तालिबान को एंटोनी ब्लिंकन की चेतावनी और एस जयशंकर की नसीहत, जानें क्या कहा
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय बातचीत की एक और मेज सजी तो चर्चा के केंद्र में अफगानिस्तान रहा, जहां तालिबान का आतंक तेजी से पैर पसारने लगा है.
highlights
- भारत और अमेरिका के बीच हुई द्विपक्षीय बातचीत
- ब्लिंकन ने भारत से यूएस की रणनीति को साझा किया
नई दिल्ली:
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय बातचीत की एक और मेज सजी तो चर्चा के केंद्र में अफगानिस्तान रहा, जहां तालिबान का आतंक तेजी से पैर पसारने लगा है. यूएस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटोनी ब्लिंकन (Antony Blinken) के भारत दौरे में सुरक्षा और आतंकवाद का मुद्दा टॉप पर था और खासकर अफगानिस्तान पर फोकस कहीं ज्यादा रहा. ब्लिंकन ने इस बाबत एनएसए अजीत डोवाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) के साथ हुई बातचीत में यूएस की रणनीति को साझा किया और भारत की चिंताओं से भी अवगत हुए.
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दोहा पैक्ट में तालिबान पीस प्रोसेस की बात कर रहा था, लेकिन अफगानिस्तान से जैसे-जैसे यूएस फोर्सेज की वापसी हो रही है वह आतंकी हमले के जरिये गांव के गांव और एक के बाद एक जिले कब्जे कर रहा है. इस दौरान भारी संख्या में जानमाल का हो रहा नुकसान तथा क्रूरता के कारनामे यूएस और भारत की साझी चिंता के कारण दिखाई दिए.
द्विपक्षीय बातचीत के बाद जब ब्लिंकन प्रेस से रुबरु हुए तो उन्होंने तालिबान को सीधी चेतावनी दे डाली. ब्लिंकन ने कहा कि युद्ध की विभीषिका झेल चुके देश में एक बार फिर से आतंक और क्रूरता की घटनाएं परेशान करने वाली हैं. उन्होंने तालिबान और अफगानिस्तान को एक टेबल पर आकर बातचीत करने की नसीहत दी और कहा कि अफगानिस्तान की जमीन पर कोई सैन्य हल नहीं निकला जा सकता. एक ही रास्ता है और वह बातचीत का रास्ता है और इसी में भलाई है.
ब्लिंकन ने इस बात पर और भी जोर दिया कि तालिबान वैश्विक पहचान चाहता है और दुनिया ने मदद भी की, लेकिन आम नागरिकों और सुरक्षा बलों के खिलाफ आक्रमक और क्रूर व्यवहार से इस मकसद को हासिल नहीं किया जा सकता है. तालिबान चाहता है कि उनके नेताओं को दुनिया के देशों में फ्री ट्रेवल की इजाजत मिले तो इस तरीके से यह लक्ष्य हासिल नहीं होगा.
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एंटोनी ब्लिंकन के इन बातों से विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर भी सहमत दिखे. एस जयशंकर ने शांति वार्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि एकतरफा शासन नहीं थोपा जा सकता है. डॉ. जयशंकर ने इन बात पर भी जोर दिया कि अफगानिस्तान फिर से आतंकवाद का गढ़ और शरणार्थियों का देश न बने. दुनिया अफगानिस्तान को स्वतंत्र, सार्वभौमिक और लोकतांत्रिक स्वरूप में देखना चाहती है, जहां शांति व्यवस्था और और पड़ोस में शांति रहे.
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