एक फरवरी को पेश होने जा रहा अंतरिम बजट, जानिए बजट की ABCD
चुनाव के बाद नई गठित सरकार पूर्ण बजट पेश करती है. आइए जानते हैं कि अंतरिम बजट क्या है और यह कैसे पूर्ण बजट से अलग है.
नई दिल्ली:
वित्त मंत्री अरुण जेटली (Arun Jetly) 1 फरवरी को आम बजट (Aam Budget 2019) की जगह अंतरिम बजट (Interim budget 2019) पेश करेंगे. जिस साल लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections) होने होते हैं, केंद्र सरकार पूरे वित्त वर्ष की बजाय कुछ महीनों के लिए ही बजट पेश करती है और चुनाव के बाद नई गठित सरकार पूर्ण बजट पेश करती है. आइए जानते हैं कि अंतरिम बजट क्या है और यह कैसे पूर्ण बजट से अलग है.
क्या है अंतरिम बजट (Interim budget 2019)
जब केंद्र सरकार के पास पूर्ण बजट (Budget 2019) पेश करने के लिए समय नहीं होता है तो वह अंतरिम बजट (Interim Budget) पेश करती है. लोकसभा चुनाव (General Election 2019) के वक्त सरकार के पास वक्त तो होता है, लेकिन चली आ रही परंपरा के मुताबिक चुनाव (Lok Sabha Elections) पूरा होने तक के समय के लिए बजट पेश करती है. हालांकि, अंतरिम बजट (Interim Budget) ही पेश करने की बाध्यता नहीं होती है लेकिन परंपरा के मुताबिक इसे अगली सरकार पर छोड़ दिया जाता है. नई सरकार बनने के बाद वह आम बजट पेश करती है.
अंतरिम बजट और आम बजट में अंतर
दोनों ही बजट में सरकारी खर्चों के लिए संसद से मंजूरी ली जाती है, लेकिन अंतरिम बजट आम बजट से अलग हो जाता है. अंतरिम बजट में सामान्यतः सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं करती. हालांकि, इसकी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं होती है. चुनाव के बाद गठित सरकार ही अपनी नीतियों के मुताबिक फैसले लेती है और योजनाओं की घोषणा करती है.
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वैसे तो बजट (Budget) एक जटिल विषय है और इसे समझना मुश्किल होता है, लेकिन अगर आप इससे जुड़े कुछ खास तथ्यों के बारे में जानते हैं तो इसे समझना आसान हो जाएगा. जानिए बजट क्या है, बजट के प्रकार, बजट निर्माण के सिद्धांत, बजट निर्माण की प्रक्रिया समेत बजट (Budget) की पूरी कहानी...
सरकारी कर्ज (Public Debt) : सरकार द्वारा सरकारी कर्ज या सरकारी कर्ज का वितरण क्रमशः साल के दौरान लिया जाने वाला कर्ज या कर्ज का वितरण होता है. कर्ज लेने और वितरण के बीच के अंतर को सरकारी कर्ज कहा जाता है. इसको आंतरिक या बाह्य के बीच बांटा जा सकता है. आंतरिक का मतलब देश के भीतर से लिया गया कर्ज और बाह्य कर्ज गैर भारतीय स्रोतों से लिया गया कर्ज होता है.
क्रय क्षमता (Purchasing power) : इसका उद्देश्य के एक देश से दूसरे देश में खरीद क्षमता तय करना है, जो दो देशों के बीच एक्सचेंज रेट के आधार पर निर्भर होती है. विभिन्न देशों में आय के स्तर की तुलना के लिए परचेजिंग पावर पैरिटी का इस्तेमाल किया जाता है. पीपीपी से हर देश से जुड़े डाटा को समझना आसान हो जाता है.
गैर कर राजस्व (Non-tax revenue:) : सरकार को कर से इतर अन्य स्रोतों से होने वाली आय गैर कर राजस्व कहलाती है. इस मद में केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और रेलवे को दिए गए कर्ज पर मिलने वाली ब्याज और सरकारी कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड और प्रॉफिट के तौर पर मिलने वाली प्राप्तियां हैं.
राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) : सरकार को मिलने वाले कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इससे यह भी संकेत मिलता है कि सरकार को कितना कर्ज लेने की जरूरत है.
बजट घाटा (Budget deficit) : बजट घाटा सरकार को राजस्व और पूंजी खाता दोनों में होने वाली सभी प्राप्तियों व व्यय के बीच का अंतर होता है. कुल मिलाकर बजट घाटा राजस्व खाता घाटा और पूंजी खाता घाटा का योग है. यदि सरकार का राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से ज्यादा हो जाता है तो इसे राजस्व खाता घाटा कहते हैं. यदि सरकार का पूंजी वितरण, पूंजी प्राप्तियों से ज्यादा होता है तो इसे पूंजी खाता घाटा कहते हैं. बजट घाटे को जीडीपी के प्रतिशत के तौर पर जाहिर किया जाता है.
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गैर योजनागत व्यय (Non Plan Expenses:): यह काफी हद तक सरकार का राजस्व व्यय होता है, जिसमें पूंजी व्यय भी शामिल होता है. इसमें ऐसे सभी व्यय शामिल होते हैं, जो योजनागत व्यय में शामिल नहीं होते हैं. ब्याज भुगतान, पेंशन, राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को किए जाने वाले सांविधिक हस्तांतरण जैसे बाध्यकारी व्यय गैर योजनागत व्यय में शामिल होते हैं.
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मैक्रोइकोनॉमिक्स (Macroeconomics) : मैक्रोइकोनॉमिक्स, अर्थशास्त्र यानी इकोनॉमिक्स की एक शाखा है, जिसमें व्यापक तौर पर अर्थव्यवस्था के व्यवहार और प्रदर्शन की स्टडी की जाती है. इसमें बेरोजगारी, ग्रोथ रेट, ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) और महंगाई जैसे बदलावों पर फोकस किया जाता है. कुल मिलाकर मैक्रोइकोनॉमिक्स में अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले सभी इंडिकेटर्स और माइक्रोइकोनॉमिक फैक्टर्स पर का विश्लेषण किया जाता है.
माइक्रोइकोनॉमिक्स (Microeconomics) : यह फैसले लेने में व्यक्तियों, परिवारों और कंपनियों के व्यवहार और संसाधनों के आवंटन की स्टडी है. इसका गुड्स और सर्विसेस के मार्केट और आर्थिक समस्याओं से निबटने में खासा इस्तेमाल होता है. इससे पता चलता है कि लोग क्या पसंद करते हैं, किन बातों से उनकी पसंद प्रभावित होती है और उनके फैसलों से गुड्स का मार्केट, उनकी कीमत, सप्लाई और डिमांड प्रभावित होती है.
सॉवरेन रिस्क (Sovereign Risk) : एक देश सॉवरेन यानी स्वायत्त इकाई होता है. सरकार के कर्ज चुकाने या लोन एग्रीमेंट का पालन नहीं किए जाने को सॉवरेन रिस्क कहा जाता है. सरकार द्वारा आर्थिक या राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति में किया जाता है. सरकार कानूनों में बदलाव करके ऐसा कर सकती है, जिससे इन्वेस्टर्स को खासा नुकसान उठाना पड़ता है.
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