अबूधाबी एयरपोर्ट पर हूती विद्रोहियों ने क्यों किया हमला, जानें कौन हैॆं हूती
हूती आंदोलन 1990 के दशक में उत्तरी यमन में सादा (Saada) से उभरा था. हूती आंदोलन मुख्य रूप से जैदी शिया बल है, जिसका नेतृत्व बड़े पैमाने पर हूती जनजाति करती है.
highlights
- हूती आंदोलन 1990 के दशक में उत्तरी यमन में सादा से उभरा था
- हूती आंदोलन मुख्य रूप से जैदी शिया बल है
- यह यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा आदिवासी संगठन है
नई दिल्ली:
यमन के हूती विद्रोहियों ने सोमवार को अबू धाबी में ड्रोन से हमला किया. इन विस्फोटक हमलों में अभी तक तीन लोगों के मारे जाने की खबर है जिनमें दो भारतीय व एक पाकिस्तानी नागरिक शामिल है. हमले में छह अन्य घायल हो गए. अबू धाबी पुलिस ने जानकारी दी है कि अज्ञात हमलावरों ने मुसाफ्फा इलाके में धमाका किया. यूएई में हुए इन ड्रोन हमलों की जिम्मेदारी हूती विद्रोहियों ने ली है. विद्रोहियों ने कहा कि उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात द्वारा हाल ही में यमन में की गई कार्रवाई के जवाब में ये कदम उठाया है और अबू धाबी को निशाना बनाया.
हूती विद्रोही और हूती आंदोलन
हूती आंदोलन 1990 के दशक में उत्तरी यमन में सादा (Saada) से उभरा था. हूती आंदोलन मुख्य रूप से जैदी शिया बल है, जिसका नेतृत्व बड़े पैमाने पर हूती जनजाति करती है. यह यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा आदिवासी संगठन है. हूती उत्तरी यमन में सुन्नी इस्लाम की सलाफी विचारधारा के विस्तार के विरोध में हैं. हूती आंदोलन को आधिकारिक तौर पर अंसार अल्लाह कहा जाता है.
यमन में दो राष्ट्रपतियों को सत्ता से बेदखल कर चुके हैं हूती
हूतियों का यमन के सुन्नी मुसलमानों के साथ खराब संबंध का इतिहास रहा है. इस आंदोलन ने सुन्नियों के साथ भेदभाव किया, लेकिन साथ ही उन्हें भर्ती भी किया है और उनके साथ गठबंधन भी किया है. हुसैन बद्रेद्दीन अल-हूती के नेतृत्व में, समूह यमन के पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह के विरोध के रूप में उभरा था, जिस पर उन्होंने बड़े पैमाने पर वित्तीय भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और सऊदी अरब और अमेरिका द्वारा समर्थित होने की आलोचना की.
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2000 के दशक में विद्रोही सेना बनने के बाद हूतियों ने 2004 से 2010 तक यमन के राष्ट्रपति सालेह की सेना से छह बार युद्ध किया. साल 2011 में अरब देशों (सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और अन्य) के हस्तक्षेप के बाद यह युद्ध शांत हुआ. हालांकि तानाशाह सालेह को देश की जनता के प्रदर्शनों के चलते पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद अब्दरब्बू मंसूर हादी यमन के नए राष्ट्रपति बने. उम्मीदों के बावजूद हूती उनसे भी खुश नहीं हुए और फिर से विद्रोह छोड़ दिया और उन्हें राष्ट्रपति पद से हटाकर राजधानी सना को अपने कब्जे में ले लिया.
क्यों लड़ रहे हैं हूती
कहते हैं कि जब हूती यमन की सत्ता पर काबिज हो गए तो पड़ोसी देशों के सुन्नी मुसलमानों में डर का माहौल फैल गया. सुन्नी बहुल सऊदी अरब और यूएई इससे घबरा गए जिसके बाद वे मदद के लिए अमेरिका और ब्रिटेन के पास पहुंचे. पश्चिमी देशों की मदद से हूतियों के खिलाफ हवाई और जमीनी हमले करने शुरू कर दिए और इन देशों ने सत्ता से बेदखल हुए हादी का समर्थन किया. इसका असर यह हुआ कि यमन अब गृह युद्ध का मैदान बन चुका है. यहां सऊदी अरब, यूएई की सेनाओं का मुकाबला हूती विद्रोहियों से है.
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