logo-image

रेडिएशन के कारण होने वाले खतरे को छुपाती हैं मोबाइल कंपनियां: स्टडी

एक विश्लेषण के अनुसार पैसे लेकर शोध के निष्कर्ष के बारे में गलत बताना स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है।

Updated on: 06 Mar 2017, 02:33 PM

highlights

  • एम्स के विश्लेषण के अनुसार, मोबाइल कंपनियां पैसा देकर कराती है झूठा शोध 
  • सरकार के फंड से हुए शोध बताते है रेडिएशन का खतरा, वहीं मोबाइल कंपनियों के फंड वाले कम खतरा दिखाते हैं
  • विश्लेषण 1996 से लेकर 2016 तक दुनियाभर में 48,452 लोगों पर हुए ऐसे 22 अध्ययनों  पर किया गया

नई दिल्ली:

एक विश्लेषण के अनुसार पैसे लेकर शोध के निष्कर्ष के बारे में गलत बताना स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (AIIMS) के अनुसार अपने फायदे के लिए मोबाइल कंपनियां गलत शोध पेश कर रही हैं। मोबाइल कंपनियों के द्वारा फंड किए गए शोध, रेडिएशन के कारण ब्रेन ट्यूमर की कम आंशका होना बताते है। ऐसे अध्यन मोबाइल के प्रयोग से होने वाले नुकसानों की पूरी जानकारी नहीं देते।

इसे भी पढ़ें: 'भारत में 5 साल से छोटे 58 फीसदी बच्चे एनिमिया से ग्रसित'

एम्स ने मोबाइल रेडिएशन का दिमाग को प्रभावित करने वाली देश-विदेश की कई रिसर्च का विश्लेषण किया। इस विश्लेषण के अनुसार सरकार द्वारा फंड किए गए शोध में मोबाइल रेडिएशन से ब्रेन ट्यूमर की आशंका ज्यादा बताई जाती है। वहीं मोबाइल कंपनियों फंडित शोध में यहीं आशंका कम हो जाती हैं।

विश्लेषण के मुख्य लेखक और न्यूरेलॉजी विभाग के हेड डॉ कामेश्वर प्रसाद ने कहा, 'हमने पाया कि इंडस्ट्री द्वारा मुहैया कराए गए फंड से होने वाले अध्ययन की गुणवत्ता सही नहीं थी और वे इस खतरे को कम आंकते हैं। सरकारी फंड से होने वाले अध्ययन में साफ बताया गया है कि लंबे समय तक मोबाइल रेडिशन के नजदीक रहने से ब्रेन ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है।' वहीं शोधकर्ता ने कहा, 'हैरत में डालने वाली बात तो यह है कि कुछ अध्ययन यहां तक बताते हैं कि मोबाइल फोन का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर से बचा सकता है।

इसे भी पढ़ें: सावधान! खाने में कम नमक लेने से भी पड़ सकता है हार्ट अटैक

तकरीबन 10 साल या 1,640 घंटे हुए अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इससे ब्रेन ट्यूमर का रिस्क 1.33 गुना बढ़ जाता है। यह विश्लेषण 1996 से लेकर 2016 तक दुनियाभर में 48,452 लोगों पर हुए ऐसे 22 अध्ययनों  पर किया गया। जिनमें  से 10 सरकार द्वारा, 7 सरकार और मोबाइल निर्माताओं व  3 अध्ययन पूरी तरह मोबाइल इंडस्ट्री द्वारा प्रायोजित थे।

मेडिकल जर्नल न्यूरॉलजिकल साइंस में छपे इस विश्लेषण के नतीजों में बताया गया है कि सरकार द्वारा प्रायोजित अध्ययन का क्वॉलिटी स्कोर 7 या 8 था, जबकि क्वालिटी के मामले में इंडस्ट्री के अध्ययनों का स्कोर 5 या 6 था।