दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को सिविल सेवा परीक्षा 2023 की प्रारंभिक परीक्षा का आंसर-की अंतिम परिणाम की घोषणा के बाद ही प्रकाशित करने के संघ लोक सेवा निर्णय (यूपीएससी) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार कर ली।
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने 17 सिविल सेवा अभ्यर्थियों की याचिका सुनवाई के योग्य है या नहीं इस पर 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अदालत ने बुधवार को अपने फैसले में टिप्पणी की कि केवल आंसर-की प्रकाशित करने का अनुरोध करने से भर्ती प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं होता है, और इसलिए, याचिका को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले के गुण-दोष के आधार पर अगला आदेश पारित किया जाएगा।
अदालत ने माना कि आंसर-की का खुलासा करने की प्रार्थना में उम्मीदवारों के मौलिक और कानूनी अधिकारों का निर्णय शामिल है, और ऐसे मामलों में जहां अधिकारों को लागू किया जा रहा है, वह मामले को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि याचिका असफल उम्मीदवारों द्वारा लाई गई थी जिन्होंने अपनी विफलता या परीक्षा प्रक्रिया को चुनौती नहीं दी थी। इसकी बजाय, वे पूरी प्रक्रिया समाप्त होने से पहले आंसर-की के प्रकाशन का अनुरोध कर रहे थे।
न्यायाधीश ने मामले को 26 सितंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुये यह स्पष्ट किया कि इस आदेश में अदालत की टिप्पणी अन्य अदालतों में चल रही किसी भी कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगी।
न्यायमूर्ति सिंह ने 2 अगस्त को उम्मीदवारों के वकील की दलील दर्ज की थी कि याचिका में अन्य दो प्रार्थनाएँ - प्रारंभिक परीक्षा को चुनौती देना और परीक्षा फिर से आयोजित करने की मांग - इस मामले में नहीं की जा रही है।
वकील को याचिका की विचारणीयता के पहलू पर लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए भी समय दिया गया।
हाई कोर्ट ने 3 जुलाई को यूपीएससी से याचिका पर प्रारंभिक आपत्तियां दाखिल करने को कहा था।
याचिका में 12 जून को प्रारंभिक परीक्षा के नतीजे घोषित करने वाले यूपीएससी द्वारा जारी प्रेस नोट को भी चुनौती दी गई है।
इसमें यूपीएससी ने कहा था कि “उम्मीदवारों को यह भी सूचित किया जाता है कि सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा, 2023 के अंक, कट ऑफ अंक और आंसर-की सिविल सेवा परीक्षा 2023 की पूरी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद, यानी अंतिम परिणाम घोषित होने के बाद ही आयोग की वेबसाइट पर अपलोड किए जाएंगे।
याचिका में यूपीएससी को तत्काल प्रभाव से आंसर-की प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की गई है। वकील ने यह भी तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के पास सिविल सेवा उम्मीदवारों की शिकायत पर फैसला करने का अधिकार है।
याचिकाकर्ताओं ने उत्तर कुंजी के प्रावधान की कमी, उम्मीदवारों के अभ्यावेदन की उपेक्षा और अत्यधिक अस्पष्ट प्रश्न प्रस्तुत करने, जिनके लिए अनुमान लगाने की आवश्यकता होती है, का हवाला देते हुए भर्ती चक्र के संचालन में मनमानी का आरोप लगाया है।
उन्होंने तर्क दिया है कि परीक्षा के तुरंत बाद उत्तर कुंजी जारी करने से निष्पक्षता सुनिश्चित होगी और उम्मीदवारों को मूल्यांकन प्रक्रिया की बेहतर समझ मिल सकेगी।
याचिका में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि दिल्ली न्यायिक सेवा परीक्षा के लिए राज्य लोक सेवा आयोग, आईआईटी, एनएलयू, आईआईएम और दिल्ली उच्च न्यायालय जैसे अन्य संस्थान तुरंत अनंतिम उत्तर कुंजी जारी करते हैं और उत्तर कुंजी के आधार पर अंतिम रूप देने से पहले उम्मीदवारों से उन पर आपत्तियां आमंत्रित करते हैं।
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Source : IANS