Health Tips: हेल्दी लाइफ बढ़ाने का तरीका चला पता, Study में आया सामने

साइंटिस्ट ने बायोलॉजिकल ऐज (Biological age) यानी कि जैविक उम्र जानने के एक नए तरीके का खुलासा किया है. अमेरिका में एक स्टडी के दौरान ये पता चला है कि हेल्दी लाइफ को आगे किस तरह से बढ़ाया जा सकता है.

साइंटिस्ट ने बायोलॉजिकल ऐज (Biological age) यानी कि जैविक उम्र जानने के एक नए तरीके का खुलासा किया है. अमेरिका में एक स्टडी के दौरान ये पता चला है कि हेल्दी लाइफ को आगे किस तरह से बढ़ाया जा सकता है.

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Megha Jain
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study on stress( Photo Credit : Unsplash)

साइंटिस्ट ने बायोलॉजिकल ऐज (Biological age) यानी कि जैविक उम्र जानने के एक नए तरीके का खुलासा किया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी (yale university) के रिसर्चर्स ने एक स्टडी के दौरान पाया कि उम्र के साथ DNA में नैचुरल तरीके से बदलाव डिफरेंट टाइम पर और लोगों में अलग होता है. इस स्टडी में रिसर्चर्स ने ‘ग्रिमएज (GrimAge biological clock)’ नाम की एक यूनिक बायोलॉजिकल क्लॉक (unique biological clock) इस्तेमाल की है. इससे उन्हें दो सवाल के जवाब देने में मदद मिली. 

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जिसमें से पहला ये था कि लंबे टाइम तक चल रहा स्ट्रेसे यानी क्रॉनिक स्ट्रेस (Chronic Stress) किस तरह से इस क्लॉक को तेज कर देता है और दूसरा ये कि क्या इस घड़ी को स्लो करने का कोई तरीका है? जिससे कि हेल्दी लाइफ बढ़ाई जा सके. पहले आपको ये बता देते है कि स्टडी में आखिर क्या निकला. उसके बाद बताएंगे कि स्टडी किसने और कैसे की. 

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स्टडी में निकला 
रिसर्चर्स ने स्टडी के दौरान ये पाया कि डेमोग्राफिक और बिहेवोरियल हैबिट्स (behavioral habits), बॉडी मास इंडेक्स और इनकम जैसे फैक्टर्स को शामिल करने के बाद भी जिन लोगों में क्रॉनिक स्ट्रेस (Chronic Stress) ज्यादा था, उनमें एजिंग मार्कर (aging marker) और ज्यादा इंसुलिन रेसिसटेंस जैसे फिजिकल चेंजिस की स्पीड तेज थी. हालांकि, जिन लोगों में इमोशनल रेग्युलेशन (emotional regulation) और सेल्फ-चेकआउट (self checkout) का बैकग्राउंड में स्ट्रेस का स्कोर ज्यादा था, उनमें हर इंसान के हेल्थ पर इफेक्ट एक जैसा नहीं था.

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जानकार कहते है 
इस स्टडी पर जानकारों का कहना है कि क्रॉनिक स्ट्रेस से हार्ट डिजिजीज, एडिक्शन और किसी चोट के बाद होने वाले स्ट्रेस का खतरा बढ़ता है. ये मेटाबॉलिज्म (Metabolism) को इफेक्ट करता है. फैट से जुड़ी प्रॉब्लम्स (obesity related disorders) जैसे कि डायबिटीज (Diabetes) को बढ़ाता है. इतना ही नहीं, स्ट्रेस फीलिंग्स को कंट्रोल करने और सही तरीके से सोचने की हमारी कैपेसिटी को भी खत्म कर देता है. 

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