कोरोना काल में मदद करने के लिए विदेश में प्रशिक्षित डॉक्टरों ने छूट देने की अपील की
कोरोना वायरस महामारी के दौर में देश डॉक्टर्स की कमी से जूझ रहा है. मगर विदेश में प्रशिक्षित भारतीय एमबीबीएस डॉक्टरों की सेवा नहीं ली जा रही है.
नई दिल्ली:
कोरोना वायरस (Corona Virus) महामारी के दौर में विदेश में प्रशिक्षित भारतीय एमबीबीएस डॉक्टरों की सेवा नहीं ली जा रही है. इन डॉक्टर्स की मांग है कि इनका पासिंग कट ऑफ भी एनईईटी (NEET) पीजी की तर्ज पर 50 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत कर दिया जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थी उत्तीर्ण होकर स्वास्थ्य सेवा दे सकें.
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विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) दे चुके डॉक्टर्स ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) और स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखा भी है कि वो एक साल तक मुफ्त सेवा देने को तैयार हैं. लेकिन सरकार का कोई भी जवाब नहीं मिल रहा है. सरकार की इस नजरअंदाजी से विदेशों में पढ़कर आए डॉक्टर्स नाराज हैं. हालांकि, स्वास्थ्य विभाग ने सकारात्मकता से इस पहल को लेते हुए एमसीआई से जवाब मांगा था. मगर एमसीआई जवाब साझा करने को तैयार नहीं है. जबकि, डॉक्टर्स के ग्रूप को पिछले दिनों सब कुछ साझा करने का वादा किया था.
पहले भी एआईएफएमजीए ने लिखा था सरकार को पत्र
इससे पहले भी मार्च महीने में विदेश में प्रशिक्षित भारतीय एमबीबीएस डॉक्टरों की एक इकाई ने सरकार से अपील की थी कि वह अनिवार्य लाइसेंस वाली परीक्षा से छूट दें, ताकि ऐसे डॉक्टर कोविड-19 के खिलाफ जंग में देश की सेवा कर सकें. अखिल भारतीय विदेशी चिकित्सा स्नातक संगठन (एआईएफएमजीए) ने सरकार को एक पत्र भी लिखा था, जिसमें दावा किया कि इस एक कदम से 20,000 एमबीबीएस डॉक्टर और 1,000 विशेषज्ञ कोविड-19 के खिलाफ जंग में जुट जाएंगे.
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क्या हैं नियम?
सरकारी नियम के अनुसार, कोई भी भारतीय व्यक्ति जो किसी भी विदेशी संस्थान की ओर से प्राथमिक चिकित्सा की डिग्री हासिल करता है और अस्थायी या स्थायी तौर पर भारतीय चिकित्सा परिषद के साथ पंजीकृत होना चाहता है उसे विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) पास करना पड़ता है. एमसीआई इस परीक्षा को राष्ट्रीय बोर्ड परीक्षा की ओर से आयोजित करता है.