Standing Desk Vs Sititng Desk: जहां एक तरफ रिमोट और हाइब्रिड वर्क सेटअप बढ़ा है. वहीं दूसरी और स्टैंडिंग और सिटिंग डेस्क पर काम करने की बहस सामने आती रहती है. आमतौर पर माना जाता है कि स्टैंडिंग डेस्क पर काम करने से पोश्चर बेहतर रहता है और बैक पेन भी कम होता है. वहीं इससे ग्लूकोज लेवल और इंसुलिन सेंसिटिविटी को भी बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकता है.
ज्यादा देर कुर्सी पर बैठने के नुकसान
काफी लंबे टाइम तक कुर्सी पर बैठना ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म में कम एफिशिएंसी से जुड़ा होता है. जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस का खतरा बढ़ सकता है, खासकर टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोग. वहीं पूरे दिन खड़े रहने या फिर हल्की एक्टिविटीज करना मांसपेशियों को ग्लूकोज का ज्यादा असरदार ढंग से इस्तेमाल करने में मदद कर सकता है, खासकर भोजन करने के बाद. हालांकि सिर्फ खड़े रहने के बजाय बैठने और खड़े होने के बीच बारी-बारी से बदलाव करना बेहतर है.
मूवमेंट जरूरी
आपको हर घंटे के एक हिस्से के लिए खड़े रहना चाहिए. इससे वक्त के साथ इंसुलिन रेजिस्टेंस में मामूली सुधार कर सकते हैं. हालांकि अगर आपको ज्यादा फायदे चाहिए तो आप हल्की फिजिकल एक्टिविटीज, जैसे स्ट्रेचिंग या शॉर्ट वॉक करें.
पोश्चर बदलें
ब्लड शुगर रेगुलेशन को इफेक्टिव बनाने के लिए रोजाना 60 से 90 मिनट बैठने का समय कम करना चाहिए. ये हर 30-60 मिनट में पोश्चर को बदलकर और कई शॉर्ट एक्टिविटीज ब्रेक को शामिल करके हासिल किया जा सकता है. वर्किंग डे के दौरान लगातार हल्की हलचल के साथ कम से कम 1-2 घंटे खड़े रहने का टारगेट रखना चाहिए.
प्रीडायबिटीज वाले लोग
इंसुलिन रेजिस्टेंस या प्रीडायबिटीज वाले लोगों के लिए, स्टैंडिंग डेस्क सेटअप में बदलाव धीरे-धीरे होना चाहिए. डिसकंफर्ट को रोकने के लिए लंबे समय तक एक ही पोजीशन खड़े रहने से बचना जरूरी है. बेहतर कंफर्ट और ब्लड सर्कुलेशन के लिए एंटी-फटीगमैट और आरामदेह जूते पहनना चाहिए.
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