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UAPA कानून में संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, SC करेगी परीक्षण

याचिकाओं में कहा गया है कि ये संशोधन नागरिकों के मौलिक आधिकारों का उल्लंघन करते हैं और जांच एजेंसियों को लोगों को आतंकवादी घोषित करने की ताकत प्रदान करते हैं.

06 Sep 2019, 01:18:07 PM (IST)

highlights

  • UAPA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस.
  • याचिकाकर्ताओं ने संशोधनों को नागरिकों के मौलिक आधिकारों का उल्लंघन करार दिया.
  • इस कानून के अनुसार केंद्र सरकार किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी की श्रेणी में डाली सकती है.

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने अवैध गतिविधियों (रोकथाम) कानून (UAPA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के संदर्भ में शुक्रवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. गौरतलब है कि इसी कानून के तहत जैश सरगना हाफिज सईद, अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और अन्य राष्ट्रविरोधी लोगों को आतंकवादी घोषित करने के चंद दिनों बाद ही केंद्र को यह नोटिस जारी किया है. याचिकाओं में कहा गया है कि ये संशोधन नागरिकों के मौलिक आधिकारों का उल्लंघन करते हैं और जांच एजेंसियों को लोगों को आतंकवादी घोषित करने की ताकत प्रदान करते हैं.

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एनजीओ की याचिका पर एससी का नोटिस
सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने सजल अवस्थी और गैर सरकारी संगठन 'असोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की याचिकाओं पर केंद्र सरकार को यूएपीए पर नोटिस जारी किया है. गौरतलब है कि संसद ने हाल ही में अवैध गतिविधियां (रोकथाम) कानून में संशोधनों को मंजूरी दी थी. इन संशोधनों के बाद सरकारी एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का अधिकार मिल गया है.

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याचिका में संशोधनों को संविधान के खिलाफ बताया
अवैध गतिविधियां गतिविधि रोकथाम कानून में हाल ही में हुए संशोधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है. कानून में जो बदलाव किए गए हैं, उनके बदलावों को ही याचिका में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के खिलाफ है. बता दें कि संसद से पास किए गए इस कानून के अनुसार केंद्र सरकार किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी की श्रेणी में डाली सकती है. फिर वह चाहे किसी समूह के साथ जुड़ा हो या नहीं.

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क्या है UAPA
अवैध गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA को 1967 में 'भारत की अखंडता तथा संप्रभुता की रक्षा' के उद्देश्य से पेश किया गया था. इसके तहत किसी शख्स पर 'आतंकवादी अथवा गैरकानूनी गतिविधियों' में लिप्तता का संदेह होने पर किसी वारंट के बिना भी तलाशी या गिरफ्तारी की जा सकती है. इन छापों के दौरान अधिकारी किसी भी सामग्री को ज़ब्त कर सकते हैं. आरोपी को ज़मानत की अर्ज़ी देने का अधिकार नहीं होता और पुलिस को चार्जशीट दायर करने के लिए 90 के स्थान पर 180 दिन का समय दिया जाता है.