नेपाल के बाद जल रहा है फ्रांस, आखिर क्यों सड़कों पर उतर गए हैं लोग?

राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सेबेस्टियन लेकोर्नू को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. वह पिछले दो वर्षों में फ्रांस के पांचवें प्रधानमंत्री होंगे.

राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सेबेस्टियन लेकोर्नू को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. वह पिछले दो वर्षों में फ्रांस के पांचवें प्रधानमंत्री होंगे.

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Ravi Prashant
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फ्रांस में प्रोटेस्ट क्यों हो रहा है? Photograph: (SM)

राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सेबास्टियन लेकोर्नू को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. यह पिछले दो सालों में फ्रांस के पांचवें प्रधानमंत्री होंगे. यह बदलाव ऐसे वक्त में आया है जब देशभर में “ब्लॉक एवरीथिंग” आंदोलन ने सरकार की नीतियों के खिलाफ माहौल गरमा दिया है. विश्लेषकों का मानना है कि लेकोर्नू का कार्यकाल आसान नहीं होगा. उन्हें दोहरी चुनौती का सामना करना है. एक तरफ संसद में राजनीतिक गतिरोध और दूसरी तरफ जनता का गुस्सा, जो सरकार की खर्च कटौती और कठोर आर्थिक नीतियों से नाराज है

“ब्लॉक एवरीथिंग” आंदोलन क्या है?

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यह एक नागरिक-आधारित आंदोलन है, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे X, टेलीग्राम, टिकटॉक और फेसबुक के जरिए संगठित हुआ है. पारंपरिक हड़तालों की तरह यह किसी यूनियन या राजनीतिक दल द्वारा संचालित नहीं है. आंदोलन के समर्थक बड़े रिटेलर्स जैसे कैरफोर, अमेजन और ऑशां का बहिष्कार करने, बैंकों से पैसा निकालने, नगर निगम भवनों जैसी जगहों पर शांतिपूर्ण कब्ज़ा करने और मोहल्ला सभाएं आयोजित करने की अपील कर रहे हैं.

भले ही आंदोलन अपने घोषित लक्ष्य “सब कुछ ठप करने” में पूरी तरह सफल नहीं रहा, लेकिन इसने देश में व्यापक अव्यवस्था पैदा की. रेन शहर में प्रदर्शनकारियों ने बस में आग लगा दी और बिजली लाइनों को नुकसान पहुंचाया. वहीं, अब तक 200 से अधिक गिरफ्तारियां हुई है.

लोग क्यों नाराज़ हैं?

इस आंदोलन की चिंगारी पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू के 2026 बजट से निकली. बजट में 43.8 मिलियन फ्रैंक की कटौती, घाटे में कमी, दो राष्ट्रीय अवकाश हटाने, पेंशन फ्रीज़ करने और स्वास्थ्य सेवाओं में 5 बिलियन फ्रैंक की कटौती का प्रस्ताव था. यही वजह रही कि जनता सड़कों पर उतर आई है.

समर्थन और विरोध

इस आंदोलन को मुख्यत वामपंथी मतदाताओं का समर्थन मिला है. सर्वे के अनुसार, 69% समर्थक 2022 में जां-लुक मेलेंशों को वोट दे चुके हैं. हालांकि, प्रमुख यूनियनों ने इस विरोध से दूरी बनाई है और 18 सितंबर के लिए अलग हड़ताल की तारीख तय की है. सिर्फ कट्टरपंथी वामपंथी यूनियन CGT ने आधिकारिक रूप से इस आंदोलन का समर्थन किया है.

बायरू का इस्तीफा

बायरू ने नौ महीने पहले प्रधानमंत्री पद संभाला था, लेकिन घाटा कम करने वाले बजट को नेशनल असेंबली से मंज़ूरी नहीं मिल पाई. समर्थन जुटाने में नाकाम रहने के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. उनके पहले प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर भी अविश्वास प्रस्ताव में हारकर पद छोड़ दिए थे. देश में अस्थिरता के बीच, विपक्षी दल, विशेषकर मरीन ले पेन की पार्टी, अब नए चुनाव की मांग कर रहे हैं. इस बीच, 80 हज़ार सुरक्षाकर्मियों को देशभर में तैनात किया गया है ताकि प्रदर्शन काबू में रखा जा सके.

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