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Pakistan: दुनिया के इतिहास में ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते हैं जहां कोई देश अपनी ही जनता पर हवाई हमला करे. लेकिन पाकिस्तान ने खैबर पख्तूनख्वा में जो किया, वह न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि मानवाधिकारों की खुली अवहेलना भी है. रविवार और सोमवार की दरम्यानी रात पाकिस्तान की वायुसेना ने तिराह घाटी के मत्रे दारा गांव पर हवाई बमबारी की, जिसमें 30 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई और 20 से अधिक घायल हुए.
जेएफ-17 से हमले, टारगेट बने पांच घर
रिपोर्ट्स के अनुसार, रात करीब 2 बजे पाकिस्तान वायुसेना ने जेएफ-17 फाइटर जेट्स से कम से कम 8 एलएस-6 बम गिराए. हमले में पांच घरों को निशाना बनाया गया, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे. हमले के बाद गांव की गलियां लाशों और चीख-पुकार से भर गईं. यह हमला न सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई थी, बल्कि एक ऐसा कृत्य था जिसने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया.
आतंकवाद के खिलाफ या अपने ही खिलाफ?
पाकिस्तान इस कार्रवाई को आतंकवाद विरोधी अभियान बताने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सवाल यह है कि इस ‘ऑपरेशन’ में मारे गए लोग क्या वाकई आतंकी थे? जमीनी हकीकत यह है कि जिनकी जान गई वे आम नागरिक थे—बच्चे, महिलाएं और बुज़ुर्ग. क्या आतंकवाद से लड़ने का यह तरीका जायज़ है?
आतंकवाद की आग में झुलस रहा खैबर पख्तूनख्वा
यह पहला मौका नहीं है जब खैबर पख्तूनख्वा ने ऐसी त्रासदी देखी हो. जनवरी से अगस्त 2025 के बीच यहां 605 आतंकी घटनाएं हुई हैं, जिनमें 138 नागरिक और 79 पुलिसकर्मी मारे गए. अगस्त में ही 129 घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें 6 सैन्य और अर्धसैनिक बलों के जवानों की जान गई.
अपनी नीतियों का बोझ जनता पर क्यों?
बता दें कि पाकिस्तान जिस आतंकवाद को दशकों से रणनीतिक उपकरण की तरह इस्तेमाल करता रहा है, अब वही उसके लिए सिरदर्द बन गया है. लेकिन इसकी सजा मासूम नागरिकों को देना किस हद तक सही है. वह भी हवाई बमबारी से, यह किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता. इस घटना ने पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
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