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भारत में कोरोना की स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही, क्या है इसके मुख्य कारण, पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट

भारत करोना से लड़ रहा है और जीतेगा भी. करोना के खिलाफ कारगर लड़ाई को शुरू हुए 4 महीने पूरे हो गए हैं. 25 मार्च को लॉक डाउन की शुरुआत हुई थी और आज की स्थिति 4 महीनों बाद सुधरने के बजाय बिगड़ती हुई नजर आ रही है. इसकी क्या है वज़ह और क्या हो सकता है महा

Updated on: 25 Jul 2020, 05:38 PM

नई दिल्ली:

भारत करोना से लड़ रहा है और जीतेगा भी. करोना के खिलाफ कारगर लड़ाई को शुरू हुए 4 महीने पूरे हो गए हैं. 25 मार्च को लॉक डाउन की शुरुआत हुई थी और आज की स्थिति 4 महीनों बाद सुधरने के बजाय बिगड़ती हुई नजर आ रही है. इसकी क्या है वज़ह और क्या हो सकता है महामारी काल में भारत का भविष्य पढ़िए खास रिपोर्ट... 25 मार्च को जब लॉकडाउन का ऐलान किया गया था तब देश में करोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या 600 से भी कम थी, आज हर दिन पचास हजार के करीब नए केस आ रहे हैं. उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाभारत के युद्ध की तरह करोना को जल्द ही हराने के संकेत दिए थे और अब राज्य से केंद्र सरकार तक सभी करुणा के साथ जीने की दुहाई दे रही है. हालांकि तब देश में एंड 95 मास्क, पीपीई किट और टेस्टिंग किट का टोटा था और अब भारत पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट विदेशों को निर्यात तक करने लगा है. हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में गुणात्मक वृद्धि हुई है लेकिन यह सभी संसाधन बढ़ते संक्रमण के सामने दोयम ही नजर आ रहे हैं.

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तबलीगी जमात के चलते बढ़ा संक्रमण

संकेत साफ है कि जब लॉकडाउन लगाया गया तब करोना कि मामलों में वृद्धि कम नजर आई. कुछ यूं मान के चलिए कि नए मामलों पर लगाम लगाई हुई थी, हालाकी मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में तबलीगी जमात के चलते महामारी का संक्रमण लगभग हर एक राज्य तक पहुंच गया था, लेकिन उसके बाद मजदूरों के पलायन और फिर अनलॉक की घोषणा के बाद करोना के आंकड़ों में ऐसा उछाल आया, जिससे हिंदुस्तान कोविड-19 ट्रक में सभी 20वें स्थान पर था, अब उछलकर अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर जा पहुंचा है. हालांकि मौजूदा समय में दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में करोना का ग्राफ गिरता हुआ नजर आ रहा है. देशव्यापी बढ़ोतरी दर में भी कमी देखने को मिली है. स्वस्थ हो रहे लोगों की संख्या में इजाफा है और वैश्विक तुलना में भारत में करुणा की मृत्यु दर में कमी है, फिर भी स्थिति विकट है और भविष्य जटिल भी.

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उत्तर प्रदेश बिहार, बंगाल समेत लगभग पूरे देश में फैल चुकी

सबसे बड़ी समस्या यह है कि जहां शुरुआत में करोना महामारी सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित थी, अब उत्तर प्रदेश बिहार, बंगाल समेत लगभग पूरे देश में फैल चुकी है. शहरों से उलट गांव में मरीजों को ट्रेस करना, आइसोलेट करना, यहां तक की टेस्टिंग भी बेहद मुश्किल है.जनसंख्या और क्षेत्रफल के लिहाज से देखें तो अन्य राज्यों की तुलना में अभी भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के हालात बेहतर है, लेकिन वृद्धि दर के लिहाज से देखें तो जहां पूरे भारत में करोना की वृद्धि दर 3.8% है वहीं उत्तर प्रदेश में 4.59%. इस लिहाज से आने वाले महीने यूपी उत्तराखंड के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. हालाकी दिल्ली वालों को भी अभी राहत की सांस नहीं लेनी चाहिए ,क्योंकि दिल्ली के सबसे बड़े कोविड-19 अस्पताल के प्रमुख खुद मानते हैं कि आने वाले कुछ महीनों में करोना की दूसरी वेेेव आ सकती है, सर्दियों में वायरस ज्यादा खतरनाक हो सकता है और इसके लिए तैयारियां भी शुरू कर दी गई है.

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रोना संक्रमित व्यक्ति दोबारा इस वायरस की चपेट में आ सकता

वैश्विक शोध पर भरोसा करें तो इस बात की बड़ी संभावना है कि यह 50 दिनों के अंदर करोना संक्रमित व्यक्ति के शरीर से एंटीबॉडी कम हो जाती है और कुछ ही महीनों में टी सेल भी नदारद हो जाते हैं. यानी करोना संक्रमित व्यक्ति दोबारा इस वायरस की चपेट में आ सकता है, लिहाजा जब तक महामारी से लड़ने के लिए वैक्सीन का रामबाण नहीं मिल जाता तब तक सैनिटाइजर और मांस के सहारे ही बचाव करने को मजबूर है दुनिया. मजदूरों के पलायन सरकार द्वारा अनलॉक और टेस्टिंग की बढ़ती दरों की वजह से भारत में हर दिन करीब पचास हजार नए मामले आ रहे हैं और मुल्क अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे पायदान पर खड़ा है. अब आगे की डगर ज्यादा मुश्किल है. क्योंकि जहां दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में करोना की सेकंड वेद का भय है, वही गांव की दहलीज तक पहुंच चुके कोविड-19 की ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट की लचर व्यवस्था का डर. अब वर्तमान में सोशल डिस्टेंसिंग और भविष्य में कोरोना वैक्सीन से ही उम्मीद बाकी है.