पाकिस्तान में आतंकवाद कोई नया मुद्दा नहीं है, लेकिन एक सवाल बार-बार सामने आता है. आख़िर पाकिस्तान में इतनी बड़ी संख्या में युवा आतंकी रास्ता क्यों चुनते हैं? इसका जवाब केवल धार्मिक कट्टरता नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सच्चाई छिपी हुई है.
गरीब युवाओं को बनाते हैं इंसान
पाकिस्तान के कई हिस्सों, खासकर खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) जैसे क्षेत्रों में बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और राजनीतिक अस्थिरता ने युवाओं को आतंकवाद की ओर मोड़ दिया है. इन इलाकों में कट्टरपंथी संगठनों को युवाओं को भर्ती करने के लिए उपजाऊ ज़मीन मिलती है.
मिलती है इंटरनेशनल फंडिंग
पाकिस्तान की आईएसआई और सेना द्वारा कुछ आतंकी संगठनों को “स्ट्रेटेजिक असेट” के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. यह भी एक बड़ा कारण है कि इन संगठनों को खुली छूट मिलती है और वे बेरोजगार, गरीब और भावनात्मक रूप से आहत युवाओं को जिहाद के नाम पर गुमराह करते हैं.
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आतंक के रास्ते पर मिल जाएगा स्वर्ग?
इसके अलावा, कई मदरसे ऐसे हैं जो आधुनिक शिक्षा से पूरी तरह कटे हुए हैं और जहां छात्रों को सिर्फ धार्मिक कट्टरता सिखाई जाती है. इन मदरसों को कई बार अंतरराष्ट्रीय फंडिंग भी मिलती है, जिससे इनकी गतिविधियां और तेज हो जाती हैं.
एक और महत्वपूर्ण कारण है, “शहादत का सपना”. युवाओं को यह समझाया जाता है कि आतंक के रास्ते पर चलकर वे न सिर्फ स्वर्ग पाएंगे, बल्कि उनके परिवारों को भी इज्ज़त और पैसा मिलेगा. इस सोच ने हजारों युवाओं की ज़िंदगियां तबाह कर दी हैं. अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद पाकिस्तान की सरकार इन जड़ों को काटने में नाकाम रही है. नतीजा यह है कि हर साल सैकड़ों युवा हथियार उठा लेते हैं, जो किसी भी देश और समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.
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