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मोदी सरकार के इस फैसले से दलहन किसानों के लिए खड़ी हो सकती है मुश्किल

Pulses News: दाल कारोबारी समेत बाजार के विषेषज्ञों ने मसूर (Masur Dal In Hindi) पर आयातशुल्क घटाने को लेकर सरकार की नीति पर सवाल उठाया है.

Updated on: 06 Jun 2020, 07:45 AM

नई दिल्ली:

Pulses News: किसानों को उनकी फसलों का उचित व वाजिब दाम दिलाने को प्रतिबद्ध केंद्र सरकार की नीति पर मसूर (Lentil) आयात शुल्क (Import Duty) में कटौती को लेकर सवाल उठने लगे हैं. केंद्र सरकार ने मसूर पर आयात शुल्क 30 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया है, जिससे चना (Gram) समेत अन्य दलहनों के दाम पर भी दबाव आ सकता है और किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम दिलाना मुश्किल होगा. दाल कारोबारी समेत बाजार विषेषज्ञों ने मसूर (Masur Dal In Hindi) पर आयातशुल्क घटाने को लेकर सरकार की नीति पर सवाल उठाया है. उनका कहना है कि इस समय एकमात्र दलहन फसल मसूर है जिसका किसानों को अच्छा भाव मिल रहा है, लेकिन सरकार ने आयात शुल्क घटाकर उनके हितों की अनदेखी की है.

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मसूर पर आयात शुल्क में कटौती करने का फैसला किसानों के हक में नहीं: सुरेश अग्रवाल
ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल का कहना है कि मसूर (Masoor) पर आयात शुल्क में कटौती करने का फैसला किसानों के हक में नहीं है, क्योंकि इससे चना (Chana) के दाम पर भी दबाव आएगा. चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4875 रुपये है जबकि इस समय बाजार में चना 3800-4000 रुपये प्रतिक्विंटल बिक रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से चंद कारोबारियों को लाभ होगा जबकि देश के किसानों का नुकसान होगा. मसूर का भाव इस समय देश के बाजारों में 5100-5300 रुपये प्रतिक्विंटल चल रहा है, जोकि मसूर के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4800 रुपये से 300-500 रुपये प्रतिक्विंटल अधिक है. मतलब, सिर्फ मसूर ही ऐसी दलहन फसल है जिसका किसानों को एमएसपी से ज्यादा भाव मिल रहा है.

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सरकार ने 31 अगस्त तक के लिए मसूर पर आयात शुल्क में कटौती की
सरकार ने महज तीन महीने यानी 31 अगस्त तक के लिए मसूर पर आयात शुल्क में कटौती की है, जिसके कारण इस फैसले पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि भारत में मसूर पर आयातशुल्क में कटौती के साथ आस्ट्रेलिया और कनाडा में इसकी कीमतों में वृद्धि हो गई है. दलहन बाजार के जानकार बताते हैं कि सरकार के इस फैसले से सिर्फ उन्हीं कारोबारियों को फायदा होगा जिनका माल पहले ही भारत के लिए रवाना हो चुका है और इस समय समुद्र में मालवाहक जहाज में है.

मुंबई के दलहन बाजार विशेषज्ञ अमित शुक्ला बताते हैं कि कनाडा से आने में कम से कम 45-55 दिन रास्ते में लगते हैं, इसलिए इस समय जो आयात के सौदे करेंगे उनको समय पर माल पहुंचने को लेकर संदेह बना रहेगा. शुक्ला कहते हैं कि सरकार को अपनी दलहन नीति में बदलाव नहीं करना चाहिए. देश में दलहन व अनाज कारोबारियों का शीर्ष संगठन इंडिया पल्सेस एंड ग्रेंस एसोसिएशन (आईपीजीए) के अध्यक्ष जीतू भेरा ने सरकार के इस फैसले पर हैरानी जताई. उन्होंने कहा कि इस समय मसूर पर आयात शुल्क घटाने का कोई तुक नहीं था. उन्होंने भी कहा कि यह फैसला देश के किसानों के हक में नहीं है.

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मसूर पर आयात शुल्क 30 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किया गया
केंदरीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमाशुल्क बोर्ड की ओर से दो जून को जारी अधिसूचना के अनुसार, मसूर पर आयात शुल्क 30 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया गया है. इस अधिसूचना के बाद कनाडा में मसूर का भाव 600 डॉलर से बढ़कर गुरुवार को 680 डॉलर प्रति टन (सीएनएफ) हो गया. मतलब इस भाव पर भारत के पोर्ट पर मसूर पहुंचेगी. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से पिछले महीने जारी तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश में मसूर का उत्पादन 2019-20 में 14.4 लाख टन है जबकि 2018-19 में 12.3 लाख टन था। मतलब पिछले साल के मुकाबले इस साल उत्पादन ज्यादा है.

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2019-20 में सभी दलहनों का उत्पादन 230.1 लाख टन होने का अनुमान
तीसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार, 2019-20 में सभी दलहनों का उत्पादन 230.1 लाख टन है जबकि पिछले साल 220.8 लाख टन था. दलहन अनुसंधान से जुड़े एक वैज्ञानिक ने भी कहा कि किसानों को अच्छा भाव मिलता है तभी किसान किसी फसल को उगाने में दिलचस्पी लेता है. प्रमाण के तौर पर देखा जा चुका है कि 2015-16 में जब देश में दलहनों का उत्पादन घटने के कारण दाल की कीमतें आसमान छू गई थीं तो किसानों ने इसकी खेती में काफी दिलचस्पी ली और 2017-18 में उत्पादन 254.2 लाख टन तक पहुंचा गया जिससे भारत दलहनों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया.