कावेरी नदी पर विवाद और उसके कारण
कावेरी नदी के पानी को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच छिड़ा विवाद नया नहीं है। अब इस विवाद को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडू में तोड़फोड़ और धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। ताज़ा धरना प्रदर्शन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद शुरु हुए हैं, जिसमें कोर्ट ने अपने पिछले हफ्ते के फैसले को संशोधित करते हुए कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए कम पानी ज्यादा दिनों तक छोड़ने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने सोमवार के फैसले में कर्नाटक को आदेश दिया कि वह 20 सितंबर तक प्रतिदिन 12 हजार क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिए छोड़े।
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को आदेश दिया था कि वह अगले 10 दिन तक प्रतिदिन 15 हजार क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिए छोड़े।
तमिलनाडु का कहना है कि उसके किसानों को साल की दूसरी मौसमी फसल के लिए पानी की सख्त जरूरत है।
उधर कर्नाटक का इस मामले में कहना है कि तमिलनाडु ने फसल का एक चक्र पूरा कर लिया है जबकि हमारे अपने किसान संघर्ष कर रहे हैं।
दक्षिण कर्नाटक में बहने वाली कावेरी नदी पूर्व की ओर बहते हुए बाद में तमिलनाडु में पहुंचती है। नदी का पानी मूल रूप से लगभग एक सदी पुराने समझौते के अनुसार विभाजित किया गया था।
साल 1990 में केंद्र सरकार ने इस पूरे विवाद की जांच के लिए एक न्यायाधिकरण बनाया था साल 2007 में इस न्यायाधिकरण ने फैसला दिया कि कैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, पुदुच्चेरी और केरल के बीच कावेरी के पानी का बंटवारा हो।
राज्य सरकारों ने इस विभाजन को चुनौती दी। कर्नाटक का कहना है कि इस साल कावेरी के महत्वपूर्ण जलसंग्रहण इलाकों में अच्छी बारिश नहीं हुई है।
कर्नाटक सरकार का कहना है कि बेंगलुरु और मैसुर जैसे शहरों की प्यास बुझाने के लिए पानी पर्याप्त नहीं है।
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