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होशंगाबाद लोकसभा सीट : बीजेपी के गढ़ में क्या कांग्रेस लगा पाएगी सेंध

सोयाबीन और गेहूं के प्रमुख उत्पादकों में से एक होशंगाबाद जिला भारतीय राजनीति में एक खास महत्व रखता है.

News Nation Bureau
| Edited By :
10 Mar 2019, 10:02:43 AM (IST)

होशंगाबाद:

सोयाबीन और गेहूं के प्रमुख उत्पादकों में से एक होशंगाबाद जिला भारतीय राजनीति में एक खास महत्व रखता है. यहां की लोकसभा सीट से मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा सांसद रह चुके हैं. यह सीट बीजेपी का एक मजबूत गढ़ बनती जा रही है. 2009 का चुनाव हारने से पहले उसे यहां पर लगातार 6 बार चुनावों में जीत मिली थी. 2009 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले उदय प्रताप यहां के सांसद हैं. उन्होंने 2014 चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थामा था.

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होशंगाबाद लोकसभा सीट पर पहला चुनाव साल 1951 में हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस के सैयद अहमद ने निर्दलीय उम्मीदवार एचवी कामथ को हराया था. हालांकि, 1952 में यहां पर हुए उपचुनाव में सैयद अहमद को एचवी कामथ के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. 1957 में कांग्रेस ने यहां पर वापसी की और 1958 के उपचुनाव में भी जीत हासिल की. 1962 में कांग्रेस को एक बार यहां हार का सामना करना पड़ा. 1962 का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस 1967 में एक बार फिर वापसी की और दौलत सिंह यहां के सांसद बने.

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बीजेपी को इस सीट पर पहली बार जीत 1989 के चुनाव में मिली थी. सरताज सिंह ने इस सीट से कांग्रेस की ओर से दो बार सांसद रहे रमेश्वर नाखरा को हराया था. सरताज सिंह इसके बाद 1991, 1996 और 1998 का भी चुनाव जीते. 1999 में बीजेपी ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को टिकट दिया था. पटवा ने यह से कांग्रेस के राजकुमार पटेल को करीब 50 हजार वोटों से मात दी. 2004 के लोकसभा चुनाव में सरताज को एक बार फिर बीजेपी ने मैदान में उतारा और सरताज सिंह ने फिर बाजी मारते हुए कांग्रेस के ओमप्रकाश हजारीलाल को हराया. 2009 में कांग्रेस ने उदय प्रताप सिंह को इस सीट से टिकट दिया गया और उन्होंने बीजेपी के रामलाल सिंह को हराया. 2009 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले उदय प्रताप सिंह ने 2014 में बीजेपी के टिकट पर लड़ते हुए दोबारा जीत हासिल की.

होशंगाबाद का इतिहास
होशंगाबाद की स्थापना मांडू (मालवा) के द्वितीय राजा सुल्तान हुशंगशाह गौरी द्वारा 15वीं शताब्दी के आरंभ में की गई थी. यह शहर नर्मदा नदी के किनारे स्थित है. होशंगाबाद में प्रतिभूति कागज कारखाना है, जिसमें भारतीय रुपये छापने के लिए कागज बनाया जाता है. होशंग शाह के नाम पर होशंगाबाद रखा गया है. होशंगाबाद का प्राचीन नाम नर्मदापुरम है, इस शहर में प्रमुख रूप से सोयाबीन और गेहूं की खेती होती है. इस भूमि में कृषि लोगों का प्रमुख व्यवसाय है.

यहां की जनसंख्या
जनगणना के मुताबिक, होशंगाबाद की जनसंख्या 2390546 है, यहां की 74.13 फीसदी आबादी ग्रामीण और 25.87 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. यहां की 16.65 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति के लोगों की है और 12.53 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक, 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां पर 15,68,127 मतदाता थे. इनमें से 7,32,635 महिला मतदाता और 8,35,492 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 65.76 फीसदी मतदान हुआ था.

आठ विधानसभा सीटें हैं
होशंगाबाद लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं, जिसमें नरसिंहपुर, सिवनी-मालवा, पिपरिया, तेंदूखेड़ा, होशंगाबाद, उदयपुरा, गाडरवारा, सोहागपुर विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 4 विधानसभा सीटों पर बीजेपी और 4 पर कांग्रेस का कब्जा है.

2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उदय प्रताप सिंह ने कांग्रेस के देवेंद्र पटेल को यहां से हराया था. इस चुनाव में उदय प्रताप सिंह को 6,69,128 वोट (64.89 फीसदी) मिले थे, वहीं देवेंद्र पटेल को 2,79,168 वोट (27.07 फीसदी) वोट मिले थे. उदय प्रताप को इस चुनाव में 3,89,960 वोटों से जीत मिली थी

सांसद की जानकारी
55 साल के उदय प्रताप दूसरी बार होशंगाबाद सीट से जीतकर संसद पहुंचे हैं. इससे पहले 2009 के चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और जीत हासिल की थी. समाजसेवी और किसान उदय प्रताप 2014 के चुनावों से पहले अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए थे. उदय प्रताप की संसद में उपस्थिति 90 फीसदी रही. उन्होंने 45 बहस में हिस्सा लिया. इस दैरान उन्होंने संसद में 244 सवाल किए. उदय प्रताप को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 22.50 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, जोकि ब्याज की रकम मिलाकर 22.93 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 18.18 यानी मूल आवंटित फंड का 79.03 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 4.75 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया है.

क्या है माहौल
होशंगाबाद की वर्तमान स्थिति की अगर बात की जाए तो यहां पर जनता आज भी मोदी के नाम पर वोट करना चाहती है. नर्मदा का सेठानी घाट हो या फिर शहर के चौक चौराहे सब जगह मोदी की लहर देखने को मिल रही है. यानी कहना गलत नहीं होगा कि यहां की जनता अपने सांसद पर नहीं मोदी पर भरोसा कर वोट करना चाह रही है. होशंगाबाद की मुख्य समस्या रोजगार की है. होशंगाबाद को फ्लाईओवर थर्ड रेलवे लाइन और ट्रेन के स्टॉपेज की सौगातें मिली हैं.