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चीन ने फिर दिया भड़काऊ बयान, भारत से कहा सच देखे

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सैनिकों पर चीनी सैनिकों द्वारा बिना किसी कारण किए गए क्रूर, अवैध और घातक हमले के 6 हफ्ते बाद वहां स्थिति तनावपूर्ण और नाजुक बनी हुई है.

Updated on: 14 Aug 2020, 11:40 AM

नई दिल्ली:

लद्दाख (Ladakh) में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सैनिकों पर चीनी सैनिकों द्वारा बिना किसी कारण किए गए क्रूर, अवैध और घातक हमले के 6 हफ्ते बाद वहां स्थिति तनावपूर्ण और नाजुक बनी हुई है. पूरी दुनिया जान चुकी है कि भारत के साथ चीन के गेम प्लान में धोखा और दुष्प्रचार है. लेकिन इन हालातों के लिए चालबाज चीन उल्टे भारत को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है. भारत में चीन के राजदूत सून वेडॉन्ग का कहना है कि गलवान घाटी (Galwan Valley) में हुई हिंसक झड़प के लिए भारत जिम्मेदार है न कि चीन.

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न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, भारत में चीन के राजदूत सून वेडॉन्ग ने कहा है, 'भारत से आग्रह करता हूं कि वह पूरी तरह से जांच करे, उल्लंघन करने वालों को जवाबदेह ठहराए. इसके अलावा वह सीमा पर अपने सैनिकों को कड़ाई से अनुशासित करे. साथ ही इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों, यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाए और सैनिकों को भड़काने की कोशिश न करें.' चीन के राजदूत ने यह बातें दूतावास की मैगजीन में छपे एक लेख में लिखी हैं.

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ज्ञात हो कि 15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में एलएसी पर चीनी सैनिकों ने धोखे से भारतीय सैनिकों पर वार किया था. इस दौरान दोनों देशों के जवानों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे. जबकि चीन से भी काफी सैनिक मारे गए थे. लेकिन उसने अपने सैनिकों की संख्या सार्वजनिक नहीं की थी. इस झड़प के बाद से ही दोनों देशों के बीच हालात तनावपूर्ण हैं. कई दौर की बातचीत के बाद भी धोखेबाज चीन पीछे हटने को तैयार नहीं हैं तो भारतीय जवान भी उनकी चालबाजी का डटकर उत्तर दे रहे हैं.

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भारत और चीन ने लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील क्षेत्र में पीछे हटने के मामले में कोई उन्नति नहीं की, जहां दोनों पक्षों ने अपने सुरक्षा बलों को तैनात कर रखा है. कुछ जानकार बताते हैं कि चीन लद्दाख में अपनी खुद की बनाई हुई स्थिति से अपने आपको निकालना चाहता है, क्योंकि उसके साथ पाकिस्तान के अलावा कोई और दोस्त नहीं है. मगर चीन दबाव, धोखे, दुष्प्रचार के साथ ही अपने दीर्घकालिक और लंबे समय से प्रायोजित उद्देश्यों को भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. वह अपनी विस्तारवादी नीति पर भी बने रहना चाहता है.