EPFO ने निजी कंपनियों को दी बड़ी राहत, फिलहाल इस काम के लिए नहीं देना पड़ेगा जुर्माना
EPFO ने लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) के दौरान भविष्य निधि अंशदान (Provident Fund Contribution) समय पर जमा नहीं करा पाने पर कंपनियों से कोई जुर्माना नहीं लेने का फैसला किया है.
नई दिल्ली:
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO): सेवानिवृत्ति कोष का प्रबंधन करने वाले संस्थान ईपीएफओ (Employees Provident Fund Organisation) ने लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) के दौरान भविष्य निधि अंशदान (Provident Fund Contribution) समय पर जमा नहीं करा पाने पर कंपनियों से कोई जुर्माना नहीं लेने का फैसला किया है. बता दें कि केंद्र की नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार ने देश में कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये 25 मार्च से लॉकडाउन लागू किया है.
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नकदी की किल्लत से जूझ रही हैं कंपनियां
लॉकडाउन की वजह से कंपनियों को नकदी की दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है और उन्हें भविष्य निधि कोष में किये जाने वाले जरूरी भुगतान में भी समस्याएं आ रही हैं. उद्योग संगठन पीएचडीसीसीआई के द्वारा आयोजित एक वेबिनार में ईपीएफओ के केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त सुनील बर्थवाल ने कहा कि लॉकडाउन अवधि के दौरान देरी पर हम कोई हर्जाना (जुर्माना) नहीं लेने वाले हैं. यह हमारा हितधारकों, कंपनियों, नियोक्ताओं का ध्यान रखने के रवैये का हिस्सा है, जिसका हम अनुसरण कर रहे हैं. ईपीएफओ के पास उन नियोक्ताओं से हर्जाना या जुर्माना वसूलने का अधिकार है, जो ईपीएफ योजना 1952 के तहत अनिवार्य पीएफ अंशदान जमा नहीं करा पाते हैं. नियोक्ताओं को अगले महीने की 15 तारीख तक पिछले महीने के वेतन पर बकाया जमा करना आवश्यक होता है. हालांकि, कंपनियों को इसके लिये 10 दिन का अतिरिक्त समय भी दिया जाता है.
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श्रम मंत्रालय ने इस बारे में एक बयान में कहा कि कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Epidemic) के प्रसार को रोकने के लिये सरकार द्वारा लगाया गया लॉकडाउन लंबा खिंच गया है. इसके अलावा महामारी के कारण अन्य दिक्कतें भी आयी हैं. इन सब से ईपीएफ एंड एमपी अधिनियम 1952 के अंतर्गत आने वाले प्रतिष्ठान प्रभावित हुए हैं और सामान्य रूप से कार्य करने तथा समय पर वैधानिक योगदान का भुगतान करने में असमर्थ हैं. मंत्रालय ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान योगदान या प्रशासनिक शुल्क के समय पर जमा करने में प्रतिष्ठानों के सामने आयी कठिनाइयों को देखते हुए ईपीएफओ ने फैसला किया है कि परिचालन या आर्थिक कारणों से इस तरह की देरी को डिफ़ॉल्ट और दंडनीय नुकसान नहीं माना जाना चाहिये. इस तरह की देरी के लिये जुर्माना नहीं लगाया जाना चाहिये.
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