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लोकसभा चुनाव

वाई.एस. शर्मिला की एंट्री से बदल सकता है आंध्र का सियासी समीकरण

वाई.एस. शर्मिला की एंट्री से बदल सकता है आंध्र का सियासी समीकरण

Updated on: 04 Jan 2024, 08:35 PM

हैदराबाद:

वाई.एस. शर्मिला के कांग्रेस पार्टी में शामिल होने से आंध्र प्रदेश में राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं, जहां सबसे पुरानी पार्टी अपनी किस्मत को फिर से चमकाना चाह रही है।

राज्य के विभाजन पर जनता के गुस्से के कारण आंध्र प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य से लगभग एक दशक तक गायब रहने के बाद कांग्रेस वापसी की कोशिश कर रही है।

गुरुवार को वाईएसआर तेलंगाना पार्टी (वाईएसआरटीपी) का कांग्रेस में विलय करने वाली शर्मिला ने आंध्र प्रदेश में जिम्मेदारी संभालने सहित पार्टी में कोई भी पद स्वीकार करने की इच्छा जताई है।

अब शर्मिला और उनके भाई और मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के बीच सीधे टकराव की संभावना है।

जगन मोहन ने अपने पिता दिवंगत कांग्रेस नेता वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की विरासत के दम पर वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) बना ली और तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू को कड़ी शिकस्‍त देकर मुख्‍यमंत्री बनेे। उन्‍होंने राज्य की राजनीति में अपना राजनीतिक मुकाम हासिल कर लिया, जिससे कांग्रेस कमजोर पड़ गई। अब कांग्रेस अपने पूर्व गढ़ में वापस लौटने के लिए वाईएसआर की बेटी के जरिए उनकी विरासत को भुनाने की कोशिश कर रही है।

वर्ष 2009 में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में अपने पिता और अविभाजित आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएसआर के निधन के बाद जब जगन ने कांग्रेस के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाया था, तब शर्मिला अपने भाई के साथ खड़ी रहीं।

अब, शर्मिला को ऐसी नेता के रूप में देखा जाता है, जो आंध्र प्रदेश की कांग्रेस को नई जान फूंक सकती हैं।

तेलंगाना राज्य गठन का श्रेय लेने का दावा करने के बावजूद कांग्रेस दो बार सत्ता हासिल करने में नाकाम रही। मगर एक दशक बाद तेलंगाना में कांग्रेस की भारी जीत से पार्टी को पड़ोसी तेलुगू राज्य आंध्र प्रदेश में भी अपने पुनरुत्थान की संभावना नजर आने लगी है।

अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव के साथ आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, शर्मिला के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी वाईएसआर के वफादारों और जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व से नाखुश लोगों को अपने पाले में वापस लाने की कोशिश कर सकती है। शर्मिला के कांग्रेस में शामिल होने से पहले ही अल्ला रामकृष्ण रेड्डी ने उनके समर्थन की घोषणा कर दी थी। मंगलगिरि से वाईएसआरसीपी विधायक ने हाल ही में पार्टी छोड़ दी और विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया।

वाईएसआरसीपी के कुछ अन्य नेताओं के भी शर्मिला से हाथ मिलाने की संभावना है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि आने वाले दिनों में घटनाक्रम तेजी से बदलता देखने को मिल सकता है।

जैसा कि जगन मोहन रेड्डी कथित सत्ता विरोधी लहर से उबरने के लिए कई मौजूदा विधायकों को टिकट न देने की योजना बना रहे हैं, लाजिमी है कि टिकट न मिलने से नाराज कुछ विधायक कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।

2019 के चुनावों में वाईएसआरसीपी ने 175 सदस्यीय विधानसभा में 151 विधानसभा सीटें हासिल की थीं।

उसने 25 में से 22 लोकसभा सीटें भी जीती थीं।

लगातार दूसरे चुनाव में कांग्रेस पार्टी को विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में कोई फायदा नहीं हुआ।

उसका वोट शेयर दो फीसदी से भी कम हो गया।

पिछले एक दशक के दौरान अपने अधिकांश वरिष्ठ नेताओं के वाईएसआरसीपी और अन्य दलों में शामिल होने से कांग्रेस पूरी तरह से हतोत्साहित दिखाई दी।

राजनीतिक विश्‍लेषक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा, भले ही वाईएसआरसीपी के मौजूदा विधायकों का एक वर्ग फिर से नामांकन से वंचित होने के बाद कांग्रेस में शामिल हो जाए, लेकिन इससे कांग्रेस के लिए कम से कम अपने वोट शेयर में सुधार करने और विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने में बड़ा अंतर आएगा।

साल 2012 में जब जगन मोहन रेड्डी को कथित आय से अधिक संपत्ति मामले में गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया, तब शर्मिला ने अपनी मां वाई.एस विजयम्मा के साथ वाईएसआरसीपी का बैनर थामा था। उन्होंने जगन के लिए समर्थन जुटाने के लिए राज्यव्यापी पदयात्रा की थी और उस दौरान जगन ने 16 महीने जेल में बिताए थे।

शर्मिला ने 2014 के चुनावों में वाईएसआरसीपी अभियान में सक्रिय भूमिका निभाई थी, लेकिन पार्टी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) से मामूली अंतर से हार गई थी।

वह 2019 में फिर से वाईएसआरसीपी के लिए स्टार प्रचारक थीं। 2019 में वाईएसआरसीपी के भारी बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद भाई जगन ने बहन शर्मिला को दरकिनार कर दिया था। भाई के रूखे व्‍यवहार से आहत शर्मिला ने 2021 में तेलंगाना की राजनीति में प्रवेश करके अपनी राह खुद तय करने का फैसला किया। तेलंगाना में काफी संघर्ष करने के बाद वह अब अपने भाई के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रही हैं।

उन्होंने राजन्ना राज्यम को वापस लाने का वादा करते हुए वाईएसआर तेलंगाना पार्टी (वाईएसआरटीपी) बनाई, जो उनके दिवंगत पिता के स्वर्णिम शासन का संदर्भ है।

उन्होंने तेलंगाना में लोगों की समस्याओं को उजागर करने के लिए पदयात्रा की और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार का सामना किया।

कुछ अवसरों पर वह बीआरएस नेताओं पर अपने कड़वे हमलों के कारण विवादों में आ गईं और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया।

वह तेलंगाना की सभी 119 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने की इच्छुक थीं। मगर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से जनमानस में आए बदलाव को भांपकर उन्‍होंने बीआरएस को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस का साथ देना जरूरी समझा।

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद उन्होंने विलय के लिए सबसे पुरानी पार्टी के साथ बातचीत शुरू की। उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी मुलाकात की।

तेलंगाना में चुनाव नहीं लड़ने और कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने के उनके फैसले को केंद्रीय नेतृत्व ने स्वीकार कर लिया।

तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के एक महीने बाद पार्टी ने उन्हें विलय के लिए आमंत्रित किया और उन्होंने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया। शर्मिला ऐसे समय में कांग्रेस में शामिल हुई हैं, जब चंद्रबाबू की टीडीपी और पवन कल्याण के नेतृत्व वाली जनसेना ने वाईएसआरसीपी से मुकाबला करने के लिए हाथ मिलाया है।

वाईएसआरसीपी विरोधी वोटों को बंटने से बचाने के लिए पवन कल्याण भी अब भाजपा में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं।

2019 में वाईएसआरसीपी को 49.95 फीसदी वोट मिले थे। टीडीपी 39.17 प्रतिशत वोट और 23 विधानसभा सीटों के साथ दूसरे स्थान पर थी।

जबकि जनसेना को 5 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे, कांग्रेस और भाजपा को क्रमशः दो और एक प्रतिशत से कम वोट मिले थे।

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