प्रोफेसर साहेब ने ट्रंप के लिए क्यों बोल दी गंदी बात, देखिए ये वीडियो

अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक और जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कैरल क्रिस्टीन फेयर ने प्रेसिडेंट ट्रंप को लेकर ऐसा कुछ कह दिया है, जिसके बारे में आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.

अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक और जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कैरल क्रिस्टीन फेयर ने प्रेसिडेंट ट्रंप को लेकर ऐसा कुछ कह दिया है, जिसके बारे में आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.

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Ravi Prashant
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वायरयल वीडियो Photograph: (X)

अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक और जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कैरल क्रिस्टीन फेयर ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर निशाना साधते हुए एक इंटरव्यू में उन्हें आपत्तिजनक शब्द कह दिया. पाकिस्तान मूल के ब्रिटिश पत्रकार मोईद पीरजादा के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने यह टिप्पणी की, जिस पर स्टूडियो में हंसी भी गूंज गई.

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फेयर ने बातचीत में कहा, “मेरे अंदर का आशावादी यह मानना चाहता है कि ब्यूरोक्रेसी हालात को संभाल लेगी. लेकिन मेरे अंदर का निराशावादी कहता है कि यह तो सिर्फ छह महीने हुए हैं और हमें आगे के चार साल इसी च***ए के साथ निकालने होंगे.”

उन्होंने आगे कहा कि यह शब्द वह अक्सर उर्दू में बोलती हैं और कई लोग इस पर आपत्ति भी जताते हैं. इंटरव्यूअर पीरजादा ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया कि यह शब्द इतना असरदार है कि कई बार हालात को बयान करने के लिए इसका इस्तेमाल जरूरी लगने लगता है. 

ये तो मेरी गाड़ी की नंबर भी है

बातचीत के दौरान फेयर ने यहां तक कहा कि उनकी कार की लाइसेंस प्लेट पर भी यही शब्द लिखा है. इसके बाद उन्होंने ट्रंप प्रशासन पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि ट्रंप सरकार में शामिल कई अधिकारी अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता नहीं रखते. उनके अनुसार, यह मान लेना आसान हो जाता है कि प्रशासनिक ताकत सिर्फ एक व्यक्ति पर टिकी है, लेकिन असलियत इससे कहीं ज्यादा जटिल है.

ट्रंप प्रशासन में कर्मचारियों कमी

फेयर ने बताया कि अमेरिका की जटिल ब्यूरोक्रेसी पिछले 25 सालों से अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करती आ रही है. लेकिन ट्रंप प्रशासन में हजारों स्टेट डिपार्टमेंट कर्मचारियों की कमी हो गई, जिससे कई अहम क्षेत्रों में अनुभव और विशेषज्ञता खो गई है.

लश्कर-ए-तैयबा लिखी है किताब

कैरल क्रिस्टीन फेयर का नाम दक्षिण एशियाई राजनीति और सुरक्षा मामलों पर रिसर्च करने वालों में प्रमुख रूप से गिना जाता है. उन्होंने पाकिस्तान की सेना और लश्कर-ए-तैयबा पर किताबें लिखी हैं. वे पहले रैंड कॉरपोरेशन, अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन और यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस से भी जुड़ी रही हैं. 

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