.

दो 'खारिज देश' मिल रहे हैं मगर चुपके-चुपके... करीब आ रहे पुतिन-किम जोंग

अगर उत्तर कोरिया के लिहाज से देखें तो रूस के साथ उसके संबंध हमेशा से गर्मजोशी भरे नहीं थे, जैसे कि सोवियत संघ के अस्तित्व में रहते हुआ करते थे. हालांकि उत्तर कोरिया अब मॉस्को को दोस्तों की जरूरतों का अपने निहित स्वार्थों के लिए भरपूर दोहन कर रहा है.

News Nation Bureau
| Edited By :
07 Oct 2022, 07:24:05 PM (IST)

highlights

उत्तर कोरिया के किम जोंग उन ने पुतिन को जन्मदिन पर भेजा बधाई संदेश

अमेरिका की धमकियों और चुनौतियों को कुचलने के लिए भी की सराहना

प्रतिबंधों के बावजूद दोनों देशों में गुपचुप तरीके से जारी हैं व्यापारिक गतिविधियां

सिओल:

उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को जन्मदिन की बधाई प्रेषित की है. किम जोंग ने अमेरिका की 'चुनौतियों और धमकियों को कुचलने' के लिए पुतिन को बधाई का पात्र बताया. वास्तव में किम जोंग (Kim Jong Un) का व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) को यह बधाई संदेश दो खारिज किए जा चुके राष्ट्रों के बीच मजबूत होते संबंधों का परिचायक है. जैसे-जैसे यूक्रेन में युद्ध (Russia Ukraine War) को लेकर रूस को अलग-थलग करने की प्रक्रिया बढ़ी है, मॉस्को का वैसे-वैसे उत्तर कोरिया (North Korea) में मान बढ़ा है. अगर उत्तर कोरिया के लिहाज से देखें तो रूस (Russia) के साथ उसके संबंध हमेशा से गर्मजोशी भरे नहीं थे, जैसे कि सोवियत संघ के अस्तित्व में रहते हुआ करते थे. हालांकि उत्तर कोरिया अब मॉस्को को दोस्तों की जरूरतों का अपने निहित स्वार्थों के लिए भरपूर दोहन कर रहा है. ऐसे में यह जानना काफी रोचक रहेगा कि रूस और उत्तर कोरिया के संबंधों की शुरुआत कैसे हुई और किस तरह दोनों एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं. 

राजनीतिक समर्थन
शीत युद्ध के शुरुआती दिनों में सोवियत संघ के समर्थन से वामपंथी उत्तरी कोरिया का गठन हुआ था. उत्तर कोरिया ने 1950 से 1953 के बीच दक्षिण कोरिया और उसके सहयोगी अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के धड़ों से लड़ाई लड़ी. इस अनिर्णीत लड़ाई के लिए उत्तर कोरिया को चीन और सोवियत संघ से जबर्दस्त मदद मिली. गौरतलब है कि उत्तर कोरिया दशकों तक मदद के लिए सोवियत संघ पर पूरी तरह से निर्भर था. हालांकि 1990 के दशक में सोवियत संघ का पतन उत्तर कोरिया में एक भयंकर अकाल लाने का वायस बना. प्योंगयांग के नेता एक-दूसरे से संतुलन बनाए रखने के लिए मॉस्को और बीजिंग का इस्तेमाल करते रहे हैं. शुरुआती दिनों में किम जोंग उन के दोनों ही देशों से रिश्ते ठंडे रहे, क्योंकि दोनों ही ने परमाणु परीक्षण के बाद उत्तर कोरिया पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने में अमेरिका का समर्थन किया था. यह अलग बात है कि 2017 में किए गए आखिरी परमाणु परीक्षण के बाद किम ने संबंध सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू किए. 2019 में किम और पुतिन के बीच रूस के शहर व्लादिवोस्तोक शहर में एक शिखर वार्ता में मुलाकात हुई. इसके बाद से कड़े प्रतिबंधों का विरोध कर रहे चीन को रूस का भी साथ मिल गया. मई में अमेरिका के एक प्रस्ताव पर वीटो लगा दिया गया. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 2006 में प्योंगयांग को सजा के बाद पहली बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस ने खुलेआम विभाजन करा दिया. 

यह भी पढ़ेंः PM Modi गरवी गुजरात से नए भारत तक का सफर... 'अग्निपथ से राजपथ'

यूक्रेन से युद्ध को समर्थन
रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद उत्तर कोरिया ने मॉस्को के लिए सार्वजनिक समर्थन के साथ प्रतिक्रिया दी. यही नहीं, उत्तर कोरिया एकमात्र देश है, जिसने यूक्रेन से अलग किए गए क्षेत्र क्रीमिया को मान्यता दी. इस हफ्ते भी उत्तर कोरिया ने रूस के यूक्रेन के चार शहरों में जनमत संग्रह के बाद स्वतंत्रता और फिर उनके रूसी संघ में विलय को अपना समर्थन दिया. व्लादिवोस्तोक की फार ईस्टर्न फेडरल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आर्टियोम ल्यूकिन के मुताबिक, 'यूक्रेन में मास्को के 'विशेष सैन्य अभियान' ने एक नई भू-राजनीतिक वास्तविकता की शुरुआत की है, जिसके तहत क्रेमलिन और उत्तर कोरिया बेहद नजदीक आ सकते हैं. संभवतः अर्ध-गठबंधन संबंधों को पुनर्जीवित करने की स्थिति तक, जो कि शीत युद्ध के दौरान मौजूद था.' यहां यह ध्यान देना बेहतर रहेगा कि प्योंगयांग रूस के साथ अपने संबंधों की व्याख्या करने के लिए अब 'सामरिक और रणनीतिक सहयोग' सरीखी शब्दावली का इस्तेमाल करने लगा है. इस बीच अमेरिका का कहना है कि यूक्रेन से युद्ध में खाली हो चुके अपने अस्त्र-शस्त्र भंडार को फिर से भरने के लिए रूस ने दसियों लाख की संख्या में गोला-बारूद और अन्य हथियार खरीदने के लिए उत्तर कोरिया से प्रक्रिया शुरू की है. यह अलग बात है कि रूस और उत्तर कोरिया दोनों ही इस दावे को सिरे से खारिज करते हैं. 

यह भी पढ़ेंः Iran Hijab Controversy भारत में पहनने, तो दुनिया भर में उतारने की जिद

आर्थिक संबंध
विशेषज्ञों की मानें तो उत्तर कोरिया का अधिकांश व्यापार चीन के जरिये होता है, फिर भी रूस उसका महत्वपूर्ण साझेदार है. खासकर बात जब तेल उपलब्ध कराने की आती है. मॉस्को ने संयुक्त राष्ट्रों के प्रतिबंधों को तोड़ने से इंकार किया है, लेकिन रूसी टैंकरों पर आरोप है कि वे प्रतिबंधों से बचते हुए उत्तरी कोरिया को तेल का निर्यात कर रहे हैं. यही नहीं, प्रतिबंधों पर नजर रखने वालों की रिपोर्ट कहती है कि प्रतिबंधों के बावजूद रूस में श्रमिक बने हुए हैं. कोरोना संक्रमण की शुरुआत के साथ ही दोनों देशों के बीच व्यापार और इंसानी संपर्क लगभग ठप सा पड़ गया है. उत्तर कोरिया ने कोरोना काल से ही सीमाओं पर सख्त लॉकडाउन लगा रखा है. एक समय तो ऐसा भी आया था जब उत्तर कोरिया ने मय रूसी राजदूतों को उनके सामान को हाथ से खींची जाने वाली गाड़ी पर घर भिजवा दिया था. ऐसे में आर्टियोम ल्यूकिन कहते हैं, 'यह मानने के पर्याप्त कारण है कि उत्तर कोरिया की तरफ से अपनी सीमा पर लगाए गए कुछ कोरोना प्रतिबंध जल्द ही हटने शुरू हो सकते हैं.' ल्यूकिन इस बात को स्थानीय सरकारी रिपोर्ट के आधार पर कहते हैं, जिनमें कहा गया कि ट्रेन से व्यापार को फिर से शुरू करने की अनुमति मिल जाएगी. रूसी अधिकारी खुलेआम 'राजनीतिक व्यवस्था पर काम करने' की चर्चा कर रहे हैं, जिसके तहत उत्तर कोरिया के 20 से 50 हजार श्रमिकों को काम पर रखा जाएगा. यह तब होगा जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के तहत ऐसी किसी व्यवस्था पर प्रतिबंध है. यही नहीं, यूक्रेन के रूसी संघ में विलय वाले हालिया भू-भाग में भी रूसी अधिकारी और नेता उन संभावनाओं पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, जिसके तहत युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण से जुड़ी गतिविधियां शुरू करने के लिए उत्तर कोरिया से श्रमिकों को लाया जाए.