logo-image

सीएम फेस चन्नी साधेंगे दलित वोटरों को... आसान नहीं है पाले में लाना

दलित मतदाता, जिनके पंजाब में 39 उपवर्ग हैं. इनमें भी 5 उपवर्ग ऐसे हैं, जिनमें 80 फीसद दलित आबादी आ जाती है. इन 5 उपवर्गों में भी 30 फीसद मजहबी सिखों के बाद दूसरे सबसे बड़े रविदासिया हैं.

Updated on: 07 Feb 2022, 07:24 AM

highlights

  • पंजाब में दलित वोट चुनाव में निभाता है तारणहार की भूमिका
  • हालांकि 39 उपवर्गों में बंटा दलित समाज एकमुश्त वोट नहीं देता
  • चन्नी के जरिये कांग्रेस सूबे में चुनावी वैतरणी पार करने के मूड में

चंडीगढ़:

पंजाब में मुख्यमंत्री फेस के लिए सर्वेक्षण करने वाली आम आदमी पार्टी का विरोध जताने वाली कांग्रेस (Congress) ने भी अंततः सूबे में अपना सीएम फेस घोषित कर दिया. कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के दबाव को दरकिनार करते हुए अंततः मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को ही सीएम फेस बतौर पेश किया. चन्नी पर दांव वगाने के पीछे सीधे-सीधे चुनावी गणित ही नजर आ रही है, जो बता रही है कि कांग्रेस डेरों के प्रभाव वाली दलित जाति को ही चुनावी वैतरणी पार करने का मजबूत हथियार मान रही है. वैसे भी लगभग त्रिकोणीय हो चुके चुनाव में इस बार हिंदू से लेकर दलित वोटों पर ही सभी राजनीतिक दलों को उम्मीद है.

111 दिनों के कार्यकाल को भुनाएंगे चन्नी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार को लुधियाना में एक चुनावी रैली में चन्‍नी के नाम की घोषणा की. चन्नी राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू की टसल के बाद कमान सौंपी गई थी. सीएम बनने के लगभग 111 दिन के कार्यकाल के दौरान चन्नी फ्रंटफुट पर बैटिंग कर खुद को साबित करने में सफल रहे हैं. नवजोत सिंह सिद्धू से रार और परिवार पर ईडी की कार्रवाई ने उन्हें ऐसे नेताओं की श्रेणी में ला दिया, जिसे सत्तारूढ़ दल चुनाव से पहले निशाना बनाता है.

यह भी पढ़ेंः लता मंगेशकर अपने पीछे छोड़ गईं इतनी संपत्ति, जानकर रह जाएंगे हैरान

समझें दलित वोटों का पंजाब में गणित
हालांकि उन पर भरोसा जताने के पीछे कांग्रेस की मंशा को समझ पाना मुश्किल नहीं है. दलित मतदाता, जिनके पंजाब में 39 उपवर्ग हैं. इनमें भी 5 उपवर्ग ऐसे हैं, जिनमें 80 फीसद दलित आबादी आ जाती है. इन 5 उपवर्गों में भी 30 फीसद मजहबी सिखों के बाद दूसरे सबसे बड़े रविदासिया हैं. इनकी आबादी 24 प्रतिशत के करीब है. ज्यादातर रविदासिया दोआबा इलाके में पाए जाते हैं, जिसमें जालंधर, होशियारपुर, नवांशहर, कपूरथला जैसे जिले आते हैं. पंजाब में दलित बहुल मालवा इलाका है, जहां विधानसभा की 69 सीटें हैं.

यह भी पढ़ेंः  IND vs WI: भारत ने वेस्टइंडीज को हराकर रचा इतिहास

पंथों के हिसाब से पंजाबी वोटर
2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की 2.77 करोड़ आबादी में से 88.60 लाख यानी 31.9 प्रतिशत दलित है. इनमें से 53.9 लाख यानी 19.4 फीसद दलित सिख हैं. हिंदू दलित की आबादी 34.42 लाख यानी 12.4 प्रतिशत है, वहीं बौद्ध दलितों की संख्या 27 हजार 390 है. राज्य में सिख मतदाताओं की संख्या 1.60 करोड़ यानी 57.69 फीसद है. कुल हिंदू आबादी 1.06 करोड़ यानी 38.49 फीसद है. गौर करने वाली बात यह है कि पंजाब का दलित समाज अलग-अलग पंथों में बंटा हुआ है. इसमें 26.33 प्रतिशत मजहबी सिख, 8.66 प्रतिशत बाल्मीकि, 10.17 प्रतिशत अदधर्मी सिख और 20.78 प्रतिशत रामदसिया/रविदासी सिख हैं. इस लिहाज से देखें तो कई पंथों में बंटे दलित समाज का चुनाव में एकमुश्त वोट देने का रिवाज नहीं रहा है. यह अलग बात है कि कांग्रेस दलित कार्ड के जरिए समीकरण बदलने का प्रयास कर रही है.