संक्रामक रोग से ही इनकारर करते हुए किसानों को आंदोलन के लिए प्रोत्साहित किया. धरना दे रहे आंदोलनकारियों के बीच कोरोना संक्रमण से ग्रसित किसान अपने गांवों को लौटे, जिससे इसका प्रसार और तेजी से हुआ. इन दोनों राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण की रफ्तार नगण्य रही है, जिससे कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
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ठोस प्रस्ताव रखे जाने के बाद बातचीत
केंद्र सरकार के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने स्पष्ट बताया कि किसान संगठनों की ओर से कोई ठोस प्रस्ताव रखे जाने के बाद ही वार्ता की पेशकश पर विचार किया जा सकता है. सरकार की ओर से एक दर्जन बार वार्ता हो चुकी है, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला. जिन कानूनों को लेकर किसान संगठनों को आपत्ति है, उसके एक-एक प्रविधान पर चर्चा की जा सकती है. लेकिन इसके लिए किसान नेताओं को खुले दिल से वार्ता में आने की हामी भरनी होगी. किसान नेताओं की जिद का आलम यह है कि सुप्रीम कोर्ट की गठित समिति के समक्ष भी पेश होने से मना कर दिया. कृषि सुधार के कानूनों पर आपत्ति जताने दिल्ली आए किसान संगठनों की मांगों की फेहरिस्त लगातार लंबी होती रही, जिसमें कई गैरवाजिब मांगें शामिल की गई.
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